धातु व मिट्टी के करवे : पौराणिक मान्यता है कि धातु से बने करवे से चौथ का पूजन करना फलदायी होता है, लेकिन यथा शक्ति मिट्टी के करवे से पूजन भी किया जा सकता है। मान्यता है कि इस दिन के बाद से ही ठंड शुरू हो जाती है। करवे की टोटी से ही जाड़ा निकलता है और धीरे-धीरे वातावरण में ठंड का एहसास बढ़ जाता है।
उगते चांद को छलनी में देख, जल से भरे करवे से अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद से ही मौसम में सर्द अहसास तेजी से बढ़ने लगता है। लोक मान्यता है कि करवा चौथ के पूजन के बाद ही करवे की टोटी से जाड़ा निकलता है। फिर दीवाली से ठंड तेजी से बढ़नी शुरू हो जाती है।
चांद को अर्घ्य : जब चांद निकलता है तो सभी विवाहित स्त्रियां चांद को देखती हैं और सारी रस्में पूरी करती हैं। रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाता है तब चंद्रमा को छलनी से देखकर महिलाएं अर्घ्य देती हैं और आरती उतारकर और अपने पति का दर्शन कर उनकी पूजा करती हैं। इससे पति की उम्र लंबी होती है। तत्पश्चात पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं। जीवन के हर मोड़ पर अपने पति का साथ देने वादा करती हैं।