किसी विशाल पत्ते या फिर कॉफी टेबल जितनी बड़े अंगुलियों के निशान जैसे दिखने वाले एक जीवाश्म ने कई दशकों से वैज्ञानिकों को उलझा रखा था। आखिर उसकी पहचान हो गई।
वैज्ञानिक पिछले सात-आठ दशक से यह जानने में जुटे थे कि क्या यह काई जैसा कोई पौधा है या फिर विशाल एक कोशिकीय जीव यानी अमीबा? कहीं यह जीवों की उत्पत्ति के दौर का कोई नाकाम जीव तो नहीं या फिर शायद पृथ्वी पर पैदा हुआ सबसे पहला प्राणी।
रूस में एक टीले की खुदाई के दौरान मिले इन जीवाश्मों का वैज्ञानिक विश्लेषण करने में जुटे हैं। इस दौरान रिसर्चरों ने एक तरह की वसा यानी कोलेस्ट्रॉल का पता लगाया है। इसके साथ ही उन्हें प्रश्नों का उत्तर भी मिल गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह डिकिनसोनिया है यानी धरती पर पैदा हुआ सबसे पहला ज्ञात जीव।
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कूल ऑफ अर्थ साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर जोखेन ब्रॉक्स का कहना है, "वैज्ञानिक 75 साल से भी ज्यादा वक्त से इन विचित्र जीवाश्मों को समझने के लिए जूझ रहे हैं। इस जीवाश्म ने अब इस बात की पुष्टि कर दी है कि डिकिनसोनिया सबसे पुराना ज्ञात जीवाश्म है, इसके साथ ही कई दशकों पुराना रहस्य खत्म हो गया है।" वैज्ञानिकों की इस खोज को अमेरिकी जर्नल साइंस ने गुरुवार को प्रकाशित किया।
डिकिनसोनिया के अंडाकार शरीर की लंबाई में वालय जैसी संरचना होती है और यह 4.6 फीट तक बढ़ सकता है। इस जीव का विश्लेषण करने के बाद पता चला है कि यह 55.8 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर भारी संख्या में मौजूद थे। यह जीव एडियाकारा बायोटा का हिस्सा है। यह जीव उस वक्त पृथ्वी पर थे जब यहां बैक्टीरिया का दौर चल रहा था यानी आधुनिक जीवन शुरू होने के करीब दो करोड़ साल पहले।
वैज्ञानिकों के लिए कार्बनिक पदार्थ से लैस डिकिनसोनिया जीवाश्मों को ढूंढना काफी मुश्किल रहा। ऐसे बहुत से जीवाश्मों का ऑस्ट्रेलिया में पता चला था। इन पर करोड़ों सालों में कई और चीजों का असर पड़ा था। फिलहाल जिस जीवाश्म का अध्ययन किया गया है, वह उत्तर पश्चिम रूस में व्हाइट सी के पास एक टीले से मिला है। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर इल्या बोब्रोव्सकी ने बताया, "मैं हेलीकॉप्टर लेकर दुनिया के इस सुदूर इलाके में पहुंचा, यह भालुओं और मच्छरों का घर है, यहीं पर मुझे ऐसे डकिनसोनिया जीवाश्म मिले जिनमें कार्बनिक पदार्थ अब भी मौजूद थे।"
ये जीवाश्म व्हाइट सी के 50 से 100 मीटर ऊंचे टीलों के बीच में मिले थे। मुझे टीलों के किनारों पर रस्सी के सहारे लटकना पड़ा और इस तरह से मैंने बलुआ पत्थर के बड़े बड़े ब्लॉक्स की खुदाई की। फिर उन्हें नीचे फेंका, पत्थर को धोया और फिर यही प्रक्रिया बार बार तब तक दुहराई जब तक कि मुझे वह जीवाश्म मिल नहीं गया जिसकी मझे तलाश थी।"