पर्युषण पर्व जैनों के सभी सम्प्रदायों को मान्य है। यह प्रतिवर्ष भादो मास में मनाया जाता है। श्वेताम्बर इसे कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरू कर शुक्ल पक्ष की पंचमी तक आठ दिन मनाते हैं और दिगम्बर भाद्र शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक लगातार दस दिन यह पर्व मनाते हैं।
श्वेताम्बर इसे अष्टाह्निक पर्व और दिगम्बर इसे दशलक्षण पर्व कहते हैं। यह पर्व आत्मशुद्धि, आराधना और क्षमा का पर्व है। इसे पागड्या (प्राकृतिक) भी कहते हैं, क्योंकि इससे मनुष्य अस्वाभाविकता से स्वाभाविकता में आता है और प्रकृति भी इस समय प्रभापूर्ण होती है।
प्राकृत में 'पर्युषण' के लिए मुख्यतः 'पज्जुसणा' (पर्युषण) और 'पज्जोसमणा' (पर्यूशंमाना) शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। यदि 'परि'उपसर्ग को 'उष्' (जलाना) धातु से जोड़ा जाए तो इसका अर्थ होगा, विकृतियों एवं अस्वाभाविकताओं का दाह-संस्कार करना। इस अर्थ में यह मनुष्य के पुनर्निर्माण का द्योतक है।