कूड़े के बीच पर्यावरण की लड़ाई लड़ता जयप्रकाश चौधरी
शनिवार, 26 अगस्त 2017 (13:33 IST)
1994 तक कचरे के ढेर से चीजें ढूंढने और उन्हें बेचकर गुजारा करने वाले जयप्रकाश चौधरी उर्फ संटू आज करीब 170 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। कूड़े के ढेर से अपनी किस्मत चमकाने वाले जयप्रकाश महीने में 11 लाख रुपये कमा रहे हैं।
41 साल के जयप्रकाश चौधरी ने अपनी जिंदगी के 23 साल कूड़े में ही बीता दिए। दिल्ली के कनॉट प्लेस में कुछ साल पहले तक दिन भर की मेहनत और कूड़े के बीच जद्दोजहद कर वह 150 रुपये तक ही कमा पाते थे, लेकिन उन्होंने कूड़े से पैसे कमाने के आइडिया पर काम किया और इसे सफलतापूर्वक दूसरे लोगों तक पहुंचाया। जयप्रकाश ने कूड़े के निस्तारण से लेकर रिसाइक्लिंग की अहमियत को जाना और अपने जैसे लोगों को साथ लाकर अपने काम को नई पहचान दी। भारतीय शहरों में कूड़े के पहाड़ आम बात है, कूड़े और उससे होने वाले प्रदूषण के बारे में कुछ ही लोग चिंतित दिखते हैं।
जयप्रकाश ने दिल्ली और एनसीआर में कूड़े उठाने वालों का नेटवर्क तैयार कर उन्हें उनके हक के बारे में अवगत कराते हुए सफाई सेना नाम का संगठन खड़ा किया। 1999 में जयप्रकाश चौधरी ने दिल्ली के कनॉट प्लेस से कूड़े उठाने और रिसाइक्लिंग लायक चीजों को बेचने का काम शुरू किया।
जयप्रकाश ने शीशे की बोतल, कागज, गत्ते और प्लास्टिक के स्क्रैप को जमा कर उसे बेचकर पैसे कमाने तरीका जाना, जयप्रकाश बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने 10-12 लोगों को साथ लाकर कूड़ा इकट्ठा कर उससे रिसाइक्लिंग लायक चीजों को अलगकर बेचना शुरू किया। जयप्रकाश चौधरी के मुताबिक, "शुरू में चिंतन नाम के एनजीओ ने हमारी बहुत मदद की और सफाई सेना के गठन में सहयोग दिया। चिंतन ने हमें ट्रेनिंग दी, कूड़ा उठाने वालों के क्या-क्या अधिकार होते हैं, इस बारे में भी हमें जानने को मिला, कचरे के ढेर से पर्यावरण को कैसे बचाना है, यह भी हमें बताया गया। खतरनाक रसायनों और जहरीले गैस से कैसे बचना है हमें इसकी ट्रेनिंग दी गई। आज दिल्ली-एनसीआर में सफाई सेना के 12 हजार सदस्य हैं। 2009 से शुरू हुआ सफाई सेना अब एक अभियान बन गया है। हम पर्यावरण के बारे में तो सोचते हैं साथ ही कूड़ा उठाने वालों के हितों की रक्षा भी करते हैं।"
सफाई सेना ने सरकार से दो साल तक संघर्ष करने के बाद खुद को 2009 में पंजीकृत कराया। सफाई सेना अभी दिल्ली, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और हरियाणा के कुछ हिस्सों में काम कर रही है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन परिसर में रेलवे ने सफाई सेना को कचरा पृथक्करण केंद्र चलाने की अनुमति दी। रेलवे स्टेशन पर लगे कचरे के डिब्बे से सफाई सेना के कर्मचारी सूखा और गीला कूड़ा उठाकर अलग-अलग करते हैं, सूखे कूड़े से रिसाइक्लिंग का माल निकाला जाता है और वह रिसाइक्लिंग करने वालों को बेच दिया जाता है तो दूसरी तरफ गीले कूड़े का इस्तेमाल खाद बनाने के लिए किया जाता है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के अलावा सफाई सेना का एक केंद्र गाजियाबाद के साहिबाबाद में भी चल रहा है। सफाई सेना के जवान घर, दफ्तर, होटल और मॉल से गीला, सूखा और रद्दी उठाकर उसे रिसाइक्लिंग लायक बनाते हैं।
जयप्रकाश चौधरी कहते हैं, "सब लोग कूड़ा फैलाना तो जानते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि उस कूड़े का क्या होगा, उसे कौन हटाएगा और यह पर्यावरण के लिए कितना खतरनाक है। आज हम जो कूड़ा उठा रहे हैं उससे 20 फीसदी ग्रीन हाउस गैस कम करने में मदद करते हैं। साथ ही साथ हम सरकार के कई करोड़ रुपये बचा रहे हैं। अगर यह काम हम नहीं करेंगे तो सरकार को इस कूड़े को उठाने के लिए लोगों को लगाना होगा और उसके बदले में उन्हें पैसे देने होंगे, लेकिन हम तो सरकार के बोझ को ही कम कर रहे हैं।"
