हजरत अली का जन्म मक्का शहर में हुआ था। वे शिया मुस्लिम समुदाय के पहले इमाम थे। वहीं हजरत मोहम्मद पैगंबर के बाद सुन्नी मुसलमानों के चौथे खलीफा भी थे। हजरत अली उस वक्त इस्लाम की मदद के लिए आगे आए जब इस्लाम का कोई भी हमदर्द नहीं था। उन्होंने इस्लाम धर्म को आम लोगों तक पहुंचाया। उनकी इसी सेवाभाव को देखते हुए हजरत मुहम्मद साहब ने उन्हें खलीफा मुकर्रर किया। उन्होंने शांति और अमन का पैगाम दिया था। उन्होंने कहा था कि इस्लाम इंसानियत का धर्म है और वह अहिंसा के पक्ष में है।
उन्होंने यह भी कहा था कि बोलने से पहले शब्द आपके गुलाम होते हैं लेकिन बोलने के बाद आप लफ्जों के गुलाम बन जाते हैं। अत: हमेशा सोच समझकर बोलें। इसके साथ ही उन्होंने भीख मांगना, चुगली करना जैसे कार्य करने को सख्त मना किया है। उन्होंने यह भी कहा कि हमेशा अपनी सोच को पानी के बूंदो से भी ज्यादा साफ रखो, क्योंकि जिस तरह बूंदों से समुंदर बनता है उसी तरह सोच से ईमान बनता है। अत: अपनी जुबान की हिफाजत तथा सोच को हमेशा पाक बनाए रखों।
इस तरह अपनी ऊंची सोच से दुनिया को अहिंसा का पैगाम देने वाले हजरत अली की रमजान महीने की 21वीं तारीख को कूफे की मस्जिद में सुबह की नमाज के दौरान हत्या कर गई थी। उसके बावजूद उन्होंने अपने कातिल को माफ करने की बात कही। कहा जाता है कि हजरत अली अपने कातिल को जानते थे उसके बावजूद उन्होंने सुबह की नमाज के लिए उसे उठाया और नमाज में शामिल किया था। 21वीं रमजान यानी हजरत के शहादत के मौके पर सुबह (फज्र) की नमाज की जाती है।