ये अच्छा है कि इंदौर के होलकर स्टेडियम में 13 और 15 मई के दिन आईपीएल का मैच खेलने वाली कोच्चि टीम के मालिकों को मनोरंजन कर में मिली छूट के खिलाफ किसी ने तो वैधानिक कदम उठाया। इसको लेकर एक जनहित याचिका विचाराधीन है, लेकिन बड़ा सवाल है कि ये नौबत ही क्यों आई? इस तरह के जनविरोधी फैसले करने से पहले मध्यप्रदेश की सरकार ने कुछ सोचा क्यों नहीं?
ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश सरकार द्वारा शहर को मिल रहे नर्मदा के पानी के लिए इस्तेमाल बिजली पर घरेलू की बजाय व्यावसायिक दर से पैसा वसूला जा रहा है? जहाँ घरेलू बिजली की दर 3 रुपए 60 पैसे प्रति यूनिट लगती है, वहीं नर्मदा के पानी के लिए 4 रुपए 43 पैसे के हिसाब से बिल बनाया जाता है। ये कैसी सरकार है जिसके लिए जनता को पानी पिलाना तो व्यवसाय है, लेकिन आईपीएल का क्रिकेट मैच व्यवसाय नहीं है?
मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री कह रहे हैं कि हमने खेल को बढ़ावा देने के लिए मनोरंजन कर में छूट दी है। कौन से खेल को...क्रिकेट को? उस खेल को जिसकी अब इतनी अति हो गई है कि उसे बढ़ावा देने की बजाए कम करने की नौबत आ गई है? जिसे खेलने वाले खुद कहते हैं कि हम थक चुके हैं, हमें और मत खिलाओ? उस खेल को जिसमें इतना पैसा आ गया है कि उसने खिलाड़ियों के साथ-साथ लोगों का जमीर भी खरीदना शुरू कर दिया है?
आप उस खेल को बढ़ावा देना चाहते हैं जिसके जरिए धन्ना सेठों का काला पैसा गोरा होने को बेताब है? आप उस खेल को बढ़ावा देना चाहते हैं जिसकी वजह से दूसरे खेल और उनके खिलाड़ी सतत उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं?
आईपीएल के टिकटों के लिए चिलचिलाती धूप में खड़े लोग दरअसल मजबूर हैं...उनके परिवार और बच्चों की जिद की खातिर। मजबूर हैं क्रिकेट-प्रेम के नशे के हाथों। उस क्रिकेट से प्रेम का नशा जिसे बड़ी सफाई से हमारी नसों में उतार दिया गया है। अब ये हम पर है कि हम अपनी इस मजबूरी का फायदा कितना और कब तक उठाने देते हैं।