जैन मंत्रों से कीजिए जीवन के समाधान

* शक्ति जाग्रति का महामंत्र णमोकार मंत्र

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णमोकार मंत्र एक विलक्षण मंत्र है जिसमें तंत्र-मंत्र, अध्यात्म, चिकित्सा, मनोविज्ञान, दर्शन, तर्क, ध्वनि विज्ञान, भाषा शास्त्र, लिपि विज्ञान, ज्योतिष इत्यादि गर्भित हैं। यह श्रुत ज्ञान का सार है।

णमोकार शक्ति जाग्रति का महामंत्र है। णमोकार मंत्र हमें शब्द से अशब्द की ओर ले जाता है। यह हमें पारदृष्टि प्रदान करता है। यह अंतर्मुख होने की सूक्ष्म प्रक्रिया है। णमोकार मंत्र के जाप से हम प्रकृति से जुड़ेंगे, उन कोटि-कोटि आत्माओं से जुड़ेंगे जिन्होंने शताब्दी पूर्व इसका जाप किया और स्वयं में अलख जगाया था।

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णमोकार मंत्र में 5 पद हैं, जिनमें रंग हैं- क्रमश: श्वेत, रक्त, पीत, नील, श्याम। हमें चाहिए कि ध्यान से श्वास की कलम से शून्य की पाटी पर क्रमश: इन रंगों से इन पदों को लिखते जाएं और निरंतर इन्हें गहराते जाएं। हम अक्षर ध्यान से 'अक्षर' बनें, तभी इस महामंत्र का उपकार हम पर हो सकता है।

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क्या आप श्रावक से साधु, साधु से उपाध्याय, उपाध्याय से आचार्य, आचार्य से सिद्ध और सिद्ध से अरिहंत बनने को आतुर हैं, तो इस महामंत्र में खो जाइए।

आपकी अंतरात्मा संगीत की ऊर्जामयी आध्यात्मिक, आलौकिक दिव्य तरंगों में खो जाएगी। भद्रबाहु संहिता, केवलज्ञान प्रश्न चूड़ामणि आदि अनेक ग्रंथों में आचार्यों ने अपने-अपने अनुभवों के आधार पर मंत्रों के ज्ञान की स्वीकृति दी है। कुछ मंत्र प्रस्तुत हैं।


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णमोकार महामंत्र :-

णमो अरिहंताणं

णमो सिद्धाणं

णमो आयरियाणं

णमो उव्ज्झायाणं

णमो लोएसव्वसाहूणं

एसों पंच णमोक्कारो

सव्वपावप्पणासणो।

मंगलाणं च सव्वेसिं

पढमं हवइ मंगलम्।।

।। जय जिनेंद्र ।।


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जिस प्रकार जैन धर्म में ध्यान से संबद्ध विशिष्ट चिंतन उपलब्ध है, उसी प्रकार तंत्र, मंत्र, यंत्र का भी विशेष वर्णन उपलब्ध है। सर्वज्ञ भाषित गणधरदेव द्वारा ग्रंथित द्वाद्वशांग में बारहवां अंग दृष्टिवाद है। उसके 5 विभाग हैं- परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयोग, पूर्वगत, चूर्णिका। चौथे विभाग पूर्वगत के 14 भेद हैं। उनमें एक विद्यानुवाद नामक पूर्व है जिसमें पूर्णरूप से मंत्र, तंत्र, यंत्र का वर्णन है।

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मंत्रों का व्याकर

मंत्रों का भी व्याकरण है। उसी के अनुसार विभिन्न कार्यों के लिए वि‍भिन्न प्रकार के बीजाक्षरों की योजना करके विभिन्न प्रकार के मंत्र बनाए जाते हैं। विद्यानुशासन ग्रंथ में मंत्रों का व्याकरण बतलाया गया है। मंत्र बीजाक्षरों से निष्पन्न होते हैं। मंत्र में निहित बीजाक्षरों में उच्चारित ध्वनियों में विद्युत तरंगें उत्पन्न होती हैं। मंत्र दो प्रकार के हैं-

* लौकिक मंत्र- जिन मंत्रों की विद्युत शक्तियों में सर्प-विष, आधि-व्याधि, भूत-प्रेतादि की बाधा दूर की जाती है अथवा जिनका प्रयोग वशीकरण, मारण, उच्चाटन के लिए किया जाता है, वे लौकिक मंत्र होते हैं।

