Sourav Ganguly की गौरवगाथा के बिना अधूरी रहेगी भारतीय क्रिकेट की दास्तान

बुधवार, 8 जुलाई 2020 (19:27 IST)
नई दिल्ली। ‘रॉयल बंगाल टाइगर’, ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’ या फिर ‘दादा’, क्रिकेट को अलविदा कहने के एक दशक बाद भी सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) की लोकप्रियता का ग्राफ गिरा नहीं है। उम्दा बल्लेबाज, दिग्गजों को हराने का हौसला भरने वाले कप्तान और अब बीसीसीआई अध्यक्ष, भारतीय क्रिकेट की दास्तान गांगुली की गौरवगाथा के बिना अधूरी रहेगी। गांगुली बुधवार को अपना 48वां जन्मदिन (Birthday) मना रहे हैं। 
 
भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तानों में से एक गांगुली ने कभी कठिन हालात में कप्तानी का जिम्मा लिया था और आज कोरोना वायरस महामारी से पैदा हुए संकट के बीच वह भारतीय क्रिकेट बोर्ड की कमान संभाले हुए हैं।
 
कौन भूल सकता है 2002 में इंग्लैंड को हराकर नेटवेस्ट क्रिकेट श्रृंखला जीतने के बाद लॉर्ड्‍स की बालकनी में कमीज लहराकर जश्न मनाते गांगुली की वह तस्वीर जिसे भारतीय क्रिकेट के सबसे यादगार पलों में से एक गिना जाता है।

यह बानगी थी कि जीत की देहरी पर यह ‘अंगद का पांव’ है और अगले ही साल गांगुली की ही कप्तानी में भारत दक्षिण अफ्रीका में विश्व कप के फाइनल तक पहुंचा था।
 
गांगुली ने जब कप्तानी संभाली, तब मैच फिक्सिंग मामले ने भारतीय क्रिकेट को झकझोर दिया था। उन्होंने न सिर्फ भारतीय क्रिकेट को उस संकट से निकाला बल्कि युवराज सिंह, हरभजन सिंह, वीरेंद्र सहवाग, जहीर खान और महेंद्र सिंह धोनी जैसे मैच विनर भी दिए।
 
गांगुली की कप्तानी में भारत ने 146 वनडे मैचों में से 76 जीते और 65 गंवाए जबकि पांच मैच बेनतीजा रहे। वहीं टेस्ट क्रिकेट में 49 मैचों में कप्तानी करके उन्होंने 21 जीते और 13 गंवाए जबकि 15 मैच ड्रॉ रहे।
एक बेहतरीन कप्तान होने के साथ वह आला दर्जे के बल्लेबाज भी रहे और यही वजह है कि राहुल द्रविड़ ने एक बार कहा था कि 'ऑफसाइड पर पहले भगवान है और फिर सौरव गांगुली।' द्रविड़ (145) और गांगुली (183) के बीच 1999 विश्व कप में टांटन में श्रीलंका के खिलाफ दूसरे विकेट की 318 रन की साझेदारी को कौन भूल सकता है, जब पहली बार सीमित ओवरों के क्रिकेट में 300 के पार की साझेदारी बनी थी।
 
वनडे क्रिकेट में 11000 से अधिक और टेस्ट में 7 हजार के ऊपर रन बना चुके गांगुली ने 1992 में ब्रिसबेन में वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे के दौरान अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया लेकिन उन्हें अगला अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के लिए चार साल तक इंतजार करना पड़ा था।
उन्होंने और द्रविड़ ने लॉर्ड्‍स पर 1996 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया। गांगुली ने क्रिकेट के मक्का पर पदार्पण टेस्ट में शतक लगाकर साबित कर दिया था कि उनकी पारी लंबी चलने वाली है।
 
अब करियर की दूसरी पारी में उन पर बीसीसीआई का दारोमदार है। वह भी ऐसे समय में जब कोरोना महामारी के कारण पूरा खेल जगत सकते में है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की बहाली, आईपीएल के आयोजन और क्रिकेटरों को ‘नए नार्मल’ में ढालने जैसी कई चुनौतियां सामने हैं लेकिन परिस्थितियों से हार मानना सौरव गांगुली ने सीखा ही नहीं है।

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