'तमाशा' बना टीम इंडिया का कोच चयन

सीमान्त सुवीर  
 
भारतीय क्रिकेट में 'नए कोच' को लेकर अजीब-सा तमाशा देखने को मिला...मंगलवार को दोपहर बाद मीडिया को बताया जाता है कि रवि शास्त्री अगले कोच होंगे लेकिन शाम का सूरज अस्त होते ही बीसीसीआई की   आधिकारिक रूप ये खबर आती है कि शास्त्री के कोच पद पर मुहर नहीं लगी है...और फिर देर रात शास्त्री को चीफ कोच बनाए जाने के साथ ही जहीर खान के गेंदबाजी कोच बनने का ऐलान किया जाता है।
 
लोढा समिति की सिफारिश के बाद बीसीसीआई पर जब से सुप्रीम कोर्ट का चाबुक चला है, तब से उसकी हालत  पतली हो गई है। बीसीसीआई का संचालन देख रही प्रशासकों की समिति के अध्यक्ष विनोद राय ने कोच के लिए क्रिकेट सलाहकार समिति (सीएसी) की नियुक्ति में तीन धुरंधरों (गांगुली, तेंदुलकर, लक्ष्मण) को इसलिए रखा था कि वे सही आदमी के हवाले टीम इंडिया को सौंपेंगे। 
 
समिति को मंगलवार की 'डेडलाइन' दी गई थी और इसी जल्दबाजी में रवि शास्त्री का नाम फाइनल हो गया, वह भी 2019 के वर्ल्डकप तक के लिए लेकिन कुछ घंटे बाद ही बीसीसीआई के सचिव अमिताभ चौधरी ने शास्त्री को जश्न मनाने के मंसूबों पर पानी फेर दिया। 
 
चौधरी का कहना था कि समिति ने अभी कोच तय नहीं किया है लेकिन इसी बीसीसीआई ने देर रात कोच मामले का नाटकीय पटाक्षेप करते हुए शास्त्री पर अपनी सहमति जता दी। सवाल ये पैदा होता है कि आखिर इस तमाम घटनाक्रम का मतलब क्या निकला? हां, शास्त्री के साथ गेंदबाजी कोच के रूप में जहीर खान का नया नाम जरूर जुड़ा। कोच के घालमेल को लेकर क्रिकेट प्रेमियों के दिमाग की नसों पर कुछ घंटे के लिए ही सही, तनाव जरूर उभरा।
 
अनिल कुंबले की दु:खद विदाई के बाद से ही कोच पद की रेस शुरू हो गई थी। भारतीय क्रिकेट का इतिहास   गवाह है कि कभी भी कप्तान और कोच की नहीं बनी। कोच चाहे देशी हो या विदेशी, वो कप्तान की आंखों का  तारा नहीं बन सका। 1992 से लेकर 2017 तक के बीच भारतीय क्रिकेट टीम को अब तक 11 कोच मिले हैं   लेकिन लगभग सभी की तत्कालीन कप्तान से पटरी नहीं बैठी। 
 
भारतीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा विवादास्पद कोच ग्रेग चैपल रहे। 2005 से 2007 तक टीम इंडिया के साथ   रहने वाले चैपल और कप्तान सौरव गांगुली से उनकी अनबन को अब तक याद किया जाता है। हैरानी तो इसकी थी कि तब बीसीसीआई के मुखिया जगमोहन डालमिया ने गांगुली की पसंद पर ही चैपल के हवाले टीम को   किया था और बाद में चैपल ही गांगुली पर आंखे तरेरने लगे। 
 
ग्रैग चैपल का अनुबंध खत्म होने के बाद बीसीसीआई ने दक्षिण अफ्रीका के गैरी कर्स्टन को नया कोच बनाया   और उनकी कोचिंग में भारतीय क्रिकेट टीम ने 28 साल बाद 2011 में आईसीसी वर्ल्ड कप जीता। इससे पूर्व   कपिल देव की कप्तानी में भारत 1983 का विश्व कप जीतने में कामयाब हुआ था। कर्स्टन का कार्यकाल 2008 से 2011 तक रहा। 
 
कर्स्टन के घर लौटने के बाद जिम्बाब्वे में जन्मे डंकन फ्लेचर को मोटी धनराशि देकर 2 साल के लिए कोच पद नियुक्ति हुई लेकिन फ्लॉप फ्लेचर का बाद में कार्यकाल एक साल और बढ़ाया गया। बाद में किसी तरह   बीसीसीआई ने उनसे पीछा छुड़ाया और तभी से बीसीसीआई ने फैसला कर लिया था कि आगे से कोई विदेशी   कोच की सेवाएं नहीं ली जाएंगी क्योंकि वे खिलाड़ियों के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं।  
 
बीसीसीआई ने 2015 से एक साल के लिए रवि शास्त्री को कोच की बजाए टीम इंडिया का डायरेक्टर बनाया और 20 जून 2016 से कुंबले को चीफ कोच की कुर्सी पर बैठाया, यह पहला मौका था जब टीम इंडिया के  कोच की विदाई बहुत बुरे हालात में हुई। नए कोच के लिए गेंद एक बार फिर रवि शास्त्री के पाले में आ गई हैं। 
 
55 साल के रवि शास्त्री के कोच बनने की सबसे बड़ी वजह ये है कि वे कोहली के फेवरेट हैं और टीम इंडिया के खिलाड़ियों को भरपूर आजादी देने वाले भी..यानी शास्त्री के आने से खिलाड़ी फ्रीहैंड हो जाएंगे। उन्हें जहां जाना है, जाएंगे..विदेशी दौरे में जिसे ले जाना है ले जाएंगे। कुल मिलाकर शास्त्री की सोच यही है कि खुद भी मजे करो और दूसरों को भी मौज करने दो...

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