* लोकोत्तर मंत्र- जिन मंत्रों के जपने से आत्मोन्नति होती है, वे लोकोत्तर मंत्र कहलाते हैं।

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णमोकार मंत्र- मूल मंत्

जैन धर्मावलंबियों की मान्यतानुसार मूल मंत्र णमोकार मंत्र है। इसी से सभी मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। एक णमोकार मंत्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ना चाहिए।

पहली श्वास में- णमो अरिहंताणं- उच्छवास में- णमो सिद्धाणं

दूसरी श्वास में- णमो आयरियाणं- उच्छवास में- णमो उव्ज्झायाणं

तीसरी श्वास में- णमो लोए उच्छवास में- सव्वसाहूणं

णमोकार मंत्र में 35 अक्षर हैं। णमो- नमन कौन करेगा? नमन् वही करेगा, जो अपने अहंकार का विसर्जन करेगा। णमोकार मंत्र में 5 बार नमन् होता है। 5 बार अहंकार का विसर्जन होता है। णमोकार महामंत्र बीजाक्षरों (68) की से विलक्षण है, अलौकिक है, अद्भुत है, सार्वलौकिक है।

णमोकार मंत्र में एक ऐसा संगीत है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा के परिपूर्ण है ही, साथ ही आप अपनी अंतरात्मा में झांकिए और अहसास कीजिए- क्या आप अध्यात्म की उन बुलंदियों को छूने को आतुर तो नहीं हैं? यदि हां, तो मंत्र जाप की चादर ओढ़कर णमोकार मंत्र का समाधिस्थ होकर जाप करें।

कौन? कब? किस समय? श्रावक से साधु, साधु से उपाध्याय, उपाध्याय से सिद्ध और सिद्ध से अरिहंत बन जाएं? या फिर पूर्व जन्मों के पुण्यों के परमाणुओं की विराट शक्ति से सीधे अरिहंत ही बन जाएं।

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णमोकार मंत्र के विषय में यह प्रसिद्ध है कि इसका 8 करोड़ 8 लाख 8 हजार 808 बार जाप करने से जीव को तीसरे भव से परम सुखधाम अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है, पर कम से कम 108 बार जाप तो हर किसी को करना ही चाहिए।

बीजाक्षरों और पल्लव जोड़ देने से मंत्र में अद्भुत शक्ति का योग हो जाता है, जैसे धन की प्राप्ति के लिए 'क्लीं', शांति के लिए 'ह्रां', विद्या के लिए ऐं, कार्यसिद्धि के लिए झों बीजाक्षर तथा 'स्वाहा' या 'नम:' पल्लव का प्रयोग किया जाता है।

पंच परमेष्ठियों में अरिहंत का रंग श्वेत, सिद्ध का लाल, आचार्य का पीत, उपाध्याय का नीला और साधु का श्याम रंग होता है। णमोकार मंत्र के इन रंगों में हम प्रकृति से सहज ही जुड़ जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में रंगों की सार्थकता पहले से ही स्थापित है। णमोकार मंत्र का लौकिक उपलब्धियों के लिए उपयोग न करें। इससे आध्यात्मिक शक्ति और ऊर्जा को जगाएं।

णमोकार मंत्र बीजाक्षरों का अपूर्व पुंज है। बीजाक्षर शक्ति के प्रतीक हैं। णमो अरिहंताणं में वर्ण 13, अक्षर 7, स्वर 7, व्यंजन 6 और नासिक्य व्यंजन 3, नासिक्य स्वर 2 हैं। णमो सिद्धाणं में वर्ण 11, अक्षर 5, स्वर व्यंजन 6, नासिक्य व्यंजन 3, नासिक्य स्वर 2 हैं। णमो आयरियाणं में वर्ण 12, अक्षर 7, व्यंजन 5, नासिक्य व्यंजन 2, नासिक्य स्वर 1 हैं। णमो उव्ज्झायाणं में वर्ण 14, अक्षर 7, स्वर 7, व्यंजन 5, नासिक्य व्यंजन 2, नासिक्य स्वर 1 हैं। णमो लोए सव्वसाहूणं में वर्ण 18, अक्षर 8, स्वर 9, व्यंजन 9, नासिक्य व्यंजन 3, नासिक्य स्वर 1 हैं।

