हिमालय के सभी ग्लेशियर पिघल जाएंगे तो क्या होगा?

उत्तराखंड के केदारधाम में चोराबाड़ी ग्लेशियर के टूटने से आई तबाही के बाद हमने हाल ही में देखा चमोली ग्लेशियर के टूटने से हुई तबाही को। ग्लेशियरों पर शोध करने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक हिमालय के इस हिस्से में ही एक हज़ार से अधिक ग्लेशियर हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि तापमान बढ़ने की वजह से विशाल हिमखंड टूट गए हैं जिसकी वजह से उनसे भारी मात्रा में पानी निकला है। तापमान क्यों बढ़ रहा है?
 
 
वैश्विक ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन और कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन के कारण तापमान बढ़ रहा है। समुद्र, जंगल और ग्लेशियर यह तीनों मिलकर धरती की 90 प्रतिशत गर्मी को तो रोक ही लेते हैं साथ ही धरती के 'वेदर' और 'क्लाइमेट' को जीवन जीने के लायक बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में बाजारवाद, साम्राज्यवाद और जनसंख्या विस्फोट के चलते तीनों को तेजी से नुकसान पहुंचा है जिसके चलते ग्लोबल वॉर्मिंग प्रारंभ हो चुकी है परंतु यह किसी को दिखाई नहीं दे रही है।
 
एक बार फिर दुनिया का ध्यान ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की तरफ खींचा है। हिमालयी ग्लेशियरों को लेकर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने एक अध्ययन कराया था। इस अध्ययन ने साफतौर पर चेतावनी दी थी कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय क्षेत्र की 15,000 हिमनद (ग्लेशियर) और 9,000 हिमताल (ग्लेशियर लेक) में आधे वर्ष 2050 और अधिकतर वर्ष 2100 तक समाप्त हो जाएंगे। इस बात की पुष्टि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने भी की है।
 
 
यदि हिमालय और धरती के अन्य ग्लेशियर तापमान के कारण पिघलते रहे तो हमारी धरती समुद्र में समा जाएगी। ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती का मौसम बदल रहा है। प्रदूषण (ग्रीन हाउस गैसों) के कारण यह सब हो रहा है। प्रदूषण कई तरह का होता है। हमारे वाहनों से निकलने वाला धुंआ, कोयले के प्लांट से निकलने वाला धुआं, कारखनों से निकलने वाला धुआं और अन्य कई कारणों से धरती के वातावरण में कार्बन डाई-आकसाइड की मात्रा बढ़ती जा रही है जिसके चलते धरती का तापमान लगभग एक डिग्री से ज्यादा बढ़ गया है और ऑक्सिजन की मात्रा कम होती जा रही है।
 
 
पहले 100 या 200 साल के बीच में अगर तापमान में एक सेल्सियस की बढ़ोतरी हो जाती थी तो उसे ग्लोबल वार्मिंग की श्रेणी में रखा जाता था। लेकिन पिछले 100 साल में अब तक 0.4 सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है जो बहुत खतरनाक है। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग एक वृहत्तर विषय है लेकिन यहां इतना समझने से ही समझ में आ जाता है कि मुख्‍य कारण क्या है।
 
प्राकृतिक तौर पर पृथ्वी की जलवायु को एक डिग्री ठंडा या गर्म होने के लिए हजारों साल लग सकते हैं। हिम-युग चक्र में पृथ्वी की जलावायु में जो बदलाव होते हैं वो ज्वालामुखी गतिविधि के कारण होती है जैसे वन जीवन में बदलाव, सूर्य के रेडियेशन में बदलाव तथा और प्राकृतिक परिवर्तन, ये सब कुदरत का जलवायु चक्र है, लेकिन पिछले सालों में मानव की गतिविधियां अधिक बढ़ने के कारण यह परिवर्तन देखने को मिला है जो कि मानव अस्तित्व के लिए खतरनाक है।
 
 
इस ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक ओर जहां पीने के पानी का संकट गहराएगा वहीं मौसम में तेजी से बदलावा होगा और तापमान बढ़ने से ठंड के दिनों में भी गर्मी लेगेगी। ऐसे में यह सोचा जा सकता है कि यह कितना खतरनाक होगा।
 
 
धरती की आबादी लगभग 7 अरब के पार जा चुकी है। ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन धरती को नष्ट कर रहा है। कुछ वर्ष पूर्व जीइओ-4 ने चेताया था कि यदि आर्थिक विकास के नाम पर प्राकृतिक संसांधनों का इसी तरह दोहन होता रहा तो आने वाले 150 वर्ष में जलवायु परिवर्तन के चलते धरती का पर्यावरण किसी भी प्राणी और मानव के रहने लायक नहीं रह जाएगा।
 
 
हजारों फिट नीचे खदान से कोयला और हीरा निकाला जाता है। बोरिंग के प्रचलन के चलते जगह-जगह से धरती में छिद्र कर दिए गए है। जंगल और पहाड़ तेज से काटे जा रहे हैं। खेतों को कालियों में बदला जा रहा है। नदियों को प्रदूषित कर दिया गया है और समुद्र के भीतर भी खुदाई का काम जारी है। अंतरिक्ष में भी कचरा फैला दिया गया है। ओजोन परत पर पहले से ही संकट बरकरार है गैस उत्सर्जन और कार्बन डाइऑक्साइड के चलते धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। उक्त सभी कारणों के चलते तूफानों और भूकंपों की संख्या बढ़ गई है। मौसम पूरी तरह से बदल गया है कहीं अधिक वर्षा तो कहीं सूखे की मार है। प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाकर बार-बार मानव को चेतावनी दे रही है, लेकिन मानव ने धरती पर हर तरह के अत्याचार जारी रखे हैं।
 
 
वैज्ञानिकों ने अतीत और वर्तमान के आँकड़े इकठ्ठे कर कम्प्यूटर में दर्ज कर जब तीस साल के बाद की पृथ्‍वी के हालात जानना चाहे तो पता चला कि धरती का तापमान पूरे एक डिग्री बढ़ चुका है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ती जा रही है, समुद्र का जल स्तर 1.5 मिलीमीटर प्रतिवर्ष बढ़ रहा है और अमेजन के वर्षा वन तेजी से खत्म होने के लिए तैयार है बस यह तीन स्थिति ही धरती को खत्म करने के लिए काफी है।

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