नाटक : बूढ़ी मां की सीख

- पद्मा चौगांवक
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पात्

शिवाजी (तरुण)

शिवाजी का एक युवा साथी (शिवाजी से कुछ लंबा)

बुढ़िया

एक बालक (उम्र 10 वर्ष)

एक सेवक, कुछ दरबारी और संदेशवाहक

स्थान- सह्याद्रि के जंगल में एक बुढ़िया की झोपड़


झोपड़ी के अंदर का दृश्य- एक बुढ़िया बैठी कथरी सिल रही है। एक बालक पास में बैठा है।

आवाज आती है- कोई है...?

बुढ़िया- कौन है देख।

(बालक उठकर द्वार खोलता है। दो युवकों का प्रवेश, लंबा युवक कुछ कहना चाहता है। दूसरा तेजस्वी युवा उसे इशारे से चुप कराकर स्वयं कहता है।)

हम हैं भटके हुए राही... आसरा मिलेगा?

बुढ़िया- आओ, अंदर आ जाओ।

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दूसरा युवक- हम जंगल में‍ शिकार पर आए थे, राह भटक गए हैं।

बुढ़िया- कहां के रहने वाले हो? सह्याद्रि के जंगलों को जानते हो तो ठीक वरना यहां भटके तो आधी उम्र बाहर निकल पाने में गंवा दोगे।

युवक- रात होने से रास्ता भटक गए हैं, जंगल तो देखे-भाले हैं।

बुढ़िया (बालक से)- जा बेटा, पाहुनों के लिए पानी ला।

(बालक लोटे में पानी लाता है। दोनों पानी पीते हैं।)

लंबा युवक- मैं घोड़े बांधकर आता हूं।

बालक- क्या आप घोड़ों पर आए हैं? मैं भी घोड़ों की सवारी करना चाहता हूं, शिवाजी महाराज की तरह।

बुढ़िया (हंसकर)- बातें बहुत करता है, शिवाजी की मस्तानी टोली में शामिल होने की लालसा है इसे। उनकी तरह स्वराज्य के लिए लड़ना चाहता है।

बालक- बस, नाम सुना है- देखा नहीं कभी।

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पर उनकी बहादुरी की कहानियां खूब सुनी हैं। गांव के लोग सुनाते हैं, दादी तो उनके गीत गाती हैं।

तेजस्वी युवक- अच्‍छा?

बुढ़िया- लोग तो आस लगाए बैठे हैं... शिवाजी राजा हमें आदिलशाही गुलामी से आजाद कराएगा, यवनों के जुल्मों से बचाएगा... हमें सुराज दिलाएगा!!! भोले हैं, नहीं जानते एक तोरण गढ़ या मुरूंबदेव पर कब्जा कर लेने से क्या सुराज हासिल हो जाएगा?

(युवक (शिवाजी) उठकर बुढ़िया के पास बैठ जाते हैं।)

... बड़ी मां, बताओ भला शिवाजी को और क्या करना चाहिए सुराज पाने के लिए?

(दूसरा युवक लौटकर आता है।)

युवक- अम्मा बताएगी- शिवाजी महाराज को...।

(शिवाजी फिर उसे चुप रहने का इशारा करते हैं।)


शिवाजी- बताओ न बड़ी मां, क्या करना चाहिए शिवाजी को?

बुढ़िया (धीमी आवाज कर)- दुश्मन बहुत जालिम है, बलवान है, धनवान है... सारे साधन हैं उसके पास।

बालक- तो क्या हुआ दादी, शिवाजी महाराज के पास जोश है। दादी! मैं भी बड़ा होकर शिवाजी महाराज की फौज में जाऊंगा।

बुढ़िया- हां, बेटा चले जाना। पहले मैं सबके लिए भोजन लाती हूं- मुसाफिर भूखे होंगे।

(बुढ़िया चली जाती है। दोनों युवक धीरे-धीरे कुछ बात करते हैं।)

बालक- पाहुने आपके पास तलवार, कटार भी है?

युवक- हां बालक! जंगल में शस्त्र तो रखने पड़ते हैं साथ।

बालक- क्या आप मुझे शस्त्र चलाना सिखाओगे?

शिवाजी- हां-हां क्यों नहीं?

(बुढ़िया भोजन लेकर आती है। तीन पत्तलों पर खिचड़ी परोसती है और तीन दोनों में मट्ठा। दोनों युवक व बालक खाने बैठते हैं। शिवाजी दोनों का सारा मट्ठा खिचड़ी पर उड़ेल देते हैं। मट्ठा पत्तल से बाहर निकलकर बहने लगता है।)


बालक- दादी, देखो जरा पाहुने को, सारा मट्ठा बहा दिया।

बुढ़िया दादी- अरे... रे, ये क्या किया तुमने!! उस पगले शिवाजी की तरह तुम भी एकदम नादान निकले।

शिवाजी (चौंककर)- शिवाजी की तरह?

बुढ़िया- और नहीं तो क्या। इतना भी नहीं जानते, पहले खिचड़ी का घेरा बना लेते, फिर उस पर मट्ठा डालते... इस तरह सारा बह तो न जाता।

दूसरा युवक- मगर अम्मा, खिचड़ी और मट्ठे की शिवाजी महाराजा से क्या तुलना?

बुढ़िया (मुस्कराकर)- है न तुलना... तभी तो...

