जावेद और हमीद की बकरी

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जावेद और हमीद उस दिन बहुत खुश थे। आखिर उनके घर में आज एक नया मेहमान जो बढ़ गया था। इस नए मेहमान को लेकर अब्बू अफजल मियाँ भी खुश थे पर इन जावेद और हमीद के आगे उनकी खुशी कुछ भी नहीं थी। जावेद और हमीद ने आपस में बातचीत करके इस नए मेहमान को बिजली नाम‍ दिया था। छोटे-छोटे पाँव, रुई जैसा सफेद रंग और सरपट भागने वाली, तो इसे और क्या नाम देते। नाम रखने में भी दोनों के बीच थोड़ी खींचतान हुई। जैसे जावेद को चाँदनी नाम पसंद था पर चाँदनी दो घर छोड़कर रहने वाली माजिद मियाँ की बकरी थी तो यह नाम देने पर गड़बड़ होने की पूरी गुंजाइश रहती।

अब जावेद अपनी चाँदनी को बुलाता और माजिद मियाँ की चाँदनी दौड़ आती तो फिर! बहुत विचारकर बिजली नाम ठीक बैठा। बिजली नाम से दूसरे थोड़ा चमककर भी रहेंगे यह सोचकर यह नाम दे भी दिया। बिजली नाम इसलिए भी दिया क्योंकि कस्बे में उन दिनों बिजली बिन बताए चली जाती और फिर आने का नाम ही नहीं लेती तो लोग दिन भर बिजली की बातें करते रहते। बिजली नाम जावेद और हमीद दोनों को इस कारण भी जम गया।

फिर कस्बे में रविन्दर की भैंस का नाम भी बिजली था पर बेचारी पिछले साल नहीं रही तो उसकी याद में दोनों ने अपनी बकरी का नाम बिजली रख दिया। हमीद बोला एक बकरी का नाम देने में भी इतने झंझट हैं। और फिर पूरी दुनिया में जाने कितनी बकरियाँ हैं अल्लाह जाने।

बिजली इधर से उधर उछलकूद करती रहती थी और दोनों को उसके साथ खेलने में मजा आता था। घर में उसके लिए एक जगह तय हो गई कि वह रात को कहाँ सोएगी। दोनों ने उसके लिए एक पुरानी दरी बिछा दी ताकि वह आराम से उस कोने में रह सके। गले में रस्सी जरूर बाँधी ताकि रात बेरात कहीं निकल न जाए पर इस तरह बाँधी कि उसके गले में किसी तरह की तकलीफ न हो। बिजली के साथ दिन बड़े मजे से जा रहे थे। तीनों की दोस्ती साल भर से ज्यादा की हुई और बिजली एक खूबसूरत बकरी बन गई। वह कस्बे की सारी ब‍करियों को पीछे छोड़ती थी। आखिर हमीद और जावेद उसका ख्याल भी ऐसे ही रखते थे। एक रात उन दोनों ने बिजली को अपनी जगह बाँधा और फिर सो गए।

  जावेद और हमीद सोच में पड़ गए कि आखिर कौन हो सकता है जिसने उनकी बकरी चुराई। कस्बे में बाहर से तो चोर आकर रातोंरात बकरी चुराकर भागने से रहा। फिर चोर आसपास ही कहीं है। तो चोर को ढूँढा जाए। हमीद ने जावेद से कहा। जावेद ने हाँ में सिर हिला दिया।      
अगले दिन सुबह बिजली अपनी जगह पर नहीं मिली। जावेद और हमीद ने जब सुबह उठकर देखा तो उन्होंने अम्मी से पूछा। अम्मी ने कहा कि अब्बू से पूछो। दोनों अब्बू के पास पहुँचे तो अब्बू ने कहा ढूँढो आसपास जाकर, यहीं कहीं होगी। दोनों ने आसपास सब जगह पूछा कहीं भी कुछ पता नहीं चला। जब दोनों लौटकर आए तो अम्मी और अब्बू को भी लगा कि उनकी बकरी कहीं कोई चुरा तो नहीं ले गया। बकरियों की इक्का-दुक्का चोरी कस्बे में पहले भी हुई थीं और आज तक पता नहीं चला कि चोर कौन है। अब्बू ने अफसोस जताया कि उनकी अच्छी बकरी के साथ बुरा हुआ। पर अब क्या कर सकते थे।

