तेंदुलकर को अपनी मां के हाथ का खाना बहुत पसंद था, लेकिन ऐसा 9 साल के होने तक ही था, क्योंकि इसके बाद उन्होंने पहली बार चीन के खाने का स्वाद चखा था। मुंबई में 1980 के दशक में चीनी खाना बहुत लोकप्रिय हो रहा था और इसके बारे में इतना सुनने के बाद उनकी कॉलोनी के दोस्तों ने एक साथ मिलकर इसे खाने की योजना बनाई।
तेंदुलकर ने एक नई किताब में इस घटना को याद किया है कि हम सभी ने 10-10 रुपए का योगदान किया, जो उस समय काफी पैसे होते थे और मैं कुछ नया आजमाने के लिए काफी रोमांचित था। हालांकि वो शाम काफी निराशाजनक साबित हुई, क्योंकि उन्हें इस ग्रुप में सबसे छोटा होने का खामियाजा भुगतना पड़ा।
उन्होंने कहा कि यही चीज फ्राइड राइस और चाउमिन के साथ भी हुई और मुझे दोनों में से केवल 2 चम्मच ही खाने को मिली। बड़े लड़कों ने हमारे खर्चे पर पूरा लुत्फ उठाया जिससे मैं भूखा-प्यासा घर लौटा। हैचेट इंडिया ने बच्चों के लिए 'चेज योर ड्रीम्स' नाम की किताब निकाली है, जो तेंदुलकर की आत्मकथा 'प्लेइंग इट माई वे' पर आधारित है। (भाषा)