Third stage of life: अब तक हम यही समझते थे कि मृत्यु किसी जीवित शरीर की अंतिम अवस्था होती है। मृत्यु के साथ शरीर के भीतर चल रही सारी क्रियाएं ठप पड़ जाती हैं। पर, जीवविज्ञान की नई खोजें कुछ और कहती हैं। कुछ शोधकर्ता इस बात से सहमत हैं कि मृत्यु के बाद संपूर्णतः पुनर्जीवित हो सकना न सही, पर अंशतः ऐसा हो सकता है। वे कहते हैं कि मृत शरीर की कोशिकाएं स्वयं को जटिल क़िस्म के अस्तित्वों के रूप में व्यवस्थित कर लेती हैं और इस प्रकार जीवन-मरण के बारे में हमारी समझ को उलट देती हैं।
शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया कि मर चुके मेंढकों के भ्रूणों की कोशिकाएं अपने आप को "ज़ेनोबोट्स" (Xenobots) नामक जीवों के रूप में स्वगठित कर सकती हैं। मृत्यु के बीच से उभरने वाले इन अस्तित्वों में अप्रत्याशित क्षमताएं होती हैं। ALSO READ: ईरान की संतान है हिज्बुल्लाह, कौन हैं अल-महदी जिनका शियाओं को है इंतजार
सूक्ष्म रोबोट या जीवधारी : ज़ेनोबोट्स, इस बीच प्रयोगशालाओं में उच्चकोटि के कंप्यूटरों द्वारा निरूपित ऐसी संश्लेषित (सिंथेटिक) रोबोटनुमा चीज़ भी कहे जा सकते हैं, जो किसी वांछित काम के लिए विभिन्न जैविक ऊतकों (टिश्यू) के बीच संयोजन से बने हैं। वैज्ञानिकों के बीच अभी भी मतभेद है कि उन्हें सूक्ष्म रोबोट कहा जाए, जीवधारी कहा जाए या कुछ और कहा जाए। ALSO READ: ईरान की संतान है हिज्बुल्लाह, कौन हैं अल-महदी जिनका शियाओं को है इंतजार
प्रथम प्रयोगशाला ज़ेनोबोट्स, कृत्रिम बुद्धिमता (AI) की सहायता से बने थे। इन दिनों जीवविज्ञान की प्रयोगशालाओं में जो ज़ेनोबोट्स प्रचलित हैं, वे मेंढक के भ्रूण से लिए गए बहुमुखी स्टेम सेल की सहायता से विकसित, मेंढक की त्वचा और हृदय की मांसपेशियों वाली कोशिकाओं से बने होते हैं और 1 मिलीमीटर से भी कम आकार वाले हैं।
मृत्यु के बाद भी कोशिका सक्रियता : मेंढक की भ्रूण-त्वचा की कोशिकाएं ज़ेनोबोट्स के लिए मज़बूत आधार का काम करती हैं और भ्रूण के हृदय की मांसपेशियों वाली कोशिकाएं मोटर का काम करती हैं। ज़ेनोबोट्स का उपयोग मुख्यतः यह जानने-समझने के लिए किया जाता है कि मृत्यु के बाद भी कतिपय कोशिकाएं शरीर में होने वाले जटिल परिवर्तनों के समय आपस में किस प्रकार सहयोग करती हैं।
इन प्रयोगों में देखा गया कि मेंढक के भ्रूण की मृत्यु के बाद भी उसकी कोशिकाएं बिल्कुल नए और अप्रत्याशित ढंग के व्यवहार कर रही थीं। अन्य प्रयोगों में, मानव फेफड़ों की कोशिकाएं 'एंथ्रोबोट्स' (Anthrobots) में बदल गईं। ये 'एंथ्रोबोट्स' न केवल चल-फिर सकते थे, बल्कि बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के क्षतिग्रस्त तंत्रिका (नर्व) कोशिकाओं की मरम्मत करने के भी सक्षम थे। ALSO READ: हीरों की 18 किलोमीटर मोटी परत, बुध ग्रह पर हीरे ही हीरे
