इस समय भारत के खेल जगत में सबसे ज्यादा चर्चा उस महिला क्रिकेटर की हो रही है, जिसने विश्वकप में उपविजेता होने का सम्मान पाया है और महज 9 रन से चैम्पियन बनने से चूक गई थीं। प्रधानमंत्री से लेकर टीवी के दफ्तर तक इन सितारा महिला खिलाड़ियों को बुलाया जा रहा है और उनकी संघर्षमय गाथा को पूरे देश को सुनाया जा रहा है। ताजा खबर यह है कि विज्ञापन एजेंसियां भी सक्रिय हो गई हैं और आने वाले वक्त में मिताली राज और हरमनप्रीत कौर टीवी पर नजर आने जा रही हैं।
विज्ञापन कंपनियों की मिताली और हरमनप्रीत से बात फाइनल हो गई है, लेकिन यह पता नहीं लगा है कि टीवी विज्ञापन के जरिए इन खिलाड़ियों को कितना भुगतान किया जाएगा? असल में बाजार का दस्तूर ही यही है कि वह ख्याति को भुनाना जानता है। आज भारतीय महिला क्रिकेट टीम में मिताली राज, हरमनतप्रीत कौर, पूनम राउत आदि ऐसे नाम हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री से लेकर अमिताभ बच्चन तक जानने लगे हैं।
यही नहीं, पूरा देश इन तीन नामों के अलावा एकता बिष्ट, पूनम यादव, स्मृति मंधाना, वेदा कृष्णमूर्ति, मोना मेश्राम को भी जानने लगा है.. इसका कारण सिर्फ यही है कि क्वालिफायर की बाधा पार करने के बाद भारतीय महिला क्रिकेट टीम इंग्लैंड में आयोजित आईसीसी विश्वकप में खेलने उतरी और उसने फाइनल तक कोई मैच नहीं हारा। उनकी इस कामयाबी को देश में 19 करोड़ लोगों ने देखा।
भारत लौटते ही टीम का अभूतपूर्व स्वागत इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने फाइनल भले ही 9 रन से हारा हो, लेकिन दिल जीतने में कोई कमी नहीं रखी। यही कारण है कि प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इन राजकुमारियों की गौरव गाथा को बयान करने में अभी तक जुटा हुआ है।..और इन बहादुर लड़कियों का सम्मान इसलिए भी जरूरी है कि जिन्हें कोमलांगी समझकर खेलों से दूर रहने को कहा जाता था, उनके माता-पिता ने किसी की परवाह किए बगैर उन्हें खेल के प्रति प्रोत्साहित किया।
अब जबकि ये राजकुमारियां खेल मैदान से हटकर घर-घर की दहलीज तक पहुंच गई हैं, तब सुस्त पड़ी विज्ञापन एजेंसियां भी इनके पीछे भाग रही हैं। कप्तान मिताली राज के कुशल नेतृत्व के अलावा हरमनप्रीत कौर (ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नाबाद 171 रन की पारी) की सबसे ज्यादा पूछपरख हो रही है।
जब 'शटल क्वीन' पीवी सिंधु ने ओलंपिक में भारत का परचम लहराया था, तब उनका भी चेहरा भुनाने की कोशिश की गई थी, ठीक उसी तरह महिला क्रिकेट की इन दो सितारा बल्लेबाजों को भी टीवी विज्ञापन के लिए तैयार किए जाने की जद्दोजहद शुरु हो चुकी है। विज्ञापन के जरिए ही सही ये लड़कियां अब घर-घर की कहानी (एकता कपूर जैसी नकली नहीं) बनने जा रही हैं।
पूरा देश चाहता है कि जिन लड़कियों को कॉलोनी वाले तक नहीं जानते थे, अब उन्हें महिला क्रिकेट की पूरी विश्व बिरादरी जान भी रही है और पहचान भी रही है। इन लड़कियों ने अपने बलबूते पूरे देश का मान बढ़ाया है। क्या यह उस पुरुष जाति के गाल पर करारा तमाचा नहीं है, जो आज भी लड़के के जन्म पर जश्न मनाते हैं और लड़की के जन्म पर मातम...
और तो और...यह बात भी दिल में कांटे की तरह चुभती है कि जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर इंग्लैंड के खिलाफ विश्वकप का फाइनल खेल रही थी, तब वहां भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का एक भी अधिकारी मौजूद नहीं था।
टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली और धोनी से लेकर गौतम गंभीर तक ने सोशल मीडिया के जरिए शुभकामनाएं भेजीं और बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी शुभ संदेश भेजा, लेकिन अक्षय कुमार के अलावा कोई भी बॉलीवुड सितारा इन लड़कियों का हौसला बढ़ाने के लिए नहीं पहुंचा।
अब जबकि भारतीय महिला क्रिकेटर रातोरात स्टार बन चुकी हैं, तब इनकी तारीफ करने के लिए कुकुरमुत्ते की तरह उग आए लोग सामने आ रहे हैं। ये खिलाड़ी भी उन लाखों खिलाड़ियों की तरह हैं, जब इनके संघर्ष के दिनों में इनकी कभी पूछपरख नहीं हुई...किसी के पिता ने ऑटो रिक्शा चलाकर तो किसी के पिता ने लोन लेकर अपनी बेटियों के सपनों को उड़ान दी है।
प्रसंगवश भारतीय रेलवे की प्रशंसा करनी होगी, जिसने इनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें रोजगार दिया। विश्वकप में खेली 15 में से 10 खिलाड़ी भारतीय रेलवे की हैं। इनमें वो हरमनप्रीत भी हैं जो 25 साल की उम्र के करीब पहुंचने वाली थीं और पंजाब पुलिस में नौकरी के लिए कई चक्कर काट चुकीं थीं। आज जब वे स्टार बन चुकी हैं तो पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह उन्हें डीएसपी बनने का ऑफर देते हैं...
याद रखना जरूरी है कि विश्वकप उपविजेता टीम को बीसीसीआई ने 50-50 लाख रुपए, महाराष्ट्र सरकार ने अपने राज्य की खिलाड़ियों को 50-50 लाख रुपए, तेलंगाना सरकार ने मिताली राज को 50 लाख रुपए और भारतीय रेलवे ने 13-13 लाख रुपए देने का फैसला किया है।
बीसीसीआई तो 50 लाख दे भी चुकी है...इन खिलाड़ियों ने जो महिला क्रिकेट क्रांति की है, उससे तो उन्हें कई गुना पैसा मिलना चाहिए। मिताली और हरमनप्रीत के साथ और भी चेहरे टीवी पर आने चाहिए, क्योंकि पुरुष टीम के बासी चेहरे देख-देखकर लोग बोर भी तो हो गए होंगे...
इन महिला क्रिकेटरों की एक बात और दिल को सुकुन पहुंचाती है, जब वे कहती हैं कि एक दिन ऐसा वक्त भी आएगा जब लोग ये कहेंगे लड़के भी कभी क्रिकेट खेला करते थे। ऐसा कहने के लिए कलेजा चाहिए...
ऐसा कहना इसलिए भी अच्छा लगता है क्योंकि इडली-सांभर, चांवल-राजमा और हरी सब्जी खाकर अपनी बाजुओं में लोहा भरने वाली ये वो लड़कियां हैं, जिन्होंने 6 बार की विश्व चैम्पियन ऑस्ट्रेलिया जैसी ताकतवर टीम को भी इस विश्वकप में बुरी तरह हराया है..दिल से एक बड़ा सलाम लड़कियों..तुम्हारे पास पंख भी हैं और खुला आसमान भी तुम्हें तो अभी और ऊंची उड़ान भरनी है...