जिन जनम्याजी-2, जिण बोला जननी घरे, तिण वेळाजी-2, इंद्र सिंहासन थरहरे। दाहिणोत्तरजी-2, जेता जिन जनमे यदा, दिशिनायकजी-2, सोहम ईशान बिहुं तदा ॥1॥ त्रोटक छंद तदा चिन्ते मनमां, कोण अवसर ए बन्यो, जिन जन्म अवधि नाणे जाणी, हर्ष आनंद उपन्यो। सुघोष आदे घंटानादे, घोषणा सुरमें करे, सवि देवी देवा जन्म महोत्सवे, आवजो सुरगिरिवरे ॥2॥ (यहाँ घंटा बजाना) ढाल पूर्वली एम सांभळीजी-2, सुरवर कोडी आवी मले, जन्म महोत्सवजी-2, करवा मेरु उपर चले। सोहमपतिजी-2, बहु परिवारे आवीया, माय जिननेजी-2, वांदी प्रभुने वधावीया ॥3॥ (यहाँ प्रभुजी पर चावल उछालना) त्रोटक वधावी बोले हे रत्नकुक्षी, धारिणी तुज सुत तणो, हुं शक्र सोहम नामे करशुं, जन्म महोत्सव अति घणो। एम कही जिन प्रतिबिंब थापी, पंच रूपे प्रभु ग्रही, देव-देवी नाचे हर्ष साथे, सुरगिरि आव्या वही ॥4॥ ढाल मेरु उपरजी, पांडुक वन में चिहुं दिशे, शिला उपरजी, सिंहासन मन उल्लसे। तिहां बेसीजी, शक्रे, जिन खोळे धर्या, हरी त्रेसठजी, बीजा तिहां आवी मल्या ॥5॥ त्रोटक मल्या चोसठ सुरपति तिहां, करे कलश अडजातिनां, मागधादि जल तीर्थ औषधि, धूप वली बहु भातिनां। अच्युतपतिए हुकम कीनो, सांभळो देवा सवे, क्षीर जलधि गंगा नीर लावो, झटिति जिन जन्म महोत्सवे ॥6॥
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