वॉशिंगटन। युद्ध की त्रासदी झेल रहे अफगानिस्तान में भारत की भूमिका में विस्तार की इच्छुक अमेरिकी नीति नई दिल्ली के लिए एक अवसर है जिसके तहत वह अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्तान को वह रूप दे सकता है, जैसा पड़ोसी वह अपने लिए चाहता है। साथ ही यह नीति पाकिस्तान के लिए संकेत है कि इस मामले में अब उसकी भूमिका पहले की भांति मजबूत नहीं रह गई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मंगलवार के संबोधन के बाद नीति विश्लेषकों ने उक्त निष्कर्ष निकाला है।
गोपालस्वामी ने कहा कि नई रणनीति भारत को अमेरिका के साथ मिलकर काम करने और ऐसे अफगानिस्तान का निर्माण करने का भी अवसर देती है, जैसा कि वे चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत, अमेरिका का महत्वपूर्ण सुरक्षा और आर्थिक साझेदार है। ट्रंप ने भारत के अमेरिका के साथ अरबों डॉलर के व्यापार का जिक्र किया और कहा कि यह भी एक कारण है कि वह चाहता है कि नई दिल्ली, अफगानिस्तान में अपनी आर्थिक और विकास सहायता बढ़ाए।
गोपालस्वामी ने कहा कि पहले से ही भारत, अफगानिस्तान में बांध और वहां के संसद भवन के निर्माण जैसी विकास परियोजनाओं में शामिल है। लेकिन उन्होंने कहा कि ट्रंप ने भारत को अफगानिस्तान में वर्तमान के मुकाबले और बड़ी भूमिका निभाने की चुनौती दी है।
अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के रेजीडेंट फेलो सदानंद धुमे ने इस नई नीति को स्वागतयोग्य कदम बताया है। उन्होंने कहा कि भारत को अफगानिस्तान में अमेरिका का सहयोगी कहे जाने का स्वागत करना चाहिए। यह स्पष्ट संकेत है कि अब वॉशिंगटन इस्लामाबाद की भावनाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं देगा और अफगानिस्तान, भारत की सीमा सुरक्षा की दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। (भाषा)