चीनी निर्यात पर सब्सिडी, क्यों मचा बवाल...

गुरुवार, 20 नवंबर 2014 (20:35 IST)
जिनीवा-नई दिल्ली। यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया व पाकिस्तान सहित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के कुछ सदस्यों ने भारत द्वारा चीनी के निर्यात पर दी जा रही सब्सिडी को लेकर सवाल उठाए हैं। थाइलैंड, न्यूजीलैंड व कोलंबिया ने भी कृषि को लेकर डब्ल्यूटीओ की प्रतिबद्धता पर चिंता जताई है।
 
डब्ल्यूटीओ ने कहा, भारत से उसके चीनी के लिए निर्यात सब्सिडी योजना के बारे में पूछा गया। ऑस्ट्रेलिया, थाइलैंड, यूरोपीय संघ, पाकिस्तान, न्यूजीलैंड तथा कोलंबिया सभी ने कहा है कि इसको लेकर वे चिंतित हैं, जबकि बाली में सभी सदस्यों ने इनमें कमी करने और अंतत: इन्हें समाप्त करने की सहमति दी थी। उसने कहा कि भारत ने इस बारे में जो पूर्व की बैठकों की तरह का ही स्पष्टीकरण दिया है।
 
डब्ल्यूटीओ ने बताया, भारत ने कहा है कि अभी तक उत्पादकों को किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं दिया गया है। इससे पहले जुलाई में भी कुछ सदस्यों ने इसी तरह के सवाल उठाए थे।
 
भारत ने इस साल फरवरी में नकदी संकट से जूझ रहे चीनी उद्योग को किसानों का गन्ने का बकाया चुकाने में मदद करने के लिए 40 लाख टन कच्ची चीनी के निर्यात पर सब्सिडी की घोषणा की थी। मूल रूप से फरवरी-मार्च के लिए सब्सिडी 3,300 रुपए प्रति टन तय की गई थी। केंद्र ने प्रत्येक दो माह में इसकी समीक्षा करने का फैसला किया था।
 
निर्यात प्रोत्साहन योजना के तहत भारत ने विपणन वर्ष 2013-14 (अक्‍टूबर से सितंबर) के दौरान सात लाख टन कच्ची चीनी का निर्यात किया था। चालू 2014-15 के सत्र में 15 नवंबर तक भारत का चीनी उत्पादन 22 प्रतिशत बढ़कर 5.6 लाख टन रहा है। उद्योग संगठन इस्मा के अनुसार पिछले साल इस अवधि तक चीनी उत्पादन 4.62 लाख टन रहा था।
 
भारत ने यह भी कहा है कि वह कृषि पर घरेलू समर्थन के मामले में डब्ल्यूटीओ नियमों का अनुपालन कर रहा है। और उसका मूल्य समर्थन कार्यक्रम उत्पादन के कुल मूल्य के 10 प्रतिशत के दायरे में आता है। 
 
सदस्यों द्वारा जो सवाल उठाए गए हैं उनमें कहा गया है कि भारत ने क्यों इस समर्थन को रुपए के बजाय डॉलर में अधिसूचित किया। कुछ सदस्यों ने कहा, न्यूनतम मूल्य समर्थन और सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रम निर्यात के जरिए अन्य देशों को प्रभावित कर सकते हैं। (भाषा)

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