जावेद और हमीद सोच में पड़ गए कि आखिर कौन हो सकता है जिसने उनकी बकरी चुराई। कस्बे में बाहर से तो चोर आकर रातोंरात बकरी चुराकर भागने से रहा। फिर चोर आसपास ही कहीं है। तो चोर को ढूँढा जाए। हमीद ने जावेद से कहा। जावेद ने हाँ में सिर हिला दिया। बिजली के बगैर दोनों को अच्छा नहीं लग रहा था।

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बिजली थी तो पूरा दिन उसे चराने के बहाने इधर से उधर घूमा करते थे। आज दोनों का मन बड़ा उदास था। दोनों ने तय किया कि वे बिजली के चोर को ढूँढकर रहेंगे और अपनी बिजली वापस लेंगे। बस यह कहानी का इंटरमिशन होता है। इसके बाद दोनों ने बिजली चोर का सुराग लगाना शुरू किया। हमीद ने जावेद से कहा कि जिसने भी बिजली को चुराया है वह उसे कुछ न कुछ खाने को तो जरूर देता होगा तो क्यों हम वहाँ से शुरू करें जहाँ पाला (बकरी और गाय को खिलाने का चारा) मिलता है। जावेद बोला - यह ठीक तरीका है।

दोनों सीधे पाला मंडी पहुँच गए। वहाँ दुकानदार पाला बेच रहे थे। हमीद ने कहा कि दो से मैं पूछता हूँ दो से तुम पूछो। दोनों ने पूछताछ की पर इसमें कुछ भी खास पता नहीं चला। दोनों वहाँ से लौट आए। यह तीर बेकार चला गया। अब क्या किया जाए। अब जावेद बोला - क्यों न बिजली को जहाँ बाँधते थे वहाँ देखें शायद कोई सुराग हाथ लग जाए। फिर जावेद ने फिल्मों वाला डायलॉग बोला - हर चोर अपने पीछे कोई न कोई सुराग जरूर छोड़ जाता है।

दोनों ने बिजली के खूँटे के आसपास तलाश की तो उन्हें एक बटन मिला। यह तो कोट का बटन है। पर यह है किसका? अब्बू के पास तो ऐसा कोई कोट नहीं है। जावेद ने उत्सुकता से पूछा। हमीद ने कहा - यही तो पता करना है। तो फिर चलो गोवर्धन चाचा के पास।

गोवर्धन चाचा कस्बे के माने हुए दर्जी थे। उन्होंने बटन को उलट-पलट कर देखा और फिर कहा कि याद तो नहीं आता पर ऐसे कोट में ऐसे बटन लगवाने का चलन पाँच साल पहले खूब था। फिर उन्होंने बटन को थोड़ी देर देखकर कहा कि इस तरह के बटन वाले पाँच कोट उन्होंने ही तैयार किए थे। दो तो बाहर के गाँव से किसी ने बनने भेजे थे और तीन अपने ही कस्बे में सिलवाए गए थे। एक उस्मान कसाई ने सिलवाया था, एक राजाराम ने बनवाया था और एक टिल्लू के लिए बनाया था। जावेद ने तुरंत कहा- उस्मान कसाई, राजाराम और टिल्लू। इन तीनों में से ही कोई एक होगा। इस कामयाबी से खुश दोनों घर लौट आए।

