भारतीय क्रिकेट टीम के सफलतम कप्तान महेंद्रसिंह धोनी ने मंगलवार को मेलबर्न टेस्ट के बाद टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की। हालांकि यह जानकारी धोनी से नहीं मिली, बल्कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के माध्यम से लोगों तक पहुंची।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि धोनी को विदेशी दौरे के बीच में ही टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेना पड़ा? क्या वे किसी तरह के दबाव में थे? क्या बोर्ड ने धोनी को यह कदम उठाने पर मजबूर किया? यह बात सही है कि धोनी का ग्राफ टेस्ट करियर में उतना मजबूत नहीं है, जितना कि क्रिकेट के छोटे फॉर्मेट में, लेकिन इस तरह कप्तानी छोड़ने का फैसला एक टेस्ट मैच के बाद भी लिया जा सकता था।
धोनी की तरफ से आया यह फैसला इसलिए हैरानी भरा नहीं है कि धोनी ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया, बल्कि ज्यादा आश्चर्य इस बात का है कि धोनी ने दौरे के बीच में ही क्यों कप्तानी छोड़ी और वे खुद मीडिया के सामने क्यों नहीं आए।
अगर धोनी खुद भी दौरे के बीच में कप्तानी छोड़ना चाह रहे थे तो क्या बोर्ड उन्हें सिर्फ एक टेस्ट तक अपना फैसला रोकने को नहीं कह सकता था? क्या धोनी के इस फैसले के पीछे बोर्ड का दबाव है? जिस तरह धोनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा हुई है, उससे लगता है कि बोर्ड और धोनी के बीच कुछ तो गड़बड़ है।