जबलपुर: पांचवीं बार खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हिस्सा लेने जा रही हरियाणा के करनाल की तीरंदाज रिद्धि की कहानी औरों से जुदा है। आमतौर पर खिलाड़ी पहले अपनी पसंद के खेल को चुनता है और फिर गुरु की तलाश पूरी कर उसमें महारथ हासिल करता है, लेकिन रिद्धि के पिता ने अपनी बेटी के लिये तीरंदाजी को चुनने के बाद पहले खुद इसे सीखा और फिर बेटी के पहले गुरु बने।
आइस क्यूब का बिजनेस करने वाले मनोज कुमार की इस लगन का नतीजा ही है कि उनकी 18 साल की बेटी पांचवीं बार खेलो इंडिया यूथ गेम्स की शोभा बढ़ाने जा रही है। दो साल पहले रिद्धि को भारत सरकार की टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना (टॉप्स) के विकासशील युवाओं की सूची में जगह मिली थी। रिद्धी मानती हैं कि हर बीतते साल के साथ खेलो इंडिया यूथ गेम्स बेहतर हुए हैं और यह युवा खिलाड़ियों के लिये एक बेहतरीन मंच बन चुका है।
रिद्धि ने 2018 में नयी दिल्ली में आयोजित पहले खेलो इंडिया स्कूल गेम्स में हिस्सा लिया था, जहां वह आठवें स्थान पर रहीं। पुणे में वह चौथे स्थान पर रही थीं, जबकि गुवाहाटी में उसने अपने प्रदर्शन को बेहतर करते हुए कांस्य पदक जीता था। पिछले साल पंचकूला में हुए खेलों में रिद्धि ने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके स्वर्ण पदक जीता था।
अपने अंतिम यूथ खेलों में हिस्सा ले रहीं रिद्धि ने कहा, “मेरे पापा खुद तीरंदाजी कोच हैं। उन्होंने मुझे सिखाने के लिये पहले खुद तीरंदाजी सीखी है। वह अब करनाल में और कुरुक्षेत्र में अकादमी में कोचिंग देते हैं। मैं जहां से हूं, वहां आसपास कोई तीरंदाजी अकादमी या कोच नहीं है, लिहाजा मेरे पापा ने गुरुग्राम से तीरंदाजी सीखी फिर मुझे लकड़ी के कमान पर सिखाई। मैंने चार साल लकड़ी की कमान चलायी है। फिर 2016 में मैंने मुड़ा हुआ धनुष इस्तेमाल करना शुरू किया। मेरे पापा का मानना था कि तीरंदाजी एक व्यक्तिगत खेल है और इसमें दूसरे खेलों की तरह चोटें कम लगती हैं।”