और संजा बन जाती जैसे दुल्हन
प्रकृति के प्रति स्नेह को
दीवारों पर जब बांटती बेटियां
लगता भ्रूण हत्याओं से मानों
सुनी दीवारें भी रोने लगी है
मेरी संजा मुझे न रुला बार-बार
संजा मांडने का दृढ़ निश्चय
लोक संस्कृति को अवश्य बचाएगा
बेटियों को लोक गीत अवश्य सिखाएगा