10 दिनों तक चलने वाले दिगंबर जैन समाज के पयुर्षण पर्व के बारे में सभी जानते हैं। यह पर्व भाद्रपद माह की ऋषि पंचमी से अनंत चर्तुदशी तक मनाते हैं। जिसे दसलक्षण पर्व भी कहा जाता है। इस दौरान समग्र जैन समाज में अच्छी-खासी हलचल देखी जा सकती है।
सभी धर्मावलंबी भाई-बहन इस पर्व को मनाते हैं। खासतौर से इन दस दिनों में बाहर का भोजन-पानी वर्जित रहता है। सभी लोग यहाँ तक कि छोटे से छोटे बच्चे भी श्रद्धापूर्वक इस नियम-धर्म का पालन करते है।
आत्म शुद्धि में सहायक इन दस दिनों में लोग दस उपवास, तेला, अठ्ठाई, एकासन, रात्रि भोजन-पानी का त्याग जैसी लंबी बिना कुछ खाए, बिना कुछ पिए, निर्जला जैसी तपस्या करते हैं और कोई-कोई तो दस दिनों तक निर्जला या फिर एक बार गरम जल लेकर इन व्रतों को करते हैं। पूजा-पाठ पर ज्यादा-से-ज्यादा ध्यान दिया जाता है।
क्षमावाणी पर्व
पयुर्षण पर्व की समाप्ति के बाद क्षमावाणी का कार्यक्रम होता है, जिसमें हर छोटे-बड़े सभी लोग जाने-अनजाने में अपने द्वारा हुई गलतियों के लिए सभी से क्षमा माँगते हैं।
सभी यही चाहते हैं कि दस दिनों में तप करके आत्मकल्याण का मार्ग अपनाकर मोक्ष की ओर कदम बढ़ाएँ। जाने-अनजाने में हुए गलत कार्यों के लिए भगवान से क्षमायाचना करते हुए अपनी आत्मसाधना में तल्लीन होकर ये दस दिन बिताते है।
इन दिनों जगह-जगह विराजमान साधु-संत अपने प्रवचन की मधुर वाणी सुनाकर लोगों को मोक्ष का मार्ग बताते हैं। इन दस लक्षण पर्व पर सभी लोग पूजा-अर्चना, भक्ति, सामायिक, कल्पसूत्र या तत्वार्थ सूत्र का वाचन और विवेचन करते हुए अपने दस दिन व्यतीत करते हैं। इन दिनों धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
पयुर्षण पर्व की समाप्ति के बाद क्षमावाणी का कार्यक्रम होता है, जिसमें हर छोटे-बड़े सभी लोग जाने-अनजाने में अपने द्वारा हुई गलतियों के लिए सभी से क्षमा माँगते हैं। भगवान महावीर स्वामी के उपदेश 'अहिंसा परमो धर्म' और 'जिओ और जीने दो' की राह का अनुसरण करके हर आदमी अपने मन के क्रोध, लोभ, अहं, को त्यागकर क्षमा माँगते हैं।
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भगवान ने सिर्फ मानव को ही बोलने की शक्ति प्रदान की है। और आज हर इंसान अहं के वशीभूत होकर जी रहा है। उसकी आँखों पर पड़ी अहंकार की यह पट्टी इंसान के देखने-समझ ने की शक्ति खो देती है। उसके मन में निरंतर उठने वाले विचारों से आदमी आसानी से मुक्त नहीं हो पाता और इसीलिए मनुष्य चाहकर भी अहं के लोभ से मुक्त नहीं हो पाता।
दस दिनों में किया गया धर्म आपके जीवन में संतुष्टि का भाव लाता है। पर्युषण पर्व के दौरान किया गया आत्मशुद्धि का यह तप मनुष्य के जीवन को उज्ज्वल कर देता है। धर्म की ऊँगली पकड़कर चलने वाला मनुष्य हमेशा मोक्ष को प्राप्त होता है।
जीवन में कई बार आपके सामने ऐसे मौके भी आते है जिस समय झूठ बोले बिना काम नहीं चल सकता तो वहाँ झूठ भी बोलना पड़ता है लेकिन अगर मनुष्य अपनी गलतियों को स्वीकारने की हिम्मत रखता है तो शायद उसके पापों की संख्या कुछ कम हो सकती है।
जीवन में कई बार आपके सामने ऐसे मौके भी आते है जिस समय झूठ बोले बिना काम नहीं चल सकता तो वहाँ झूठ भी बोलना पड़ता है लेकिन अगर मनुष्य अपनी गलतियों को स्वीकारने की हिम्मत रखता है तो शायद उसके पापों की संख्या कुछ कम हो सकती है।
यह वही समय है जब आप अपने अहं को छोड़कर-त्यागकर, अपने चंचल मन को वश में करके अपने से बड़े हो या छोटे, सभी से बिना झिझक क्षमा माँगें और क्षमा करने का भाव भी अपने मन में रखें।
आपकी आत्मा तभी शुद्ध रह सकती है जब आप स्वयं भी गलती करने से बचें। और दूसरे को क्षमा कर समस्त जीवों को अभयदान दें। तभी हमारा क्षमावाणी पर्व मनाना सार्थक होगा।