ह्युमन नेटवर्किंग का तकनीकीकरण

- दीपिका

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ऑर्कुट, फेसबुक, वायन, याहु 360 आजकल हर बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। हम हाईटेक हो गए हैं। सोशल नेटवर्किंग की ऑनलाइन कम्यूनिटी, मीडिया शेयरिंग आदि की जननी है। परंतु इस सोशल नेटवर्किंग का आधार क्या है? जरा पृष्ठभूमि पर नजर डालते हैं।

समाज के विभिन्न वर्गीकृत भागों से लोग एकजुट हुए विचारों-भावों-सूचनाओं का आदान-प्रदान आरंभ हुआ उसमें परस्पर सौहार्द्र, मित्रता, पसंद-नापसंद, भौतिक तत्वों मुद्रा व अन्य वस्तुएं आदि की रेसिपी मिलाई। ऊपर से एक चुटकी तकनीक के मसाले का तड़का और सोशल नेटवर्किंग तैयार। अब पुराने दोस्तों को भी तलाशिए, नए दोस्त भी बनाइए, कम्यूनिटी बनाकर किसी भी मुद्दे पर चर्चा कीजिए। न मोबाइल फोन की ज़रूरत, न ही ई-मेल लिखने का झंझट।

उन्नत तकनीक के साथ-साथ यह नेटवर्क भी ऑनलाइन हो गया है। इस सोशल मीडिया की सहायक कई वेबसाइट्स मौजूद हैं जो आपको दोस्तों, परिजनों या सहकर्मियों के साथ एक चेन के माध्यमों से जोड़ती है। आप इसमें ई-मेल की तरह बात तो करते है, पर नेटवर्किंग का फायदा यह है कि आप एक बार में कई लोगों से बात कर सकते हैं।

एक और बात सामने आती है कि दूसरों से की हुई आपकी बातें कोई भी देख या पढ़ सकता है, अर्थात्‌ सम्पूर्ण पारदर्शिता। अब यह पारदर्शिता फायदा है या नुकसान, यह आप तय करें।

हालांकि साधारण ई-मेल की ही भांति सोशल नेटवर्किंग में भी आप फोटो, वीडियो, म्यूजिक आदि एक दूसरे से बाट सकते हैं। परंतु एक चेन के माध्यम से जिस तरह आप अपने दोस्त के दोस्त के दोस्त से जुड़ते जाते हैं, यह वाकई सराहनीय है। यह चेन कभी खत्म नहीं होती।

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आप किसी के किसी भी मित्र को देख सकते हैं, उससे बात कर सकते हैं और सूचनाओं या मल्टीमीडिया का आदान-प्रदान कर सकते हैं। मजा तो अब आता है जब आपकी शेयर की हुई बातें या वस्तुएँ भी कोई भी अन्य व्यक्ति देख सकता है। अब थोड़ी तो सावधानी बरतनी ही पड़ेगी।

मूलतः सोशल नेटवर्किंग शब्द ही इंटरनेट पर बनाई हुई एक कम्यूनिटी को सम्बोधित करता है जिसमें तमाम लोग एक दूसरे से जुड़े रहते है और विभिन्न मुद्दों या वस्तुओं का लेन-देन करते हैं।

ऐसी तमाम वेबसाइट्म हैं जो विभिन्न विषयों पर चर्चाओं या वस्तुओं के आदान-प्रदान हेतु बनाई गई हैं। मिलिट्री के लिए अभिभावकों के लिए, सरकारी कर्मचारियों के लिए आदि समाज से जुड़े हर पहलू को टटोलती या खंगालती एक सोशल नेटवर्किंग बेवसाइट आपको मिल ही जाएगी ।

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अब तकनीक है तो कुछ नकरात्मक पहलू भी सामने आएगें ही। जैसे प्राइवेसी पर खतरा मंडराने लगा है। अश्लील सामग्री खुलेआम प्रसारित हो रही है। यही नहीं अधिकांश कार्यालयों में लोग खाली बैठे इन वेबसाइट्स पर टाइमपास करते हैं जिससे प्रोडक्टिविटी पर असर पड़ता है।

परंतु इस सब के बावजूद दीवानगी तो साफ नजर आ रही है। 2004 के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ यूनाइटेड स्टेट्स के लोगों द्वारा ऑनलाइन डेटिंग पर 450 मिलियन डॉलर्स से अधिक खर्च किए गए। अब सोचिए कि समय कितनी रफ्तार से भाग रहा है। इन नेटवर्किंग वेबसाइट्स की पहुंच हर जगह हो गई है।

ये सोशल नेटवर्किंग साइट्स आपके समाज का ही हिस्सा हैं। आपके समाज से ही पनपी हैं। ये नेटवर्किंग साइट्स ज्ञानवर्धक तो हैं ही साथ ही वसुधैव कुटंबकम की सार्थकता को भी सिद्घ करती हैं

सोशल नेटवर्किंग साइट्स आपके समाज का ही हिस्सा हैं। इनका सही प्रयोग बहुत जरूरी है।

प्रमुख सोशल नेटवर्किंग साइट्स

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एडवोगाटो (सॉफ्टवेयर्स व डेवेलपर्स के लिए)
बीबो (स्कूल व कॉलेजों के लिए) 
कार डोमेन (कार प्रेमियों के लिए)
बॉल्ट (म्यूजिक वीडियो के लिए)
क्लासमेट्स (स्कूल, कॉलेज, कार्यालयों आदि के लिए) 
फेसबुक (युवाओं के लिए) 
फ्लिकर (फोटो शेयरिंग के लिए)
आई मीन (तत्काल मैसेजिंग के लिए)
पिकासो (फोटो के लिए)
यू ट्यूब (म्यूजिक वीडियो के लिए)
वेन (टे्रवल लाइफ स्टाइल पर चर्चा हेतु)
हाई फाइव (जनरल नेटवर्किंग) 
ऑर्कुट (सर्वाधिक लोकप्रिय,जनरल नेटवर्किंग, गूगल उत्पाद)

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