जैन धर्म की परंपरा के अनुसार पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी दिवस पर सभी एक-दूसरे से 'मिच्छामी दुक्कड़म' कहकर क्षमा मांगते हैं, साथ ही यह भी कहा जाता है कि मैंने मन, वचन, काया से जाने-अनजाने आपका दिल दुखाया हो तो मैं हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगता हूं।
आचार्य महाश्रमण के अनुसार- क्षमापना से चित्त में अह्लाद का भाव पैदा होता है और आह्लाद भावयुक्त व्यक्ति मैत्री भाव उत्पन्न कर लेता है और मैत्री भाव प्राप्त होने पर व्यक्ति भाव विशुद्धि कर निर्भय हो जाता है। जीवन में अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क होता है तो कटुता भी वर्ष भर के दौरान आ सकती है। व्यक्ति को कटुता आने पर उसे तुरंत ही मन में साफ कर देनी चाहिए और संवत्सरी पर अवश्य ही साफ कर लेना चाहिए।
इस दौरान लोग पूजा-अर्चना, आरती, समागम, त्याग-तपस्या, उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं। इस पर्व का आखिरी दिन क्षमावाणी दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसमें हर किसी से 'मिच्छामी दुक्कड़म' कहकर क्षमा मांगते हैं। पर्युषण पर्व के आखिरी दिन 'मिच्छामी दुक्कड़म' कहने की परंपरा है। इसमें हर छोटे-बड़े से 'मिच्छामी दुक्कड़म' कहकर क्षमा मांगते हैं।