अपमान के बाद मिला कपिल को सम्मान

सोमवार, 23 जून 2008 (13:52 IST)
-सीमान्त सुवीर

हरियाणा के जाट परिवार में जन्में कपिलदेव निखंज यदि 1983 के विश्वकप में भारतीय क्रिकेट टीम का नेतृत्व करते हुए 'क्रिकेट की दुनिया' को नहीं जीतते तो आज भारतीय क्रिकेट न तो उस ऊँचे मुकाम तक पहुँचता और न ही कोई कपिल नामक शख्सियत को जानता-पहचानता। यह इनसान गुमनामी की किस गली-कूचे में रहता, किसी को पता ही नहीं चलता।

  कपिलदेव की प्रतिभा को सबसे पहली बार ‍कौन सामने लाया? क्रिकेट में दखल रखने वालों को यह जानना जरूरी है कि आखिर वह कौन था, जिसके दिमाग में यह बात आई होगी कि यह 16-17 का जाट भारतीय क्रिकेट को नई ऊचाँइयों पर पहुँचाएगा      
सही मायने में भारत में क्रिकेट क्रांति का उदय 1983 के बाद से ही हुआ। उसके पहले गली-गली में राष्ट्रीय खेल कहे जाने वाले 'हॉकी' की तूती बोलती थी, लेकिन 25 बरस पहले 25 जून 1983 को कपिल के बाँकुरों ने विश्वकप जीतकर क्रिकेट को घर-घर तक पहुँचा दिया।

क्रिकेट के प्रचार-प्रसार में टेलीविजन की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही, क्योंकि 1982 के दिल्ली एशियाड से ही भारत में ब्लेक एंड व्हाइट टीवी निम्न मध्यम वर्ग के घरों के ड्राइंग रूम की शान बन चुका था। समय बदला, लोग बदले, क्रिकेट की ख्याति का घोड़ा तेजी से रफ्तार पकड़ चुका था। जिन लोगों की जुबाँ पर हॉकी सितारे अशोक-गोविंदा थे, उनकी जुबाँ पर कपिलदेव, मोहिन्दर अमरनाथ चढ़ चुके थे।

  वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कई साल मध्यभारत के सबसे पुराने और विश्वसनीय समाचार-पत्र 'नईदुनिया' में गुजारे। जब वे चंडीगढ़ में '‍इंडियन एक्सप्रेस' के संपादक थे, तब उन्होंने कपिल की चार कॉलम की तस्वीर पहले पन्ने पर छापी, जिसने उनकी तकदीर ही बदल डाली      
1983 के विश्वकप तक भारतीय क्रिकेट इतना गरीब था कि खिलाड़ियों को मैच फीस के रूप में महज 15 हजार रुपए मिलते थे वह भी किश्तों में लेकिन आज के क्रिकेटरों के बैंक खाते लाखों-करोड़ों में है।

कपिलदेव की प्रतिभा को सबसे पहली बार ‍कौन सामने लाया? यह सवाल आज कोई नहीं पूछता। क्रिकेट में दखल रखने वालों को यह जानना जरूरी है कि आखिर वह कौन था, जिसके दिमाग में यह बात आई होगी कि यह 16-17 का जाट भारतीय क्रिकेट को नई ऊचाँइयों पर पहुँचाएगा। इसकी बाजुओं में गजब का दमखम है और यही क्रिकेटर भारतीय गेंदबाजी में कहर बनकर छा जाएगा।

मालवा के लोग प्रभाष जोशी नाम के वरिष्ठ पत्रकार से वाकिफ हैं, जिन्होंने कई साल मध्यभारत के सबसे पुराने और विश्वसनीय समाचार-पत्र 'नईदुनिया' में गुजारे। आज वे 'जनसत्ता' में सलाहकार संपादक हैं और क्रिकेट पर आयोजित होने वाले टीवी- शो में अपनी बेबाक टिप्पणी के ‍‍लिए मशहूर हैं।

नईदुनिया में वर्षो तक पत्रकारिता करने के बाद प्रभाष जोशी दिल्ली गए और बाद में चंडीगढ़ में 'इंडियन एक्सप्रेस' के स्थानीय संपादक बने। क्रिकेट का शौक प्रभाष जोशी को बचपन से था और उन्हीं ने नईदुनिया में सबसे पिछला पृष्ठ खेल की खबरों का प्रारंभ किया था। चंडीगढ़ में एक स्थानीय मैच में उन्होंने पहली बार कपिल की गेंदबाजी के करिश्मे को देखा। उस मैच में कपिल ने कोई 4 विकेट प्राप्त किए थे, लेकिन प्रभाषजी की पारखी नजरें कपिल में बहुत सी संभावनाएँ देख चुकीं थी।

'एक्सप्रेस' के दफ्तर जाकर उन्होंने कपिल की पहले पन्ने पर चार कॉलम की तस्वीर प्रकाशित की, जिसमें वे गेंदबाजी एक्शन में थे। जिस दिन कपिल की तस्वीर प्रकाशित हुई, उसी दिन कपिल बगल में अखबार दबाए प्रभाषजी के पास पहुँचे और उनकी आँखों में आँसू थे। उन्होंने संपादक के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और आज भी जहाँ कपिल को वे नजर आते हैं, कपिल के हाथ उनके पैरों तक पहुँच जाते हैं

पहले पन्ने पर चार कॉलम की तस्वीर ने हरियाणा के जाट में इतना जोश भर दिया कि वह भारतीय क्रिकेट में कुछ कर गुजरने के लिए दिन-रात एक करने में लग गए। कपिल का यही जुनून भारत को विश्वकप दिलाने में मददगार साबित हुआ।

