महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनश्टाइन का एक सिद्धांत गलत साबित हो रहा है। और उसे गलत साबित करने वाले वैज्ञानिक से डॉयचे वेले ने बात की। खुद भी नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिकशास्त्री हैं। प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हॉल्डेन को 2016 में डेविड जे थोलेस और जॉन माइकल कोस्टरलित्स के साथ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। डॉयचे वेले ने उनसे बातचीत की।
डीडब्ल्यू: हम क्वाटंम मैकेनिक्स की परवाह क्यों करें?
एफ. डंकन हॉल्डेन: क्योंकि दुनिया ऐसे ही चलती है। आपका आईफोन भी क्वाटंम मैकेनिक्स के सिद्धांतों पर चल रहा है। 1930 के दशक सेमीकंडक्टर की खोज से लोग हैरान हो गए थे। असल में बिजली का प्रवाह इलेक्ट्रॉन नहीं करता है बल्कि इलेक्ट्रॉन के भीतर मौजूद खाली जगह की वजह से ऐसा होता है। ऐसे ही उदाहरणों के जरिये आप क्वांटन मैकेनिक्स को समझ सकते हैं। सेमीकंडक्टरों को समझकर ही ट्रांजिस्टर बनाया जाता है और ऐसा करने के लिए आपको क्वांटम मैकेनिक्स की समझ होनी चाहिए। आप क्वांटम मैकेनिक्स को समझे बिना पदार्थ को समझ ही नहीं सकते।
दुनिया के बारे में हमारी जो भी समझ हैं उसी के आधार पर सारा तकनीकी विकास हुआ है। आप पदार्थ को जितना ज्यादा समझते हैं, आप उसके साथ उतना ही ज्यादा खेल सकते हैं, वो काम भी कर सकते हैं जिसकी आपको पहले जानकारी तक नहीं थी। इसीलिए हम ज्यादा गहराई से चीजों को समझने की कोशिश करते हैं और इस जानकारी को टेक्नोलॉजिस्ट्स को देते हैं ताकि उसे जबरदस्त टेक्नोलॉजी के रूप में ढाला जा सके।
लेकिन क्वांटम मैकेनिक्स के बारे में हमारी समझ और असली दुनिया में काफी अंतर दिखता है। ऐसा क्यों?
हां, क्योंकि क्वाटंम मैकेनिक्स को समझने का तरीका और इसके प्रति हमारा नजरिया लगातार बदलता रहा है। शायद इसमें थोड़ी बहुत भूमिका मेरी भी है क्योंकि मैंने सघन पदार्थ की क्वांटम मैकेनिक्स पर जोर दिया। एक कॉन्सेप्ट है संश्लेषणता (इन्टैंगल्मेंट) का, मुझे लगता है कि इर्विन श्रोडिंगर ने इस नाम को खोजा। आइनश्टाइन ने बताया कि यह क्वांटम मैकेनिक्स का पागलपन भरा नतीजा है। आइनश्टाइन के नजरिये से देखें तो क्वांटम मैकेनिक्स गलत है क्योंकि यह उनके गुरुत्व सिद्धांत के साथ ठीक से काम नहीं करती। इसीलिए उनके इनकार के बाद लंबे समय तक किसी ने इस पर काम नहीं किया। लेकिन अब प्रयोगों के नतीजे सटीक ढंग से इस पगलाने वाली चीज को दिखा रहे हैं, जिसे आइनश्टाइन पूरी तरह से गलत मानते थे।
अब हम इस अजीब सी संश्लेषण अवस्था को सही ढंग से समझने लगे हैं। आइनश्टाइन जिसे पागलपन कहते थे, शायद वह अब क्वांटम मैकेनिक्स का अहम गुण है। यह पदार्थ की एक टोपोलॉजिकल अवस्था (खाली स्थान की ऐसी अवस्था, जिसमें बदलावों के बावजूद रिक्तता बनी रहे) है, जिसे मैंने और बाकी लोगों ने खोजा। यह अवस्था, सामान्य पदार्थ के भीतर संश्लेषण गुणों के रूप में छुपी रहती है।
अब हमें लगता है कि पदार्थ की संश्लेषण अवस्था को समझना बहुत ही जरूरी है। 10 साल पहले तक इस बारे में कोई सोचता तक नहीं था। अब लोग कहने लगे हैं कि संश्लेषण गुण ही भविष्य के क्वांटम कंप्यूटर का पावर सोर्स है। अचानक एक अजीब सा आइडिया मुख्यधारा के लिए बहुत ही अहम हो गया है। इसने पूरा नजरिया बदल दिया है। ऐसे ही ज्ञान का नतीजा है कि हर साल मैकेनिकल डिवाइसेस बेहतर होती जा रही हैं।
क्या क्वांटम कंप्यूटर जल्द ही हमारे सामने होंगे?
मुझे नहीं पता ऐसा कब होगा। लेकिन क्वांटम इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी या सूचना की क्वांटम प्रोसेसिंग हमारे सामने आएगी। आखिर होता क्या है? यह समझने के साथ ही हम उन सवालों को भी समझ रहे हैं जिनका जवाब पहले हमारे पास नहीं था। हमारे पास अब कई तरह सिस्टम हैं जिनकी मदद से हम बेहद नियंत्रित माहौल में पदार्थ की क्वांटम अवस्था में आने वाले बदलावों को देख सकते हैं।
इसके क्या फायदे होंगे?
अभी मुझे नहीं पता। यह टेक्नोलॉजिस्टों पर निर्भर है कि वे इसका क्या करते हैं। लेकिन एक बार अगर आप पदार्थ की प्रकृति को नियंत्रित करने का तरीका सीख जाएं तो इसका फायदा तकनीक को मिलता है। हमारा काम तकनीक विकसित करना नहीं है। हम तो अपना ज्ञान दूसरों को देंगे। लेकिन आने वाले समय में यह ऐतिहासिक उपलब्धि साबित होगी।