Jagannath Rath Yatra 2024: भारत के ओडिशा राज्य के पुरी नगर में प्रतिवर्ष भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए देश विदेश से लाखों लोग आते हैं। हर कोई इस रथयात्रा में भाग लेता है। आओ जानते हैं इस रथ यात्रा के संबंध में 25 रोचक बातें।
1. हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है।
2. इस रथयात्रा का उद्देश्य यह है कि वे लोग, जो समूचे वर्षभर मंदिर में प्रवेश नहीं पा सकते हैं, उन्हें भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो।
3. पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रभु प्रतिवर्ष भगवान जगन्नाथ रानी गुंडिजा के मंदिर में रथ पर सवार होकर जाते हैं और वहां पर 10 दिनों तक विश्राम करके लौट आते हैं। गुंडिचा भगवान की भक्त थीं। मान्यता है कि भक्ति का सम्मान करते हुए भगवान हर साल उनसे मिलने जाते हैं।
4. यात्रा के लिए तीन रथों के निर्माण के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी पर होता है और निर्माण कार्य वैशाख माह में अक्षया तृतीया पर प्रारंभ होता है, यानी दो माह पूर्व।
5. रथों का निर्माण नीम की पवित्र अखंडित लकड़ी से होता है, जिसे दारु कहते हैं। रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील, कांटों और धातु का उपयोग नहीं करते हैं।
6. रथयात्रा में तीन रथ होती हैं। बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या पद्म रथ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।
7. रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है।
8. रथों को उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है। नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
9. रथयात्रा के 15 दिन पूर्व भगवान जगन्नाथ को 108 कलशों से शाही स्नान कराया जाता है जिसके चलते वे बीमार पड़ जाते हैं और तब उन्हें 15 दिनों के लिए एक अलग कक्ष में सुलाया जाता है, जिसे ओसर घर कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता।
10. इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है। प्रभु के बीमार पड़ने पीछे की अलग कहानी है जो भक्त माधवदास से जुड़ी है।
11. पंद्रह दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव भी कहते हैं।
12. इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और अपने बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।
13. जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब 'छर पहनरा' नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है। इसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं और 'सोने की झाड़ू' से रथ मण्डप और रास्ते को साफ करते हैं।
14. आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है। ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं। कहते हैं, जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान माना जाता है।
15. तीनों रथों को मोटी रस्सियों से खींचकर 4 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता है। रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से निकलकर गुंडीजा मंदिर पहुंचती है।
16. गुंडीचा मार्जन परंपरा के अनुसार रथ यात्रा से एक दिन पहले श्रद्धालुओं के द्वारा गुंडीचा मंदिर को शुद्ध जल से धोकर साफ किया जाता है। इस परंपरा को गुंडीचा मार्जन कहा जाता है।
17. यात्रा की शुरुआत सबसे पहले बलभद्र जी के रथ से होती है। उनका रथ तालध्वज के लिए निकलता है। इसके बाद सुभद्रा के पद्म रथ की यात्रा शुरू होती है।
सबसे अंत में भक्त भगवान जगन्नाथ जी के रथ 'नंदी घोष' को बड़े-बड़े रस्सों की सहायता से खींचना शुरू करते हैं।
18. जब जगन्नाथ यात्रा गुंडिचा मंदिर में पहुंचती है तब भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र जी को विधिपूर्वक स्नान कराया जाता है और उन्हें पवित्र वस्त्र पहनाए जाते हैं।
19. यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी का महत्व है। इस दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं, जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा में निकल गए हैं।
20. गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को 'आड़प-दर्शन' कहा जाता है।
21. गुंडीचा मंदिर को 'गुंडीचा बाड़ी' भी कहते हैं। माना जाता है कि मां गुंडीचा भगवान जगन्नाथ की मासी हैं।
22. यहीं पर देवताओं के इंजीनियर माने जाने वाले विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा का निर्माण किया था।
23. आषाढ़ माह की दशमी को सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।
24. जगन्नाथ पुरी में भक्त भगवान के रथ को खींचते हुए दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं और नवें दिन वापस लाया जाता है।
25. नौवें दिन रथयात्रा पुन: भगवान के धाम आ जाती है। जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। देवी-देवताओं के लिए मंदिर के द्वार अगले दिन एकादशी को खोले जाते हैं, तब विधिवत स्नान करवा कर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देव विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।