घर आकर दोनों विचार में पड़ गए कि अब क्या किया जाए। आखिर तीनों से सीधे कैसे पूछें। दोनों ने तरकीब भिड़ाई और सीधे राजाराम के घर पहुँचे। राजाराम काम से कहीं बाहर गया था तो दोनों ने राजाराम की पत्नी से कहा कि हमें गोवर्धन चाचा ने भेजा है। उन्होंने राजाराम चाचा का कोट मँगवाया है। उन्हें किसी को दिखाना है। राजाराम की पत्नी ने तुरंत कोट दे दिया।

इस कोट में सारे बटन मौजूद थे। दोनों ने कहा कि राजाराम चाचा वैसे भी चोर नहीं लगते। अब बचे उस्मान कसाई और टिल्लू। तो अगला नंबर लगा उस्मान कसाई का। दोनों उस्मान कसाई के घर पहुँचे तो उस्मान भाई घर पर ही मिल गए। दोनों ने कहा कि गोवर्धन चाचा ने भेजा है। आपका कोट लाने के लिए। उन्हें एक नाप के लिए चाहिए। ग्राहक दुकान पर ही खड़ा है। उस्मान कसाई ने कहा कि अभी वह जरूरी काम से बाहर जा रहा है कल कोट भिजवा देगा।

दोनों को कल का इंतजार करना पड़ेगा। पर इसी बीच उन्हें टिल्लू दिख गया। दोनों ने उसे घेर लिया और पूछा टिल्लू भाई, टिल्लू भाई। दोनों ने कहा कि अब्बा को आपका कोट चाहिए उन्होंने देखने के लिए मँगवाया है। टिल्लू ने घर से दोनों को कोट दे दिया। कोट में दोनों ने देखा कि बटन पूरे हैं। तो इसका मतलब है कि उस्मान कसाई ही हमारी बिजली का चोर है। हमीद ने कहा। जावेद ने कहा पर यह बात साबित करना पड़ेगी। हमीद - हम दोनों साबित भी कर देंगे। दोनों ने एक तरकीब निकाली।

दोनों ने शाम के समय उस्मान कसाई के बाड़े के पीछे वाली दीवार पर चढ़कर देखा तो उन्हें बाड़े में बिजली बँधी हुई दिखाई दी। बिजली उन दोनों को देखकर में... में... करने गी। पर दोनों ने उसे इशारे से चुप करा दिया। तो अब तो तय हो गया कि बिजली यहीं है।

वापस लौटकर दोनों ने रात का एक प्लान बनाया और घर चले गए। रात को 11 बजे जब सभी की नींद लगी थी तो दोनों चुपचाप उठे और उस्मान कसाई के बाड़े के बाहर जाकर चिल्लाने लगे। उस्मान... अरे ओ उस्मान... बकरियाँ बाहर निकालो....बाड़े में साँप घुस गया है। उस्मान हड़बड़ाकर उठा और उसने बाड़े का दरवाजा खोलकर बकरियों की रस्सी खोल दी। रस्सी खुलते ही बिजली अपने नाम जैसी तेजी से बाहर आ गई। तब तक आवाज से कुछ लोग आ गए थे। जावेद और हमीद ने शोर मचाकर कस्बे के और भी लोगों को इकट्‍ठा कर लिया।

लोगों ने आते ही कहा अरे मिल गई तुम्हारी बकरी। जावेद और हमीद बोले - हाँ, उस्मान कसाई ने हमारी बकरी चुराई थी। इसे सजा मिलनी चाहिए। उस्मान कसाई ने हाथ जोड़कर माफी माँगी। मुझे माफ कर दो मैं शर्मिंदा हूँ। आइंदा ऐसी गलती दुबारा कभी नहीं होगी। जावेद और हमीद ने उसे माफ कर दिया और हिदायत दी कि अब बिजली से दूर ही रहना। दोनों को अपनी बकरी मिल गई अब उन्हें और क्या चाहिए था। दोनों रात को बिजली को घर लाए और फिर उस रात बिजली के आने से घर रोशन हो गया।