भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष के चन्द्रमा में हुआ था। इस दिन को कृष्ण जन्मोत्सव के साथ मनाते हैं।
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धर्मपरायण बच्चे, युवा, वृद्ध सभी आयु के लोग इस दिन व्रत रखते हैं। यह व्रत सर्वमान्य व पापनाशक माना गया है। इसमें अष्टम के उपवास और नवमी तिथि के समापन से व्रत की पूर्ति होती है।
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व्रत से एक दिन पहले हल्का भोजन करके मन और इंद्रियों को नियंत्रण में रखें।
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उपवास वाले दिन सुबह स्नान आदि नित्य कर्म के बाद नवग्रहों, पांच तत्वों और मन ही मन अपने पूर्वजों को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठकर श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान करें।
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उस दिन रात्रि 12 बजे तक कीर्तन, भजन व उपासना से बाल कृष्ण के जन्म की प्रतीक्षा में स्नेहपूर्ण पल बिताएं।
रात्रि 12 बजे प्रेमपूर्वक पुष्प, धूप, दीप, कपूर से आरती उतारें, भोग लगाएं।
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चंद्रमा को दूध मिश्रित जल से अर्घ्य देकर प्रसाद खाने से आत्मिक, मानसिक, शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।