घर-घर में नाच रही है खुशहाली।
दूर हुए अंधियारे, लगें उजले पहर
जगमगा उठे हैं हर गांव, हर शहर
रामू-श्यामू भी कर रहे हैं धमाके,
खुशियों से भर ली, पटाखों की झोली।
भेदभाव भुलाकर, गले मिल रहे हैं
गीत खुशी के गाए, कैसे झूम रहे हैं
मन में स्नेह भाव, बोले मीठी बोली।
साभार- देवपुत्र