  जिम्बाब्वे के खिलाफ खेली गई कपिल की 175 रनों पारी भला कौन भूल सका है। कपिल ने 138 गेंदों में 16 चौकों और 6 छक्के उड़ाए और इसी पारी ने भारत को विश्वकप में बने रहने दिया। इसे हम दुर्भाग्य ही कहेंगे कि कपिल की इस पारी की किसी ने रिकॉर्डिंग नहीं ‍की      
विश्वकप में बतौर कप्तान जिम्बाब्वे के खिलाफ खेली गई उनकी पारी भला कौन भूल सका है। इस मैच में कपिल ने 138 गेंदों में 16 चौकों और 6 छक्के की मदद से नाबाद 175 रन बनाए थे और इसी पारी ने भारत को विश्वकप में बने रहने दिया। इसे हम दुर्भाग्य ही कहेंगे कि कपिल की इस विस्फोटक पारी की किसी ने रिकॉर्डिंग नहीं ‍की।

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इस मैच में भारत पहले बल्लेबाजी करते हुए 17 रन पर 5 विकेट गँवा चुका था और 140 तक पहुँचते 8 विकेट आउट हो चुके थे।

मैदान पर कप्तान कपिल के साथ किरमानी की जोड़ी थी और इस जोड़ी ने 126 रन जोड़े थे, जिसकी बदौलत भारत 60 ओवर में 266 रन बनाने में सफल रहा था। कपिल ने जहाँ तूफानी 175 रन बनाए थे, वहीं दूसरे छोर पर किरमानी का योगदान केवल 26 रन था। जवाब में जिम्बाब्वे की पारी 235 रन पर ही सिमट गई। बाद में भारतीय खिलाड़ी इतने जोश में आ गए कि लगातार दो विश्व कप जीतने वाले वेस्टइंडीज को हराकर विश्वकप को वतन लेकर ही लौटे।

भारतीय टीम की इस ऐतिहासिक जीत को 25 बरस पूरे होने जा रहे हैं। विश्वकप की रजत जयंती के उपलक्ष्य में दिल्ली में 4 दिन जलसा रविवार से शुरू हो चुका है। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि पिछले सप्ताह भारत के विश्व विजेता कप्तान कपिलदेव को पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन ने मोहाली के स्टेडियम में जलील किया था।

  कपिल जब समारोह में पुरानी यादों को ताजा कर रहे थे, तभी उन्होंने सुनील गावसकर को सामने की कतार में देखा। फौरन उन्होंने भारत के 'लिटिल मास्टर' को देश के लीजेंड क्रिकेटर की उपमा देते हुए विनम्र आग्रह किया कि वे भी मंच पर आकर इसका सम्मान बढ़ाए       
जब आईपील के मैच मोहाली में हुए तो दर्शकों को स्टेडियम के बाहर कपिलदेव की आदमकद तस्वीर नजर नहीं आई, जबकि वहाँ सुनील गावस्‍कर और सचिन तेंडुलकर की तस्वीर थी। कहा यह गया कि आँधी तूफान की वजह से तस्वीर के हिस्‍से गिर गए थे और निर्माणकार्य के चलते उसे हटाया गया। आश्चर्य है कि आँधी ने सिर्फ कपिल की ही तस्वीर देखी? उसे सुनील और सचिन नजर नहीं आए? क्या यह संयोग हो सकता है कि तूफान ने सिर्फ कपिल को ही गिराया?

जब कपिल ने अपनी विश्वकप की दान की गई यादें वापस माँगी तब पंजाब क्रिकेट संघ जागा और मीडिया में खबर आने के बाद हुई छिछालेदारी के बाद उसे बयान देना पड़ा कि हम कपिल की तस्वीर दोबारा लगा देंगे। इसी बीच पंजाब क्रिकेट संघ के अध्यक्ष आईएस बिन्द्रा ने कह डाला कि यदि कपिल अपनी चीजें वापस चाहते हैं तो हम उन्हें लौटा देंगे। यही बिन्द्रा साहब चार दिन बाद कपिल की तारीफ करते नजर आए और उन्हें 'देश का आइकॉन' कहने से भी नहीं चूके।

क्रिकेट जगत में यह पहली घटना नहीं है जब खिलाड़ी को पहले जलील किया जाता है और उसके सम्मान में तारीफों के पुल बाँधे जाते हैं। कपिल की महानता देखिए कि जब रविवार को विश्वकप विजेता के सम्मान में आयोजित समारोह में पुरानी यादों को ताजा कर रहे थे, तभी उन्होंने सुनील गावसकर को सामने की कतार में देखा। फौरन उन्होंने भारत के 'लिटिल मास्टर' को देश के लीजेंड क्रिकेटर की उपमा देते हुए विनम्र आग्रह किया कि वे भी मंच पर आकर इसका सम्मान बढ़ाए। सुनील लपककर स्टेज पर पहुँचे और उन्होंने यह सम्मान दिलाए जाने के लिए कपिल की पीठ थपथपाई।

सब जानते हैं कि भारतीय क्रिकेट में कपिल-सुनील की कभी नहीं बनी। सुनील से कप्तानी छीनकर ही कपिलदेव को 1983 के विश्वकप की कमान सौंपी गई थी। कपिल के दिल में गावस्कर के लिए आज भी सम्मान है और यही एक महान क्रिकेटर की महानता को दर्शाता है।

बहरहाल, क्रिकेट प्रशासकों को यह समझ में आ जाना चाहिए कि किसी भी पूर्व महान क्रिकेटर के अपमान करने का असर क्या होता है। पूरा देश कपिल की महानता के गुणगान गा रहा है। किसी भी व्यक्ति के साथ आपके मतभेद तो हो सकते हैं लेकिन मन भेद करना कतई जायज नहीं है।