कला की उपयोगिता

रिचर्ड ब्रूम पिछले दिनों जब अपने देश में घूम रहा था तो उसने अपने आसपास गौर किया। उसने देखा कि शहरों में तो सफाई ठीक-ठाक है, पर गाँवों की तरफ निकलते ही पर्यावरण की दुर्दशा है। गाँवों से ७० मील प्रति घंटे की रफ्तार से गुजर जाने वालों को गाँव का बिगड़ता पर्यावरण दिखाई नहीं देता है, पर अगर ध्यान दिया जाए तो गाँवों की स्थिति बहुत खराब है।

बस इसी बात ने रिचर्ड को प्रेरित किया कि वह गाँवों की स्थिति को फोटोग्राफ के द्वारा प्रधानमंत्री जेम्स गार्डन ब्राउन को दिखाए। रिचर्ड ने घूम-घूमकर कूड़े-कचरे के ढेर और उनके डिब्बों की तस्वीरें लेना शुरू किया।

पर तस्वीरों के सामने आते ही लोगों को लगा कि ब्रूम की तस्वीरें तो बड़ी कलात्मक है और लोगों को लगा कि ब्रूम की तस्वीरें तो बड़ी कलात्मक है और लोगों ने उन तस्वीरों को हाथों हाथ लिया। कला जगत में ब्रूम की ली हुई टूटी टॉयलेट, प्लास्टिक बोतलों और कचरे के ढेर की तस्वीरों का स्वागत हुआ। बहुतों ने तो उन्हें अपने ड्राइंग रूम और किचन में भी सजा दिया। इस तरह ‍की स्थिति से रिचर्ड हैरान है। वह सोच रहा है कि पता नहीं लोगों को कूड़े की तस्वीरों में क्या कलात्मक दिखाई दे गया।

हालाँकि रिचर्ड का उद्‍देश्य सजावटी या कलात्मक तस्वीरें उतारना नहीं था बल्कि वह तो माननीय प्रधानमंत्री का ध्यान देश के पर्यावरण की तरफ दिलाना चाहता था। पर एक पंथ दो काज हो गए।

उम्मीद है जिन लोगों को ब्रूम के फोटोग्राफ पसंद आए होंगे उनका तनिक ध्यान ब्रूम द्वारा उठाए विषय पर भी गया होगा। रिचर्ड ने प्रधानमंत्री को भेजे जाने वाले पत्र को अपनी वेबसाइट पर भी डाल दिया है ताकि लोग उसे अपने-अपने क्षेत्र के सांसदों को भेज सकें।

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