तीसरी अवस्था : यह घटना, जिसे 'तीसरी अवस्था' कहा जाता है, अब तक प्रचलित जैविक नियमों को चुनौती देती लगती है। इस अवलोकन से कोशिका तंत्र में एक ऐसी असाधारण नम्यता (प्लास्टिसिटी) होने का संकेत मिलता है, जिसके कारण मृत्यु के बाद भी यह तंत्र न तो पूरी तरह जीवित रहता है और न ही पूरी तरह मृत। कुछ शर्तों के तहत, मृत्यु पश्चात भी कतिपय कोशिकाएं अपनी गतिविधियां रोक नहीं देतीं। शोधकार्यों से पता चला है कि चूहों और भेड़ों की कोशिकाओं को उनके के मरने के कुछ दिनों या हफ्तों बाद भी संवर्धित किया जा सकता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि यह लचीलापन पर्यावरणीय परिस्थितियों, चयापचय (मेटाबॉलिज़्म) और आंतरिक कोशिका तंत्र की संरचना जैसे कई कारकों से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, अतिप्रशीतीकरण (क्रायोप्रिजर्वेशन) के द्वारा कोशिकाओं और ऊतकों के जीवनकाल को बढ़ाना संभव है। इस विधि में कोशिकाओं, ऊतकों और शरीर के छोटे अंगों को –196 डिग्र सेल्सियस ठंडे तरल नाइट्रोजन में रख कर जमा दिया जाता है। बाद में ज़रूरत पड़ने पर का उनका अंग-प्रतिरोपण आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।
मृत्यु के बाद भी संचार-संपर्क : लेकिन, ये कोशिकाएं किसी जीवधारी की मृत्यु के बाद भी एक-दूसरे के साथ संचार-संपर्क कैसे बनाए रखती हैं? कुछ शोधकर्ताओं का सुझाव है कि 'बायोइलेक्ट्रिक सिग्नल' इस संचार और बहुकोशिकीय अस्तित्वों में कायापलट के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। ये खोजें चिकित्सा के क्षेत्र में, विशेष रूप से किसी रोगी की आवश्यकता के अनुरूप उपचार के विकास में, आकर्षक संभावनाएं खोल सकती हैं।
अंग-प्रतिरोपणों के मामले में अक्सर देखने में आता है कि बीमार व्यक्ति का शरीर किसी दूसरे व्यक्ति या प्राणी के अंग को ठुकराने लगता है। तब ऐसी दवाएं देकर, जो शरीर के सामान्य स्वास्थ्य के लिए हितकारी नहीं हैं, शरीर की नकारात्मक प्रतिक्रिया को दबाना पड़ता है। भविष्य में, एंथ्रोबोट्स का उपयोग, शरीर की ऐसी अस्वीकृतियां को भड़काए बिना, इलाज को सहज बना सकता है।
कोशिकाओं की 'तीसरी अवस्था' एक नया अध्याय : जीवधारी कोशिकाओं की जीवन-मरण से जुड़ी 'तीसरी अवस्था' चिकित्सा विज्ञान के लिए एक ऐसा नया अध्याय बन सकती है, जिसमें मृत जीवों की कोशिकाएं अपना कार्य करती रहती हैं और साथ ही बदलती भी रहती हैं। वे न तो जीवित होती हैं और न ही पूरी तरह से मृत। लेकिन, वे बहुकोशिकीय संरचनाओं में अपने आप को स्वयं ही व्यवस्थित करती हैं। उनकी यह क्षमता जीवन और मृत्यु के बीच की सीमाओं को बदल देती है।
यह क्षमता, कोशिका नम्यता (प्लास्टिसिटी) पर आधारित है : एक अवधारणा, जो कोशिकाओं की नए परिवेश के अनुकूल स्वयं ढल सकने की क्षमता को रेखांकित करती है। प्रयोगशाला में, मृत कोशिकाएं पूरी तरह से नई ऐसी संरचनाओं को जन्म देती हैं, जो हिलती-डुलती हैं या अपनी संख्या बढ़ाए बिना अपनी एक नई कॉपी बनाती हैं।
जीवन-मरण से जुड़ी यह नवज्ञात 'तीसरी अवस्था' वैज्ञानिकों को बहुत आकर्षित कर रही है, क्योंकि वह चिकित्सा विज्ञान के लिए आशा की एक नयी किरण है। पुनर्जीवित कोशिकाओं का उपयोग करके, ऐसी नई वैयक्तिकृत चिकित्सा पद्धतियां विकसित करना संभव हो सकता है, जो मृत्यु के बाद कोशिकाओं को पुनर्गठित करने की इस क्षमता का निर्माण कर सकती हैं।