poetry on squirrel
रखे हिमालय को कंधे पर,
चली सूर्य की ओर गिलहरी।
कहां खतम है आसमान का,
ढूंढ़ रही है छोर गिलहरी।
अंबर से वह देख रही है,
धरती की ओझल हरियाली।
इसी बात पर जोर-जोर से,
मचा रही है शोर गिलहरी।
श्वांस और उच्छवांस कठिन है,
धरती पर अब जीवन भारी।
यही सोचकर आज हो रही,
है उदास घनघोर गिलहरी।
कण-कण दूषित आसमान का,
मिट्टी की रग-रग जहरीली,
यही बताने आज रही है,
सबको ही झखझोर गिलहरी।
आंखों में आंसू आते हैं,
दशा देखकर भारत मां की,
कल क्या होगा सोच-सोच कर,
होती भाव-विभोर गिलहरी।