आइए, अब परमात्मा के समक्ष चैत्यवंदन करके परमात्मा की स्तवना-भक्ति करें। सबसे पहले खड़े होकर हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि रचाते हुए, कमर से थोड़े झुककर बोलें-
इच्छामि खमासमणो वंदिऊं, जावणिज्जाए निसीहीआए।
यहाँ पर नीचे झुकते हुए 'पंचांग प्रणिपात' प्रणाम कर के दो हाथों की अंजलि, मस्तक व दोनों घुटने जमीन पर टिकाते हुए बोलें-
यहाँ पर 'कायोत्सर्ग मुद्रा' में खड़े रहकर या बैठकर एक 'लोगस्स सूत्र' का मन-ही-मन चंदेसु निम्मलयरा तक पाठ करें। लोगस्स सूत्र के माध्यम से 24 तीर्थंकर भगवंतों का स्मरण ध्यान करें।
यदि 'लोगस्स सूत्र' याद नहीं हो तो चार बार नवकार मंत्र का मौन रहकर मन-ही-मन पाठ करें।
कायोत्सर्ग के समय शरीर में जरा भी आलस, सुस्ती या तनाव-खिंचाव नहीं होना चाहिए।
स्वस्थ-सहज एवं प्रसन्न मुद्रा में 'कायोत्सर्ग ध्यान' करें। 'कायोत्सर्ग' यदि खड़े करते हैं, तो पैरों के दो पंजों के बीच में आगे 4 अंगुल की दूरी व पीछे एड़ियों के बीच 3 अंगुल जितनी दूरी रखें।
यदि बैठे-बैठे कायोत्सर्ग करना है, तो कमर से झुककर नहीं, वरन् सीधे बैठें।
सूचना- कायोत्सर्ग पूरा होने पर धीरे से 'नमो अरिहंताणं' बोलें और वापस हाथ जोड़कर पहले की तरह खड़े रहकर या बैठे-बैठे निम्न सूत्र बोलें-