उसे वेश्या बना दिया, दिन रात सिर्फ सेक्स ही सेक्स, पढ़िए आपबीती
गुरुवार, 14 अप्रैल 2016 (13:06 IST)
एक 24 साल की महिला का कसूर इतना था कि उसने बेहतर जिंदगी जीने के लिए अमेरिका में नौकरी तलाश की और फिर चल दी अपना देश छोड़कर अमेरिका। लेकिन जब सचाई से उसका सामना हुआ तो मानों पैरों तले जमीन ही खिसक गई।
अमेरिका में रहने की, वहां काम करने की जो चमक ऊपर से दिखाई देती है, जरूरी नहीं कि वह हर बार ही सच हो। इंडोनेशिया से बेहतर जीवन जीने की आस लेकर अमेरिका पहुंची शांद्रा वोवोरुंटु के लिए अमेरिका जाना एक बहुत ही भयानक और दर्दनाक सपने की तरह था।
अमेरिका पहुंचने के कुछ ही घंटों बाद उसे सेक्स के लिए मजबूर किया गया। कुछ दिनों बाद तो हालात यह हो गए कि 24 घंटे वह दूसरी पीडि़त लड़कियों के साथ पूरी तरह नग्न हालत में बैठी रहती और ग्राहकों के आने का इंतज़ार करती रहती।
अगर कोई ग्राहक नहीं आता तो तस्कर ही उन लड़कियों से बलात्कार करते थे, जिससे कि उन्हें यह नर्क भोगने की आदत बनी रहे।
पढ़िए इस युवती की कहानी, इसी की जुबानी। कैसे फंसी यह तस्करों के चंगुल में। अगले पन्ने पर।
होटल उद्योग में करियर शुरू करने की उम्मीद के साथ शांद्रा वोवोरुंटु अमरीका पहुंची थीं, लेकिन उन्हें वेश्यावृति, ड्रग्स, हिंसा और यौन दासता की दुनिया में धकेल दिया गया।
कुछ ही महीने पहले उन्हें मौका मिला कि ऐसा करने वालों को वह बेनकाब कर सकें। शांद्रा वोवोरुंटु की कहानी हिला देने वाली है। आइए जानते हैं शांद्रा की कहानी उन्हीं की जुबानी।
जून 2001 में अमेरिका पहुंची थी और यहां मैं अपने सपनों को साकार करना चाहती थी। मैं जैसे ही पहुंची, एक आदमी जॉनी नाम का आदमी मेरी तस्वीर के साथ मेरा इंतज़ार कर रहा था।
उसने मुस्कराते हुए मुझे आवाज़ दी। मुझे उम्मीद थी कि वह मुझे उस होटल में ले जाएगा जहां मुझे काम करना है। होटल शिकागो में था और मैं न्यूयॉर्क के जेएफ़के एयरपोर्ट पर उतरी थी।
मैंने इंडोनेशिया में एक अंतरराष्ट्रीय बैंक में एनेलिस्ट का काम किया था। 1998 में एशियाई आर्थिक संकट के कारण इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा और मुझे नौकरी खोनी पड़ी। अपनी तीन साल की बेटी के लिए मैंने बाहर नौकरी ढूंढ़ने की कोशिश शुरू की।
जब मैंने अख़बार में अमेरिका में होटल कारोबार में नौकरी का इश्तेहार देखा, तो वहां अर्जी दी। मुझे नौकरी मिल गई। मैं अमेरिका के लिए रवाना हो गई। तब तय हुआ था कि छह महीने तक बाहर रहकर, मैं हर महीने पांच हजार अमेरिकी डॉलर के हिसाब से कमाऊंगी। उधर मेरी बेटी को मेरी मां और बहन संभालेंगी।
क्या हुआ अमेरिका पहुंचने के बाद....क्यों करना पड़ा पहुंचते ही सेक्स। पढ़िए अगले पन्ने पर।
मैं चार औरतों और एक आदमी के साथ अमेरिका पहुंची। हमें दो दलों में बांट दिया गया। जॉनी ने मेरे सारे दस्तावेज़ और पासपोर्ट ले लिए। वह मुझे और दूसरी औरतों को अपनी कार तक ले गया। तभी से मुझे कुछ अजीब लगने लगा। ड्राइवर ने एक शॉर्टकट लिया और एक कार पार्क में ले जाकर कार रोक दी।
जॉनी ने हम तीनों को कार से उतरने को कहा और दूसरी कार में दूसरे ड्राइवर के साथ जाने को कहा. हमने वैसा ही किया, जैसा हमें कहा गया। मैंने देखा कि नए ड्राइवर ने जॉनी को कुछ पैसे दिए।
मुझे लगा कि कुछ ग़लत हो रहा है, लेकिन मैंने खुद को समझाया कि चिंता की कोई बात नहीं है।
ड्राइवर हमें ज़्यादा दूर नहीं ले गया और एक ढाबे के बाहर कार रोक दी। यहां फिर से हमारी गाड़ी और ड्राइवर बदले गए और पैसों का लेनदेन हुआ।
इस तीसरे ड्राइवर ने हमें एक घर तक पहुंचाया। वहां फिर से हमें एक ड्राइवर को सौंप दिया गया। चौथे ड्राइवर के पास एक पिस्तौल थी। उसने हमें जबरन एक कार में बैठाया और ब्रुकलिन में एक घर ले गया।
वहां उसने दरवाज़े से ही आवाज़ लगाई, "मामा-सान नई लड़की". अब मुझे डर लगने लगा क्योंकि मैं जानती थी कि 'मामा-सान' वेश्यालय की मालकिन को कहा जाता है, लेकिन बंदूक़ के डर से मैं खामोश रही।
