भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने सुलह की भंगिमा अपनाने के 24 घंटों के अंदर ही अपना रुख कड़ा करते हुए व्यवसायी सुभाष चन्द्रा की इंडियन क्रिकेट लीग (आईसीएल) और उसके प्रमुख पैरोकार कपिल देव के खिलाफ तलवार एक बार फिर तान दी है।
बीसीसीआई अध्यक्ष शरद पवार ने मंगलवार को ही कहा था कि रिटायर खिलाड़ियों के किसी भी तरह से क्रिकेट से जुड़ने की राह में बोर्ड नहीं आएगा। उनके इस बयान से आईसीएल में राहत का संचार हुआ और कपिल ने इसका स्वागत करने में जरा भी देरी नहीं की।
लेकिन पवार के बंगले पर बुधवार को हुई बीसीसीआई के पदाधिकारियों की बैठक के बाद बोर्ड का मिजाज बदला हुआ था।
बीसीसीआई उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने कहा कि हर किसी को यह फैसला करने का पूरा हक है कि वह बोर्ड से जुड़ना चाहता है या किसी और संगठन से। गर कोई किसी अन्य संगठन से जुड़ने का फैसला करता है तो वह बीसीसीआई से मिलने वाले लाभों का हकदार नहीं होगा और उसकी गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकेगा।
बीसीसीआई उपाध्यक्ष ने किसी का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा कि हम किसी भी व्यक्ति के खिलाफ नहीं हैं। बैठक में किसी भी व्यक्ति विशेष के नाम पर कोई चर्चा नहीं हुई़, लेकिन इशारा साफ था कि पूर्व राष्ट्रीय कप्तान और अपने जमाने के दिग्गज ऑलराउंडर कपिल के राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी के अध्यक्ष पद पर दिन गिने चुने ही बचे हैं।
कपिल आईसीएल के कार्यकारी बोर्ड के चेयरमैन हैं और कई पूर्व अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खिलाड़ियों को इससे जोड़ने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। 1983 की विश्व कप विजेता टीम के कप्तान कपिल ने बीसीसीआई पर आरोप लगाया है कि वह खिलाड़ियोंको आईसीएल से जुडने से रोकने के लिए उन्हें डरा-धमका रहा है।
लेकिन कपिल के बारे में सीधा सवाल पूछे जाने पर शुक्ला ने सिर्फ इतना कहा कि उनके मसले पर 21 अगस्त को मुंबई में होने वाली बीसीसीआई की साधारण सभा की बैठक में विचार किया जाएगा।
निजी टेलीविजन कंपनी जी टीवी के मालिक सुभाष चन्द्रा ने इसी साल 3 अप्रैल को 100 करोड़ रुपए की लागत से आईसीएल स्थापित करने की घोषणा की थी। इसके तहत इसी साल अक्टूबर में छह टीमों के 10 लाख डालर की इनामी राशि वाले ट्वेंटी-20 टूर्नामेंट का आयोजन किया जाना है।
लेकिन आईसीएल को बीसीसीआई से मान्यता नहीं मिली। वह कपिल, किरण मोरे, संदीप पटिल, और ब्रायन लारा जैसे कुछेक खिलाड़ियों को छोड़कर किसी भी मशहूर खिलाड़ी को जोड़ने में अब तक नाकाम रहा है।
पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया समेत कई राष्ट्रीय क्रिकेट संगठनों ने अपने खिलाड़ियों के आईसीएल में शामिल होने पर रोक लगा दी है। टूर्नामेंट के लिए आयोजन स्थल हासिल करने में भी उसे दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
क्या आईसीएल को मैदान मुहैया कराने वालों के खिलाफ भी बोर्ड कार्रवाई करेगा? यह पूछे जाने पर शुक्ला ने सिर्फ इतना कहा कि क्रिकेट आयोजन स्थल राज्य संघों के दायरे में आते हैं। शुक्ला ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि क्या बोर्ड अपने इस फैसले से उन नौजवान खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के एक अवसर से नहीं रोक रहा जो राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने में नाकाम रहते हैं।
पवार के रुख में अचानक आई नरमी के बारे में पूछे जाने पर बीसीसीआई उपाध्यक्ष ने कहा कि उन्होंने मंगलवार को जो कुछ भी कहा वह उनके निजी विचार थे। इस बैठक में किया गया फैसला बीसीसीआई का सर्वसम्मत दृष्टिकोण है।
कांग्रेस के महासचिव और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बीसीसीआई से आग्रह किया था कि वह टकराव का रास्ता छोड़कर आईसीएल के बारे में सहानुभूतिपूर्ण ढंग से सोचे।
दिग्विजय सिंह ने बीसीसीआई के रवैये को देश में क्रिकेट के विकास के लिए बाधक बताया था। उन्होंने कहा था कि देश में इस खेल के विकास में सहायक किसी भी विचार का स्वागत किया जाना चाहिए।
पवार केन्द्र सरकार में कृषि मंत्री भी हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या आईसीएल के प्रति उनकी सहानुभूति राजनीति से प्रभावित थी? शुक्ला ने कहा कि बीसीसीआई के फैसले राजनीतिक तौर पर नहीं किए जाते।