जयप्रकाश चौधरी शिकायती लहजे में कहते हैं, "हमने अपनी मांगों को लेकर कई बार सरकार से बात करने की कोशिश की, लेकिन हमारी बात नहीं सुनी गई, दूसरी ओर सरकार बड़ी-बड़ी कंपनियों को कूड़ा उठाने के लिए प्रति किलो के हिसाब से पैसे देती है, तकनीक और मशीन मुहैया कराती है लेकिन सरकार हमें आज तक जगह नहीं दे पाई है। सरकार ने तो हमारे बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा की व्यवस्था तक नहीं की, अगर आज हमारे साथ चिंतन नहीं होता तो शायद हमारे बच्चे स्कूल नहीं जा रहे होते।"
जयप्रकाश चौधरी कहते हैं कि स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने में उनके जैसे लोग अहम कड़ी हैं और कूड़ा उठाने वाले और उसे अलग-अलग कर रिसाइक्लिंग करने वालों को सरकार पहचान दें और साथ ही साथ कूड़ा छंटाई केंद्र के लिए जमीन और तकनीक मुहैया कराए।
"जवानों की ही तरह देश की सेवा कर रहे हैं"
कूड़ा प्रबंधन और रिसाइक्लिंग पर ब्राजील, लक्जमबर्ग और कोपनहेगन में लेक्चर दे चुके जयप्रकाश कूड़ा उठाने वाले लोगों की तुलना सीमा पर तैनात जवानों से करते हैं और कहते हैं कि कूड़ा भी एक खतरनाक दुश्मन की तरह है जो जल, जमीन और वायु पर हमले करता है। अगर कूड़ा उठाने वाले लोग जान जोखिम में डालकर साफ सफाई न करें तो शहरों का हाल बुरा हो जाएगा, लोग बीमार पड़ेंगे और पर्यावरण तेजी से दूषित होगा।
पर्यावरण के प्रति सफाई सेना के योगदान के बारे में गैर सरकारी संगठन चिंतन की चित्रा मुखर्जी बताती हैं, "सिर्फ हमारी दिल्ली में लगभग 40 हजार कूड़ा बीनने वाले हैं जो कि प्रतिदिन पैदा होने वाले कूड़े का लगभग 20-25 फीसदी हिस्सा लैंडफिल में जाने से रोकते हैं और उसका रिसाइक्लिंग करते हैं, जिसमें कि सफाई सेना के ही 12,000 से ज्यादा सदस्य हैं। ये सदस्य रिसाइक्लिंग होने वाले कूड़े का लगभग 30-35 फीसदी हिस्से का निपटारा करते हैं जो कि कूड़े का एक बड़ा भाग है।"
आपको जानकार हैरानी होगी कि दिल्ली के सबसे बड़े डंपिंग ग्राउंड भलस्वा की क्षमता 2006 में ही खत्म हो गई थी। यहीं नहीं दिल्ली के सबसे पुराने डंपिंग ग्राउंड गाजीपुर की क्षमता 2002 में ही खत्म हो चुकी है। चित्रा का कहना है कि कूड़ा बीनने वालों के हक और पर्यावरण को बचाने के लिए चिंतन और सफाई सेना लड़ती रहेगी, साथ ही चित्रा सरकार से मांग करती हैं, "सरकार ठोस कचरा प्रबंधन नियम 2016 को जमीनी स्तर पर लागू करें, कबाड़ियों की पहचान कर उनको सरकार आई कार्ड दे, कबाड़ी के काम में लगे लोगों को स्वास्थ बीमा मिले, इस काम में लगे लोगों को पेंशन मुहैया कराए, कूड़े के काम में लगे लोगों के बच्चों को स्कॉलरशिप दें। तब जाकर उन लोगों को समाज में सही पहचान मिल पाएगी।"
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट
पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक भारत में हर साल 620 लाख टन कूड़ा पैदा होता है। इसमें ई-वेस्ट और हैजर्डस वेस्ट शामिल नहीं है। 620 लाख टन कचरे में 56 लाख टन प्लास्टिक और 2 लाख टन बायोमेडिकल कचरा है। भारत में प्रतिदिन हर व्यक्ति 400 ग्राम कचरा पैदा करता है। आपको जानकार हैरानी होगी कि 620 लाख टन कूड़े में से 70 फीसदी कूड़ा ही इकट्ठा किया जाता है। यानी 190 लाख टन कूड़ा ऐसे ही इधर-उधर पड़ा रह जाता है। यही कूड़ा जमीन, पानी और वायु को प्रदूषित करता है। 620 लाख टन कूड़े में से सिर्फ 30 फीसदी कूड़ा ही ट्रीट हो पाता है, जैसे खाद या फिर उससे बिजली बनाई जाती है। बाकी का कचरा डंपिंग ग्राउंड या फिर लैंडफिल के लिए भेज दिया जाता है, जो समय के साथ बड़े पहाड़ का रूप ले लेते हैं और बदबू के साथ-साथ हर तरह का प्रदूषण फैलाते हैं। असहनीय दुर्गंध के बीच आसपास के लोगों को इन कूड़े के पहाड़ों के पास से गुजरना पड़ता है।
भारत में वेस्ट मैनेजमेंट नियमों के मुताबिक बायो-डिग्रेडेबल, रिसाइलकिल और खतरनाक कचरा अलग-अलग जमा होना चाहिए। इन सब खतरों के बीच कूड़े से लड़ते और जूझते जयप्रकाश चौधरी जैसे ना जाने कितने हजार कूड़ा बीनने वाले लोग रोज पर्यावरण और समाज को गुमनामी के साथ स्वच्छ बना रहे होंगे।