दरवाज़ा खुला तो मैंने 12-13 साल की एक लड़की को नीचे फ़र्श पर चीख़ते देखा। उसे कुछ मर्द लातों से मार रहे थे। उसकी नाक से ख़ून निकल रहा था।
उसमें से एक आदमी मेरे सामने बेसबॉल बैट दिखाते हुए, दांत पीस रहा था और धमकी दे रहा था। इस तरह अमेरिका पहुंचने के कुछ ही घंटे बाद मुझे सेक्स के लिए मजबूर किया गया।
फिर किस तरह अंडरवेयर के बहाने मेरे साथ...पढ़िए दिल दहलाने वाली दास्तान। अगले पन्ने पर।
इसी दिन मेरी मुलाक़ात फिर जॉनी से हुई। उसने जो कुछ हुआ था, उसके लिए माफ़ी मांगी और कहा कि यह सब भारी ग़लती के कारण हुआ।
उस दिन आईडी कार्ड बनवाने के लिए हमारी तस्वीरें ली गईं और हमें यूनिफ़ार्म ख़रीदवाने ले जाया गया. जहां ले जाया गया था वो अंडरगार्मेंट्स की दुकान थी, वहां कोई यूनिफ़ॉर्म नहीं थी।
मुझे लगा कि मुझसे फिर झूठ बोला गया है। अब मैं बहुत डर गई थी। मैं किसी को अमेरिका में जानती भी नहीं थी और अपने साथ इंडोनेशिया से आई दो लड़कियों को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी, मगर मुझे यह अनुभव हो रहा था कि हम मानव तस्करी का शिकार हुए हैं।
अगले दिन हमारे ग्रुप को बांट दिया गया और उसके बाद मैं उन दोनों महिलाओं से बहुत ज़्यादा नहीं मिल पाई। मुझे कार से ले जाया गया, लेकिन शिकागो नहीं बल्कि एक अन्य जगह जहां मेरे तस्करों ने मुझे सेक्स के लिए मजबूर किया।
तस्कर इंडोनेशियाई, ताइवानी, मलेशियाई, चीनी और अमेरिकी थे, उनमें से केवल दो ही अंग्रेज़ी बोलते थे। मुझे यह देखकर और घबराहट हुई कि उनमें से एक के सीने पर पुलिस का बैज लगा था। मुझे नहीं पता कि वह असल पुलिसवाला था या नहीं।
उन्होंने मुझे बताया कि मैं उनकी 30 हज़ार डॉलर की क़र्ज़दार हूं और यह क़र्ज़ हर बार किसी शख़्स के साथ सोने पर 100 डॉलर के हिसाब से उतरेगा। इसके बाद कई हफ़्तों और महीनों तक मैं कई चकलाघरों, अपार्टमेंट की इमारतों, होटलों और कसीनो में भेजी जाती रही।
किसी भी जगह मैं शायद ही दो दिन से ज़्य़ादा रही होऊंगी। इन चकलाघरों में कोकीन, क्रिस्टल मेथ और दूसरे नशे के पदार्थ रहते थे और वो तेज़ म्यूज़िक और रोशनी में नहाए होते थे। मेरे तस्कर मुझे पिस्तौल दिखाकर ड्रग्स लेने को कहते, ताकि मेरे लिए यह सब सहन करने लायक बन जाए।
दिन के 24 घंटे हम लड़कियां पूरी तरह नग्न हालत में बैठी रहतीं और ग्राहकों के आने का इंतज़ार करती रहती थीं। अगर कोई नहीं आता तो हम सो जाती थीं। कभी-कभी तस्कर ही हमसे बलात्कार करते थे, इसलिए हमें हमेशा सावधान रहना पड़ता था। कुछ भी तय नहीं था।
वह रो भी नहीं पाती थी....कैसे आजाद हुई, अगले पन्ने पर।
मगर ख़तरे के बारे में आगाह रहते हुए भी मैं मानो सुन्न हो गई थी, रो नहीं पाती थी। उदासी, ग़ुस्सा और हताशा से भरी हुई थी। मैं बस जीने की कोशिश कर रही थी।
वो मुझे कैंडी कहकर बुलाते थे। तस्करी का शिकार सभी औरतें एशियाई थीं। हम इंडोनेशियाई महिलाओं के अलावा ये महिलाएं थाईलैंड, चीन और मलेशिया की थीं। हालांकि वहां और भी महिलाएं थीं जो सेक्स दास नहीं थीं। वो वेश्याएं थीं जो पैसा कमाती थीं और लगता था कि कहीं भी जाने के लिए आज़ाद थीं।
मैं एक डायरी भी रखती थी, जिसे मैं बचपन से लिखती आई थी। इंडोनेशियाई, अंग्रेज़ी, जापानी और कुछ संकेतों के साथ मैं इसमें लिखती थी और जो मेरे साथ घटता था उसे रिकॉर्ड करने की कोशिश करती थी। मैं तारीखें भी दर्ज करती चलती थी।
मेरा दिमाग़ हमेशा भागने के बारे में सोचता रहता था मगर ऐसे मौक़े बहुत कम थे। कई दिन बाद मुझे अपनी कहानी इंडोनेशियाई कंसल्टेंट को सुनाने का मौक़ा मिला और मेरे वापस जाने का रास्ता साफ़ हो सका।
मगर जो बात मैंने शिद्दत से महसूस की, वो ये थी कि लोग तस्करी की शिकार महिलाओं को वेश्या की तरह देखते हैं। वे उन्हें पीड़ित नहीं बल्कि अपराधी की तरह देखते हैं।