करवा चौथ : मजबूत होता रिश्‍ता

- कार्तिक

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दिनभर उपवास के बाद शाम को 18 साल की लड़की से लेकर 75 साल की महिला नई दुल्हन की तरह सजती-सँवरती है, पूजा के साथ-साथ मिलना-मिलाना, हँसी-ठिठौली करती है... निर्जल उपवास में दमकती है, उनके दाम्पत्य की दीप्ति... चाँद को देखती है और फिर अपने चाँद से पति को...पति को भी तो वह चाँद की तरह लगती है... एक खूबसूरत रिश्ता जो साल-दर-साल मजबूत होता है, करवा चौथ के दिन...। कुँवारी लड़कियाँ (कुछ संप्रदायों में, सगाई के बाद) शिव की तरह के पति की चाहत में, तो शादीशुदा स्त्रियाँ अपनी पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं।

परंपरा में सौन्दर्य का समावेश तब होता है, जब पति भी व्रत करते हैं। परंपरा में एक वैल्यू एडीशन होता है और दाम्पत्य में जुड़ाव के लिए बना यह चलन और पक्का हो जाता है

हमारी परंपराएँ सनातन काल से चली आ रही हैं, अब तो इन्हें केवल लोक-परंपरा भी नहीं कहा जा सकता है, इनका रिश्ता पौराणिकता से जो है, लेकिन हमारे समाज की खासियत यह है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश करते रहते हैं, कभी करवचौथ पत्नी के पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की उष्मा से दमक और महक रहा है।

कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर उत्तर भारतीय परिवारों, खासकर उत्तरप्रदेश, पंजाब, राजस्थान, बिहार और मध्यप्रदेश में इसे पूरी परंपरा और उल्लास से मनाया जाता है। शिव-पार्वती युगल हमारे पौराणिक साहित्य के सबसे आदर्श और सबसे आकर्षक युगल हैं। और इसीलिए हमारे यहाँ पति-पत्नी के बीच के सारे पर्व और त्योहार इन्हीं पति-पत्नी से जुड़े हुए हैं।

चाहे वह हरतालिका तीज हो, मंगलागौरी, जया-पार्वती हो या फिर करवा चौथ ही क्यों न हो? अपने पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए किया जाने वाला यह व्रत हर विवाहित स्त्री के जीवन में एक नई उमंग लाता है। कुँवारी लड़की अपने लिए शिव की तरह प्रेम करने वाले पति की कामना करती है और इसके लिए सोमवार से लेकर जया-पार्वती तक के सभी व्रत पूरी आस्था से करती है। इसी तरह करवा चौथ का संबंध भी शिव और पार्वती से है।

करवा चौथ पति भी करते हैं
समय और परिवेश के बदलने के साथ ही करवा चौथ का स्वरूप भी इन दिनों बदल गया है। आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, लेकिन इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। मूलतः महिलाओं द्वारा किए जाने वाले इस व्रत से आजकल पति भी जुड़ने लगे हैं। पत्नी के समर्पण और प्रेम का प्रतिदान पति भी उनके साथ उपवास कर दे रहे हैं। इस बहाने दोनों के बीच एहसास का एक मजबूत तंतु आकार लेता है, जो रिश्तों को और आकर्षक और प्रभावी बनाता है।

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इसके माध्यम से परिवार में एक नए तरह के संस्कार स्वरूप ग्रहण कर रहे हैं, जो बड़े होते बच्चे, स्त्रियों खासकर अपनी पत्नी के प्रति संवेदनशीलता के अहसास को विरासत की तरह ग्रहण करेंगे। हालाँकि इनकी संख्या उतनी नहीं है, लेकिन यह बदलाव भी महत्वपूर्ण हैं। कम से कम पत्नी के समर्पण की भावना को महसूस तो किया ही जा रहा है। इससे इस मधुर और आकर्षक रिश्ते में एक नई मिठास घुलती है। भावना का तंतु पुरुष मन से स्त्री मन तक पहुँचता है।

आता है एक-से जीवन में बदलाव
हमारे समाज की एक महत्वपूर्ण विशेषता इसकी सामूहिकता है। पहले तो जब जीवन उतना जटिल नहीं हुआ था, रोजगार का प्रश्न इतना विकराल नहीं हुआ था, तब तो परिवार एकसाथ ही रहते थे और हर दिन एक त्योहार ही हुआ करता था। समय बदला, जीवन जटिल हुआ, रोजगार की वजह से परिवार बिखर गए। अब पूरे परिवार को एकत्रित होने के लिए पर्व या विवाह ही बहाना बन पाते हैं। करवा चौथ के बहाने परिवार की महिलाएँ इकट्ठी होती हैं, एक-दूसरे से हँसी-ठिठौली करती हैं। सज-सँवरकर कुछ क्षण अपने को भी देती हैं।

एक-से गुजर रहे जीवन में बदलाव के कुछ सुखद क्षण आते हैं। महिलाओं के बहाने बच्चों और पुरुषों की भी मेल-मुलाकात होती है, परिवार एकसाथ अच्छा समय जीता है। शहरों में तो यह भी बदलाव आया कि महिलाएँ कई-कई दिनों तक करवा चौथ की तैयारी करती हैं। ब्यूटी पार्लरों, बुटिक और साड़ियों की दुकानों पर महिलाओं की भीड़ उमड़ती है।

संस्कृति में ग्लैमर का स्पर्श
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70 के दशक में संस्कृतिवादियों को यह डर लगने लगा था कि आधुनिकता की आँधी हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ करेगी। युवा हमारी संस्कृति और परंपरा से दूर होते चले जाएँगे। जैसे-जैसे महिलाओं और लड़कियों में शिक्षा का प्रसार बढ़ेगा, वैसे-वैसे वे परंपरा से दूर होती चली जाएँगी, इससे एक पूरी पीढ़ी ही संस्कार से अनजान हो जाएगी, लेकिन हो बिलकुल उल्टा रहा है।

अब संस्कृति में ग्लैमर का स्पर्श देने के बाद करवा चौथ जैसे व्रत से सिर्फ प्रौढ़ महिलाएँ या पारंपरिक ढाँचे में जी रही महिलाएँ ही नहीं बल्कि आधुनिक महिलाएँ और कम्प्यूटर के क्षेत्र में पढ़ रही या काम कर रही महिलाएँ भी पूरी परंपरा के साथ करवा चौथ का निर्वहन कर रही हैं। बल्कि यूँ कहना ज्यादा मौजूँ होगा कि आधुनिकता ने परंपरा के धागों को और मजबूत कर दिया है।