यह मंत्र शब्द से आगे ले जाता है। शब्द से आगे जाने की स्थिति ध्यान है। मंत्र को संकल्प, दृढ़ता और एकाग्रता चाहिए, तभी वह फलदायी होगा, सार्थक होगा। णमोकार मंत्र के साथ चत्तारि दण्डक सर्वोत्तम शरण पाठ भी है- णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उव्ज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। एसों पंच णमोक्कारो सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम्।। यानी मंगलेषु सर्वेषु।

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प्रभावक मंत्र :-

* लौकिक अभ्युदय में सहायक मंत्र 'ॐ ह्रीं नम:' एक प्रभावक मंत्र है। इससे अनेक कार्य सिद्ध होते हैं। रात्रि में 40 दिन तक नियमपूर्वक 108 बार जाप करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस मंत्र से अन्न को मंत्रित कर खाने से शीघ्र लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

* 'ॐ ह्रीं ऐं क्लीं ह्रों नम:' के 12 हजार जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है।

* अन्य आचार्य के मतानुसार 'ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अर्हं नम: सर्व कार्य कुरू कुरू स्वाहा' का जाप फलदायी सिद्ध होता है।

* आचार्यों ने अपने-अपने अनुभवों के आधार पर विभिन्न मंत्रों के जाप की स्वीकारोक्ति दी है यथा- 'ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं वाग्वादिनी भगवती सरस्वती ह्रीं नम:' तथा 'ॐ ह्रीं क्लीं ऐं हंसवा‍दिनी मम जिव्हाणे (जिवहाणे) आगच्‍छ-आगच्छ स्वाहा' इनके जाप से विद्या शीघ्र सिद्ध होती है।

* 'ॐ णमो अरिहंताणं वद-वद वाग्वादिनी स्वाहा' इस मंत्र से 108 बार मालकांकिणी को मंत्रित कर खाने से बुद्धि की वृद्धि होती है।

* श्री भद्रबाहु स्वामी प्रसादात् एष: फलतु ऐसा प्रथम बार बोलकर प्रतिदिन 27 बार, 27 दिन एकचित्त से उवसग्ग-हरण का पाठ पढ़ें, तो उसके समस्त उपसर्ग अर्थात आती हुई आपदाएं दूर हो जाती हैं।

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* जैन संसार में विजय पहुत स्रोत की साधना की बड़ी महिमा है। हर हुं ह: सर सुं स: ॐ क्लीं ह्रीं हुं फट् स्वाहा। इस मंत्र का जाप करने से अत्यंत कुपित शत्रु भी प्रसन्न हो जाता है। विजय-पहुत स्रोत के यंत्र को दीपावली को अष्टगंध से कागज पर लिखें और 108 बार पूर्ण विजय-पहुत स्रोत पढ़कर सिद्ध कर लें। हमेशा पास रखें, इससे घर में, परिवार में सब प्रकार से शांति रहती है।

* 'ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुंड स्वामिने नम:' इस मंत्र का सवा लाख जप करने से कठिन कार्य सिद्ध हो, दरिद्रता दूर हो, लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। यह जाप 21 दिन में पूर्ण करें, एक बार भोजन करें, ब्रह्मचर्य से रहें और भूमि पर शयन करें।

* सर्व कार्य सिद्धि के लिए 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं बलूम (ब्लूम) अहं नम:' इस मंत्र का तीनों काल सवेरे, दोपहर और सायंकाल 108 जाप करने से सर्व कार्य की सिद्धि होती है और दीपमाला से 3 दिन पहले एक समय भोजन करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें, 3 दिन तक लगातार 11,000 जाप करें। बड़ी दीपावली की रात को पूजन के समय अपनी बही में केसर या अष्टगंध से यह मंत्र लिखें।

आगे पढ़ें मंत्र साधना कैसे करें...

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मंत्र साधना कैसे करें...

