टीम में योगदान देने तक खेलता रहूँगा:लक्ष्मण

अनिल कुंबले और सौरव गांगुली ने सफल करियर के बाद भले ही क्रिकेट को अलविदा कह दिया हो, लेकिन भारत के मध्यक्रम के कलात्मक बल्लेबाज वीवीएस लक्ष्मण ने संकेत दिए हैं कि वह तब तक संन्यास नहीं लेंगे, जब तक वह अपने खेल का लुत्फ उठाते रहेंगे।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नागपुर में चल रहे चौथे और अंतिम टेस्ट में 100 टेस्ट मैच खेलने वालों के क्लब में शामिल हुए लक्ष्मण ने कहा कि फिलहाल वह बल्ले से योगदान देने और टीम को टेस्ट क्रिकेट में दुनिया की नंबर एक टीम बनाने के अलावा किसी और चीज के बारे में नहीं सोच रहे।

लक्ष्मण ने कहा कि मैं अपने खेल का लुत्फ उठा रहा हूँ और अब भी टीम में योगदान दे रहा हूँ। योगदान शब्द मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण है। मेरे ऊपर टीम के लिए अच्छा प्रदर्शन करने की जिम्मेदारी है। जब तक मैं अच्छे प्रदर्शन से योगदान देता रहूँगा, तब तक मैं किसी और चीज के बारे में नहीं सोचूँगा।

यह पूछने पर कि वह कितने और टेस्ट खेलना चाहते हैं उन्होंने कहा मैंने कभी अपने लिये लक्ष्य तय नहीं किये। मैं कभी नंबर के लिए नहीं खेला। हर श्रृंखला को एक एक करके लेना बेहतर होता है। इस श्रृंखला में हम बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी दोबारा हासिल करना चाहते हैं और हम अपनी ऊर्जा इसे हासिल करने पर लगा रहे हैं। वर्तमान में हम टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक टीम बनना चाहते हैं और हमें इस उपलब्धि को हासिल करने का पूरा भरोसा है। जब तक मैं इस लक्ष्य में योगदान देता रहूँगा तब तक मुझे खुशी होगा।

भारत को कई बार संकट से उबारने वाले लक्ष्मण ने कहा कि उन्हें दबाव में खेलने में मजा आता है। उन्होंने कहा सिर्फ उतार-चढ़ाव से ही नहीं, बल्कि अनुभव के साथ भी मैंने काफी कुछ सीखा है। आपकी सोच बहुत अहम होती है। इस पर मुझे बहुत गर्व है और मुझे दबाव के हालातों में अपनी पारियों पर भी गर्व है। मुझे सचमुच दबाव की स्थिति में मजा आता है जब आप टीम को संकट से उबारते हैं और आप ऐसा तब तक नहीं कर सकते जब तक आप मानसिक रूप से मजबूत न हो।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार रिकॉर्ड के बारे में पूछने पर लक्ष्मण ने कहा वे जिस तरह से अपना क्रिकेट खेलते हैं वह मुझे पसंद है। मुझे उनका आक्रामक रवैया पसंद है और मुझे तेज गेंदबाजी खेलना अच्छा लगता है। उनके खिलाफ खेलना हमेशा चुनौती होता है और जब गेंदबाज आपको आउट करने का प्रयास करता है तो आपको रन बनाने के मौके भी मिलते है।

उन्होंने कहा कि यह काफी पहले शुरू हो गया था। मैंने अंडर 19 स्तर पर उनका सामना किया और उस स्तर पर उनका गेंदबाजी आक्रमण सबसे पैना था। ब्रेट ली, जेसन गिलेस्पी, मैथ्यू निकोलसन। मुझे उनके खिलाफ खेलने में मजा आता था और मुझे कुछ सफलता भी मिली। मैंने इसी को आगे बढ़ाया।

