मिशन चंद्रयान-2 विफल नहीं हुआ, 95 फीसदी काम अब भी होगा

सोमवार, 9 सितम्बर 2019 (11:19 IST)
क्या विक्रम लैंडर के सुरक्षित लैंड होने की या इससे वापस संपर्क होने की संभावना है? विक्रम लैंडर से संपर्क टूटना भारत के लिए बड़ी विफलता क्यों नहीं है? क्या विक्रम से फिर से संपर्क नहीं हो सकेगा? जान लीजिए।
 
7 सितंबर को भारत के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 में भेजे गए विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर उतरना था। इसके बाद रोवर प्रज्ञान इससे अलग होकर चांद की जानकारी जुटाता। लेकिन यह इसरो की योजना के मुताबिक नहीं हुआ। चांद पर उतरने से महज 2.1 किलोमीटर पहले विक्रम लैंडर का संपर्क इसरो से टूट गया। संपर्क टूटने के बाद विक्रम लैंडर की सुरक्षित या क्रैश लैंडिग के बारे में जानकारी नहीं मिली है। इसरो के पूर्व चीफ डी शशिकुमार ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया, "डाटा देखने के बाद ही पता चल पाएगा कि विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग हुई है या क्रैश लैंडिंग। मेरा अनुमान है कि विक्रम सुरक्षित है। हमारा संपर्क ऑर्बिटर से बना हुआ है। हमें कुछ भी नतीजा निकालने से पहले आंकड़ों के अध्ययन किए जाने का इंतजार करना चाहिए।"
 
दिक्कत कहां हुई?
विक्रम लैंडर को भारतीय समयानुसार 7 सितंबर को रात के 1 बजकर 53 मिनट पर चांद की सतह पर उतरना था। विक्रम रोवर को 1 बजकर 35 मिनट पर ऑर्बिटर से चांद की सतह पर लैंड करने जाना था। यह सतह से करीब 35 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगा रहा था। 1 बजकर 37 मिनट पर विक्रम लैंडर चांद की सतह पर उतरने के लिए आगे बढ़ता है। उस समय इसकी रफ्तार करीब 21,600 किलोमीटर प्रति घंटा थी। लैंडिंग के समय इसे कम होकर 7 किलोमीटर प्रति घंटा तक आना था, जिससे यह आराम से लैंड हो सके।
 
योजना के मुताबिक इसकी रफ्तार कम होने लगी। चांद की सतह से करीब पांच किलोमीटर ऊपर इसने रफ ब्रेकिंग फेज को सफलतापूर्वक पार किया। लेकिन इसके बाद स्थिति बिगड़ गई। चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर पहले विक्रम से संपर्क टूट गया। जिसके बाद यह पता नहीं लग सका कि यह किस रफ्तार से चांद की सतह पर उतरा। विक्रम लैंडर को 7 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चांद की सतह पर उतरना था। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह 18 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चांद की सतह पर सुरक्षित उतर सकता है। लेकिन इस बारे में जानकारी नहीं है कि विक्रम की सेफ लैंडिंग हुई या क्रैश लैंडिंग। 
 
क्या हो सकती है संपर्क टूटने की वजह?
नासा के मंगल मिशन में काम कर रहे अमिताभ घोष ने इंडियन एक्सप्रेस में इसकी संभावित वजहों की जानकारी दी है। घोष के मुताबिक संपर्क टूटने का मतलब यह नहीं कि विक्रम की क्रैश लैंडिंग ही हुई हो। संपर्क टूटने की वजह कोई तकनीकी खराबी या रोवर को मिल रही ऊर्जा में कोई दिक्कत भी हो सकती है। अगर रोवर तय रफ्तार से बहुत ज्यादा तेजी से चांद की सतह पर उतरा होगा तो यह क्रैश हो गया होगा। ऐसे में इससे संपर्क नहीं हो सकेगा।
ऐसा नहीं है कि अंतरिक्ष में भेजे गए किसी ऑब्जेक्ट से पहली बार संपर्क टूटा हो और फिर स्थापित ना हो सका हो। कुछ साल पहले इसरो का अपने एक सैटेलाइट से संपर्क टूट गया था। लेकिन बाद में कई प्रयासों के बाद इससे संपर्क स्थापित हो गया था। इन दोनों परिस्थितियों में बड़ा अंतर यह है कि वह सैटेलाइट किसी सतह पर उतरने नहीं जा रहा था। ऐसे में उसकी क्रैश लैंडिंग जैसी कोई संभावना ही नहीं थी।
 
