कन्नड़भाषी होते हुए भी विद्यासागरजी ने हिन्दी, संस्कृत, मराठी और अंग्रेजी में लेखन किया। उन्होंने 'निरंजन शतकं', 'भावना शतकं', 'परीष हजय शतकं', 'सुनीति शतकं' व 'श्रमण शतकं' नाम से 5 शतकों की रचना संस्कृत में की तथा स्वयं ही इनका पद्यानुवाद किया था। उनके द्वारा रचित संसार में 'मूकमाटी' महाकाव्य सर्वाधिक चर्चित, काव्य-प्रतिभा की चरम प्रस्तुति के रूप में जाना जाता है। यह रूपक कथा-काव्य, अध्यात्म, दर्शन व युग-चेतना का संगम है।