अपने 12 साल के करियर पर लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने जो हासिल किया, उससे वह संतुष्ट हैं लेकिन उनका मानना है कि वह कुछ और शतक जमा सकते थे। उन्होंने कहा कि मैं काफी संतुष्ट हूँ। पहली बात मैं जिस परिवेश में पला मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं क्रिकेटर बनूँगा मैं डॉक्टर बनना चाहता था।

लक्ष्मण ने कहा मैं टीम में अपने योगदान से काफी खुश हूँ। मैं अपने सफर से भी खुश हूँ। इसने मुझे बेहतर इंसान बनाया। मैं जीवन के हालातों से बेहतर ढंग से निपट पाया और इस पर मुझे काफी गर्व है।

उन्होंने कहा लेकिन अगर मेरे और शतक होते तो मुझे अच्छा लगता। मेरे पास शतक जमाने के मौके थे जब विशेषज्ञ बल्लेबाज मेरे साथ अच्छी बल्लेबाजी कर रहा था लेकिन मैं आउट हो गया। ऐसे मौके भी आये जब मैं शतक बना सकता था, लेकिन दूसरे छोर पर कोई नहीं बचा। इसलिए यहाँ हमेशा किंतु परंतु होता है, लेकिन कुल मिलाकर मैं कुछ और शतक बना सकता था।

उन्होंने कहा शायद बल्लेबाजी क्रम जब आप छठे नंबर या पाँचवें नंबर पर बल्लेबाजी कर रहे हों तो आपके पास बड़ा शतक बनाने का मौका नहीं होता विशेषकर उपमहाद्वीप में। 13 टेस्ट शतक बनाने वाले लक्ष्मण ने कहा अगर आपकी टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही होती है तो आपको रन गति बढ़ानी होती है क्योंकि आपकी नजरें पारी घोषित करने पर होती है और अगर टीम अच्छा प्रदर्शन नहीं करती तो आपको पुछल्ले बल्लेबाजों के साथ बल्लेबाजी करनी पड़ती है।

लक्ष्मण हालाँकि 2003 विश्व कप में नहीं खेलने पाने की निराशा को नहीं भुला पाए जिसके बाद उनके एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय करियरका भी अंत हुआ। उन्होंने कहा निश्चित तौर पर हताशा और काफी निराशा है। 2003 विश्व कप नहीं खेल पाने के कारण क्योंकि मैं काफी अच्छी तैयारी कर रहा था। ईमानदारी से कहूँ तो तब तक यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा झटका था। यहाँ तक कि जब मुझे 2005 में एकदिवसीय टीम से बाहर किया गया तो भी मैं एकदिवसीय टीम में योगदान दे रहा था।

लक्ष्मण ने कहा अचानक चयनकर्ताओं ने मुझे टीम से बाहर कर दिया। मुझे जो भी मौके मिल रहे थे, उसमें मैं प्रदर्शन कर रहा था। मैंने चैलेंजर ट्रॉफी में शतक बनाया लेकिन फिर भी मुझे एकदिवसीय टीम में नहीं चुना गया। उन्होंने कहा कि मैं खेल के दोनों प्रारूपों में खेलना चाहता था। मुझे पूरा भरोसा था कि मैं एकदिवसीय क्रिकेट में भी योगदान दे पाऊँगा यहाँ तक कि टीम के लिए मैच भी जीत पाऊँगा, लेकिन मुझे मौका नहीं दिया गया।

लक्ष्मण ने कहा कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि सिर्फ टेस्ट क्रिकेट पर ध्यान केंद्रित करने से वह खेल के दीर्घ प्रारूप में बेहतर क्रिकेटर बने। उन्होंने कहा मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि मैं जब टेस्ट और वनडे क्रिकेट खेलता था तो हमेशा खेल के संपर्क में रहता था हमेशा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलता रहता था।

उन्होंने कहा जब आप खेल के दोनों प्रारूपों में खेलते हैं तो मैच में पूरी लय के साथ उतरते हैं क्योंकि आप रोज अच्छे गेंदबाजों का सामना करते हैं, इसलिए मुझे लगता है कि दोनों प्रारूपों में खेलना सिर्फ एक में खेलने से बेहतर है।

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