तभी दशरथजी ने आगे बढ़कर जनकजी के चरण छू लिए।
चौंककर जनकजी ने दशरथजी को थाम लिया और कहा- 'महाराज, आप बड़े हैं, वरपक्ष वाले हैं, ये उल्टी गंगा कैसे बहा रहे हैं?'
इस पर दशरथजी ने बड़ी सुंदर बात कही- 'महाराज, आप दाता हैं, कन्यादान कर रहे हैं। मैं तो याचक हूं, आपके द्वार कन्या लेने आया हूं। अब आप ही बताएं कि दाता और याचक दोनों में कौन बड़ा है?'