छोटे बच्चों की कविता : सूरज को संदेशा दो मां

सूरज को संदेशा दो मां,
ठीक नहीं है गाल फुलाना।
बिना बात के लाल टमाटर,
बनकर लाल-लाल हो जाना।
 
खुद तपते हो हमें तपाते।
बेमतलब ही हमें सताते।
गाल फुलाकर रखे आपने,
न हंसते न मुस्करा पाते।
 
ऐसे में उम्मीद कहां है,
तुम से कुछ भी राहत पाना।
आंखें लाल रिस रहा गुस्सा।
बोलो अंकल यह क्या किस्सा?
 
गठरी में बांधो अंगारे,
बंद करो गर्मी का बस्ता।
ठीक नहीं नभ की भट्टी में,
लू की खिचड़ी अलग पकाना।
 
सुबह-सुबह जब तुम आते हो,
मौसम मधुर गीत गाता है।
जब गज भर चढ़ जाते नभ में,
धरती, अंबर डर जाता है।
ऊपर चढ़ने का मतलब क्या,
होता है अभिमान दिखाना?

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