वेबदुनिया डेस्क अब यह किसी साइंस फंतासी या अरेबियन नाइट्स की कहानी नहीं रही, अब सच में जमाना आ गया है जब सिर्फ छूने (स्क्रीन) या बटन दबाने भर से आपको अपनी पसंददीदा वस्तुएं दरवाजे पर मिल जाती हैं। भारत सहित दुनियाभर में शुरू हुई इंटरनेट क्रांति अपने चरम पर पहुंच चुकी है। पॉकेट इंटरनेट (या मोबाइल इंटरनेट) के इस युग में अब आपका मोबाइल फोन जादुई चिराग का काम करने लगा है और ऑनलाइन शॉपिंग, बैंकिंग, ट्रेवल आदि साइट्स जिन्न की भूमिका निभा रहे हैं। हां, इसके लिए पैसा जरूर देना होता है लेकिन प्रतिस्पर्धा के चलते अब ग्राहकों को फायदे वाली योजनाओं का लाभ मिलने के अवसर भी बढ़ गए हैं।
अब सवाल उठता है कि क्या ऑनलाइन सेल और शॉपिंग की अप्रत्याशित सफलता सही मायनों में भारत की बढ़ती आर्थिक क्षमता को प्रतिबिम्बित करती है? या यह 90 के दशक के इंटरनेट बूम जैसा एक छलावा सिद्ध होगी? जो भी हो अब यह निश्चित है कि इसका दूरगामी प्रभाव होगा। यह कितना लाभदायक या नुकसानदेह है इसका पता तो आनेवाले समय में चलेगा।
6 अक्टूबर को एक ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट ने 'बिग बिलियन डे' के नाम से एक ऐसी स्कीम दी जिसमें 90 प्रतिशत की छूट दी गई। इसका तात्कालिक परिणाम यह रहा कि भारतीय खुदरा बाजार में हड़कंप मच गया और छोटे-बड़े व्यापारियों ने सरकार से मदद मांगी। व्यापारियों की गुहार के बाद भारत सरकार ई-कॉमर्स कारोबार को लेकर कोई ठोस नीति बनाने पर विचार कर रही है। गौरतलब है कि इससे पहले, व्यापारियों की एक संस्था कॉन्फेडेरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआइटी) ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से ऑनलाइन कारोबार की जांच की मांग भी की थी।
लेकिन देखा जाए तो पता चलता है कि अब आने वाले दिनों में भारतीय बाजार बेहद मुश्किल और परिवर्तन के दौर से गुजरने वाला है। पहले से ही बेहद कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले भारतीय बाजार में अब फ्लिपकार्ट, स्नैप-डील और अमेज़न जैसी कई कंपनियां तेजी से ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। गौरतलब है कि फ्लिपकार्ट ने दावा किया है कि 6 अक्टूबर को उसने 600 करोड़ रुपए का कारोबार किया जो कंपनी के पिछले साल के कुल एक अरब डॉलर के कारोबार के मुकाबले असाधारण है।
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कहां से होता है मुनाफा :ऑनलाइन साइट बेहद कम मार्जिन पर काम करती हैं, कई बार तो अपना वर्चस्व बनाने के लिए कंपनी नुकसान में भी सामान बेचती है, लेकिन ये कंपनियां सीधे निर्माताओं से बात कर बल्क प्रोड्क्शन सिस्टम और डिस्ट्रिब्यूशन को बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा इन ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स में किसी तरह की लिस्टिंग फीस नहीं होती बल्कि इनकी ज्यादातर आमदनी विभिन्न वेबसाइटों पर मिलने वाले विज्ञापनों से होती है। किसी भी तरह की ऑनलाइन शॉपिंग को मापने के लिए अकसर ग्रॉस मर्चेंडाइज़ वॉल्यूम (जीएमवी) का इस्तेमाल होता है जिससे पता चलता है कि किस साइट पर कितना माल बिका।
हाल ही में एक प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनी ने अपनी एक सफल SUV की रि-लांचिंग एक ऑनलाइन शॉपिंग साइट के जरिए की। ऑनलाइन शॉपिंग का आलम यह है कि कई मोबाइल कंपनियां अपने उत्पाद सीधे और सिर्फ ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स के जरिए बेच रही हैं। साफ बात है कि मैन्युफेक्चरिंग इंडस्ट्रीज अब अपने मुनाफे को खुदरा व्यापारियों को न देते हुए ग्राहकों को देना चाहती हैं जिससे उनके उत्पादों की कीमत बाजार में कम रहे और बिक्री बढ़े। फिलहाल इसका सीधा फायदा को खरीददारों को ही मिल रहा है लेकिन ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान कई समस्याओं के चलते बहुत से लोगों का विश्वास भी इस पर से हटा है। भारत में अब भी परंपरागत दुकानों पर जा तसल्ली से देख-परख के खरीदने वालों की कमी नहीं है लेकिन व्यस्त होती जीवनशैली और लुभावने ऑफर ऑनलाइन शॉपिंग का ग्राफ दिनों-दिन बढ़ा ही रहे हैं।
एक बात तो तय है कि आने वाले समय में बढ़ते इंटरनेट उपयोगकर्ता ऑनलाइन बाजार की हिस्सेदारी में इजाफा ही करने वाले हैं। इसके बढ़ते व्यवसाय से जहां खुदरा बाज़ार को नुकसान हो रहा है वहीं वेयर हाउस, स्टाकिंग और डिस्ट्रिब्यूशन में नए अवसर भी बढ़ रहे हैं।