इंदौर। वर्ष 1945-46 के रणजी सत्र के उस सेमीफाइनल मैच को याद करते हुए रामेश्वर प्रताप सिंह की आंखें आज भी खुशी से चमक उठती हैं। 91 वर्षीय पूर्व क्रिकेटर होलकर टीम के उन छह खिलाड़ियों में शामिल है, जिन्होंने यहां यशवंत क्लब मैदान पर मैसूर के खिलाफ खेले गए मुकाबले में एक ही पारी के दौरान धड़ाधड़ सैकड़े जड़कर इतिहास रच दिया था।
यादों के गलियारे में कदम रखते हुए सिंह ने बताया, ‘जब मैंने 80 रन बना लिए, तो होलकर राजवंश के तत्कालीन महाराज और होलकर क्रिकेट एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष यशवंतराव होलकर द्वितीय ने हमारे कप्तान सीके नायडू से कहा कि अब टीम को पारी घोषित कर देनी चाहिए क्योंकि पर्याप्त स्कोर खड़ा कर लिया गया है। इस पर नायडू ने उनसे कहा कि मैं (सिंह) शतक से केवल 20 रन दूर हूं और जैसे ही 100 रन पूरे करता हूं, पारी घोषित कर दी जाएगी।’..और ऐसा ही हुआ था। सिंह 100 रन के निजी स्कोर पर जैसे ही केपी उभयाकर की गेंद पर बोल्ड हुए, होलकर टीम ने अपनी पारी घोषित कर दी थी।
उन्होंने कहा, ‘जब मैंने आठवें क्रम पर बल्लेबाजी करते हुए मैसूर के खिलाफ सेमीफाइनल मैच में शतक बनाया, तब मैं स्कूल में पढ़ रहा था। वह होलकर टीम का स्वर्णिम दौर था।’उस पारी में सिंह से पहले होलकर टीम के केवी भंडारकर (142), सीटी सरवटे (101), एमएम जगदाले (164), सीके नायडू (101) और बीबी निम्बालकर (172) शतक जड़कर आउट हो चुके थे।
सिंह के अलावा अन्य पांच क्रिकेटर अब इस दुनिया में नहीं हैं। क्रिकेट में सिंह के उल्लेखनीय योगदान को सम्मानित करने के लिए मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) ने उन्हें अपने ‘सीटी सरवटे लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ के लिए चुना है। यह पुरस्कार उन्हें यहां 1 अगस्त को आयोजित समारोह में दिया जाएगा, जिसमें भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली बतौर मुख्य आतिथि हिस्सा लेंगे।
रणजी सेमीफाइनल की जिस पारी में सिंह समेत छह खिलाड़ियों ने शतक जमाए, उस पारी में होलकर टीम ने 912 रनों का रिकॉर्ड स्कोर खड़ा किया था। इस मैच में होलकर टीम ने एक पारी और 213 रन से मैसूर के खिलाफ जीत हासिल करते हुए फाइनल में प्रवेश किया था। होलकर टीम ने फाइनल मैच में बड़ौदा को 56 रन से हराकर अपना पहला रणजी ट्रॉफी खिताब जीता था।