मंत्र साधना से पहले उस स्थान/क्षेत्र के रक्षक देव से प्रार्थना करें। मंत्र साधना एकांत में करें।

मंत्र जाप से पहले रक्षा मंत्र- सरलीकरण कर अपनी रक्षा करें। जिन कपड़ों को पहनकर मंत्र साधना करें, वे शुद्ध हों। जप जाप कर चुकें तो उन्हें अलग उतार दें, दूसरे वस्त्र पहन लिया करें। यह वस्त्र नित्य हर दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहना करें। ब्रह्मचर्य से रहें।

मंत्र में जिस रंग की माला लिखी है, उसी रंग का आसन, धोती-दुपट्टा भी उसी रंग का हो तो श्रेष्ठ रहता है। आसन सबसे अच्‍छा डाभ का माना जाता है। मंत्र पद्मासन में बैठकर जपें। बायां हाथ गोद में रखकर दाहिने हाथ से जपें।

जो मंत्र बाएं हाथ से जपना लिखा हो, तो वहां दाहिना हाथ गोद में रखकर, बाएं हाथ से जपें। जहां स्वाहा लिखा हो, वहां धूप से जपें। इस प्रकार मंत्रों से अनेक कार्य सिद्ध होते हैं।

केवल ज्ञान प्रश्न चूड़ामणि एक लघुकाव्य चमत्कारी ग्रंथ है। इसमें मंत्र सिद्ध करने के मुहूर्त के विषय में उल्लेख है कि निम्नलिखित नक्षत्रों, वारों में यदि उल्लेखित तिथियों का सुयोग रहा तो मंत्र सिद्ध करने हेतु उपयुक्त काल माना जा सकता है।

उत्तराफाल्गुनी हस्त, अश्चिनी, श्रवण, विशाखा तथा मृगशिरा नक्षत्रों में से कोई एक नक्षत्र रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार अथवा शुक्रवार के दिन पड़ रहा हो और उसी दिन द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी अथवा पूर्णिमा की ति‍थियां पड़ रही हों, तो मंत्र सिद्धि के लिए योग बन सकता है।

साथ ही संबंधित जातक की कुंडली में उत्तम ग्रहों की महादशा, अंतरदशा, प्रत्यत्तर दशा, सूक्ष्म दशा तथा प्राणदशा का सुयोग भी बन रहा है। भद्रबाहु संहिता दिगंबर जैन परंपरा के प्रसिद्ध आचार्य श्रुतकेवली भद्रबाहु द्वारा लिखी गई है।

कोई इन्हें प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर का समकालीन व उनका भ्राता भी कहते हैं। इस ग्रंथ के अनुवादक एवं संकलनकर्ता पं. नेमीचंद्र शास्त्री का कथन है कि यह ग्रंथ 8वीं-9वीं शताब्दी का है।

प्रस्तुत ग्रंथ में 68वां श्लोक-

इत्येवं निमित्तकं सर्वं कार्यं निवेदनम।
मंत्रोऽयं जपित: सिद्धूयैद्वांरस्य प्रतिमाग्रत:।।

- अर्थात इस प्रकार कार्य सिद्धि के लिए निमित्तों का परिज्ञान करना चाहिए। निम्न मंत्रों की भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा के सम्मुख साधना करना चाहिए। मंत्र जाप करने से ही सिद्ध हो जाता है।

अष्टोत्तरशतैर्पुस्पै: मालतीनां मनोहरै:।
ॐ ह्रीं णमो अरिहताणं ह्रीं अवतर अवतर स्वाहा।
मन्त्रेणानेन हस्तस्य दक्षिणस्य च तर्जनी।
अष्टाधिकशतं वारमभिमन्तर्य मषीकृतम।। 69 ।।

- अर्थात् भगवान महावीर स्वामी की प्रतिभा के समक्ष उत्तम मालती के पुष्पों से 'ॐ ह्रीं अर्हं णमो अरिहताणं ह्रीं अवतर अवतर स्वाहा।' इस मंत्र का 108 बार जाप करने से मंत्र सिद्ध हो जाएगा। पश्चात मंत्र साधक अपने दाहिने हाथ की तर्जनी को 108 बार मंत्रित कर रोगी की आंखों पर रखें।

फिर इस मंत्र के प्रभाव का अनुभव करें। जैन दृष्टि में संहिता ग्रंथों में अष्टांग निमित्त ऋषिपुत्र, माघ नंदी, अंकलंक भट्टवोसरि आदि के नाम संहिता ग्रंथों के प्रणेता के रूप में प्रसिद्ध हैं।

विभिन्न ग्रंथों में मंत्र साधना के अनेक श्लोक उपलब्ध हैं। यदि आपके मन में कौतूहल है, तो आप अपनी शोधपूर्ण दृष्टि से अवलोकन करें। सत्यता से साक्षात्कार आपकी परादृष्टि को रहस्यमय बना सकता है।

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