शिवाजी- बड़ी मां, खुलकर बोलो ना।

बुढ़िया- अरे बेटा, तुमने शिवाजी के बारे में सुना तो है ना? उसने तोरणगढ़, मुरुम्बदेव और कुवांरीगढ़ को कब्जे में ले लिया है...।

शिवाजी- हां-हां सुना तो है।

बुढ़िया- सुल्तान आदिलशाह के ये गढ़ लावारिस पड़े थे। उसने जीत लिए थे। बहादुर शिवाजी ने मुट्ठीभर मावले लेकर इन गढ़ों को आजाद कर लिया। गढ़ों पर भगवा झंडा फहराने भर से क्या होगा? उनकी सुरक्षा का उपाय भी तो करना होगा।

शिवाजी- सो तो है। कैसे करनी होगी इनकी सुरक्षा?

बूढ़ी मां- कैसे क्या? गढ़ की किलेबंदी की जाए। बुर्जों को मजबूत करें। युद्ध सामग्री के लिए पक्के गलियारे और मार्ग बनाएं। तटबंदी भी करनी होगी। अगर किलेबंदी मजबूत न होगी, तो दुश्मन से किले बचाना मुश्किल होगा। जैसे खिचड़ी से मट्ठा बाहर निकला, वैसे ही सब कुछ हाथ से निकल जाएगा। कहीं से भी दुश्मन दुर्ग में घुस आएगा।

युवक- वाह अम्मा, बात तो पते की है।

शिवाजी- नादान है शिवाजी, उसे इन बातों पर पहले गौर करना चाहिए।

बुढ़िया- चलो, अब बातें छोड़, भोजन कर लो।

(पर्दा गिरता है।)

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(दूसरा दृश्य- पर्दा उठता है।)

(महाराज शिवाजी का दरबार। ऊंचे आसन पर शिवाजी बैठे हैं। दो पंक्तियों में, दोनों ओर बैठे हैं- साथी, ओहदेदार और सलाहकार। बुढ़िया और बालक के साथ दो सिपाही प्रवेश करते हैं।)

बुढ़िया (घबराते हुए)- मुझे यहां क्यों बुलाया गया है महाराज? मैं गरीब बूढ़ी...।

शिवाजी- आओ, बड़ी मां, बस आपसे मिलने को जी करता है इसीलिए बुलाया...।

बालक (चौंककर)- अरे, ये तो वही मुसाफिर है, जो पिछले दिनों राह भटककर हमारे घर आए थे।

बुढ़िया- क्या? वही मुस‍ाफिर? स्वयं शिवाजी महाराज? हे भगवान (हाथ जोड़कर) भूल हुई महाराज! आपने स्वयं महाराज होने की बात मुझसे छुपाई।

मुझसे भारी भूल हुई... पर भला मैं आपको कैसे पहचानती। मेरी मति मारी गई थी, आपके लिए न जाने क्या-क्या कह दिया। मैं बूढ़ी, जाहिल, कम अक्ल कुछ भी कह गई... महाराज। मुझे क्षमा करें महाराज।

(बुढ़िया पैरों पर गिर पड़ती है।)

(शिवाजी उसे उठाकर खाली आसन पर बिठाते हैं।)


शिवाजी- नहीं बड़ी मां, तुमने तो मेरी आंखें खोल दी। अनजाने में मुझे बहुत बड़ी सीख दी है। तुम गुरु हो, अब कभी खिचड़ी से मट्ठा बहकर बाहर नहीं जाएगा। तुम्हारा ये शिवबा, पहले गढ़ों की मजबूत किलेबंदी करेगा केवल जीतने की जल्दबाजी नहीं। अब गढ़ों और दुर्गों की सुरक्षा व्यवस्था पर पूरा ध्यान दिया जाएगा।

बुढ़िया- धन्य हैं शिवाजी महाराजा। मेरी छोटी-सी बात को इतना मान दिया। जैसा सुना था, वैसा पाया।

बालक (खुश होकर)- तो क्या आप पाहुने स्वयं शिवाजी राजे हैं। क्या आप मुझे अपनी सेना में रखेंगे?

शिवाजी- हां बच्चे जरूर। आने वाले वक्त को तुम्हारी बहुत जरूरत है। अपना ये जोश बनाए रखना।

(एक सेवक आकर मुजरा करता है।)

सेवक- महाराज, संदेशवाहक मिलना चाहता है।

महाराज- आज्ञा है।

संदेशवाहक- महाराजाधिराज की जय। अभिवादन करता है। महाराज खुशी का समाचार है तोरणगढ़ पर खुदाई में धन-दौलत से भरे ताम्बे के पात्र मिले हैं।

शिवाजी (प्रसन्नता और आश्चर्य के साथ)- क्या! सब भवानी मां की कृपा है। बड़ी मां, अब आपके आशीर्वाद से तटबंदी और किले बुर्जों का काम आसानी से पूरा होगा। धन भी प्राप्त हो गया है।

बुढ़िया- (गदगद होकर)- सदा यशस्वी हो राजे। मां भवानी तुम्हारे ही हाथों, इस देश को दुष्ट दानवों की गुलामी से मुक्त कराएगी।

शिवाजी बूढ़ी मां को अंगवस्त्र और स्वर्णमुद्रा देकर उसका सम्मान कर आशीष लेते हैं और बालक को एक तलवार और घोड़ा भेंट करते हैं और प्रसन्न बालक को गले लगाते हैं।

सभी बोल उठते हैं-

'तुलजा भवानी की जय!
शिवाजी महाराज की जय!
शिवाजी राजे यशस्वी हो।'

साभार - देवपुत्र

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