विक्रम लैंडर के क्रैश होने की कितनी आशंका?
विक्रम लैंडर को चांद पर एक ऐसी जगह पर उतरना था जो दो बड़े गड्ढों के बीच में थी। जब विक्रम लैंडर अनुमानित रफ्तार से चांद की सतह से 100 मीटर ऊपर पहुंचता तो तकनीक के माध्यम से इसे अनुमान लगाना था कि जो जगह इसके उतरने के लिए तय की गई है वह उतरने के अनुकूल है या नहीं। मसलन यह जगह अपेक्षित समतल हो, यहां कोई बड़ा पत्थर ना हो और यहां सफलतापूर्वक उतरा जा सके। क्योंकि पृथ्वी से चंद्रमा की सतह के बारे में इतना सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता, इसके लिए चांद की सतह से 100 मीटर ऊपर यह निर्वात में स्थिर हो जाता।
 
इन सारी जानकारियों को जुटाने के बाद वह उस जगह उतरता। अगर वह जगह ठीक नहीं होती तो आसपास मौजूद सबसे अनुकूल जगह पर विक्रम लैंड होता। लैंड होने के तीन घंटे बाद प्रज्ञान रोवर इसमें से निकलता और चांद की जानकारी इकट्ठा करना शुरू करता। ये दोनों 14 दिन तक काम करते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
 
लैंड करने से 13 मिनट पहले ही इसरो का संपर्क टूट गया। संपर्क टूटने से पहले भी जो आंकड़े इसरो के पास आए उनमें भी विक्रम अनुमानित गति से तेज गति से लैंड कर रहा था। ऐसे में यह आशंका ज्यादा प्रबल होती है कि विक्रम की क्रैश लैंडिंग हुई होगी।  यह कहां उतरा, कैसे उतरा इसकी जानकारी आने में समय लगेगा।
 
क्या मिशन चंद्रयान-2 विफल हुआ?
विक्रम लैंडर के संपर्क टूटने के बाद यह आम धारणा बनी कि भारत का मिशन चंद्रयान-2 विफल हो गया। अंतरिक्ष मिशन सिर्फ  किसी एक चीज पर निर्भर नहीं करते हैं। इनके अलग अलग चरण होते हैं। हर चरण के पूरा होने पर नई जानकारियां मिलती हैं। चंद्रयान-2 के साथ भी ऐसा ही है।

इसरो के एक अधिकारी ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर चंद्रयान मिशन का पांच प्रतिशत हिस्सा थे। 95 प्रतिशत हिस्सा चंद्रयान-2 ऑर्बिटर का है जो अभी भी सुरक्षित है और चांद का चक्कर लगा रहा है। चंद्रयान-2 ऑर्बिटर चांद की सतह की तस्वीरों की मदद से जानकारी भेजता रहेगा। यह एक साल के लिए सक्रिय रहेगा। प्रज्ञान रोवर का काम जीवनसमय सिर्फ 14 दिन का था। लेकिन चंद्रयान-2 ऑर्बिटर एक साल तक के लिए है जो अपना काम करता रहेगा। यह चांद का एक नक्शा तैयार करेगा जो आगे के मिशनों में बहुत काम आएगा।"
 
जीएसएलवी मार्क 3 लॉन्च व्हीकल से भेजे गए चंद्रयान-2 ऑर्बिटर का चांद की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित होना भी भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी है। विक्रम लैंडर और प्रज्ञान लैंडर का काम चांद की सतह के बारे में जानकारी लेना, उसके वातावरण का पता लगाना, तापमान और ताप चालकता के बारे में पता करना और चंद्रमा पर होने वाली सीस्मिक गतिविधियों यानी भूकंप से जुड़ी हुई गतिविधियों की जानकारी इकट्ठा करना था। चांद पर पानी होने का पता लगाने सहित ज्यादा महत्वपूर्ण काम चंद्रयान ऑर्बिटर के हैं जो अभी भी काम कर रहा है।
 
चंद्रयान-2 चांद पर भेजे गए दुनिया के किसी भी ऑर्बिटर की तुलना में सबसे कम खर्च में भेजा गया ऑर्बिटर है। भारत ने चंद्रयान-2 पर करीब 950 करोड़ रुपये खर्च किए। यह खर्च किसी और देश द्वारा चांद पर भेजे गए किसी भी मिशन से कम है। अगर विज्ञान की नजर से देखें तो यह मिशन तयशुदा तरीके से नहीं हुआ लेकिन अभी काम कर रहा है। इसका 95 फीसदी हिस्सा सही है और इससे बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सकेंगी।
 
रिपोर्ट ऋषभ कुमार शर्मा

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