चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार इन देशों में भारत के अलावा पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, नाइजीरिया, ग्रीस, इटली, इसराइल, नॉर्वे और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि इस सूची में अमेरिका भी शामिल है। नई दिल्ली में चीन के दूतावास के बाहर इस बारे में एक नोटिस भी लगा दिया है जिसमें स्पष्ट लिखा है कि दूतावास चीन जाने के इच्छुक उन्हीं लोगों की वीजा लेने में सहायता करेगा जिन्होंने कोरोना वायरस के खिलाफ चीन में बनी कोई वैक्सीन ली हो और टीकाकरण का प्रमाणपत्र हासिल किया हो।
बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शाओ लिहियान ने कहा का कि कई देशों ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के लिए टीका अनिवार्य कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन ने यह प्रस्ताव चीनी टीकों की सुरक्षात्मकता और गुणकारिता का पूरी तरह से मूल्यांकन करने के बाद ही दिया है। उन्होंने कहा कि इस कदम का चीनी टीकों की स्वीकार्यता बढ़ाने से कोई संबंध नहीं है।
चीन अभी तक देश के अंदर इस्तेमाल के लिए 5 वैक्सीनों को हरी झंडी दिखा चुका है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन से अभी तक इनमें से किसी को भी स्वीकार्यता नहीं मिली है। हालांकि चीन का दावा है कि 60 से भी ज्यादा देश चीनी टीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत ने भी चीन में बने किसी भी टीके को स्वीकार नहीं किया है।
देश में अभी तक सिर्फ 2 टीके उपलब्ध हैं- ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन, जिसे सीरम इंस्टीट्यूट कोविशील्ड के नाम से बना रहा है और भारत में ही विकसित हुई आईसीएमआर और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन। चीन के इस कदम की वजह से प्रभावकारी रूप से कोई भी भारतीय नागरिक फिल्हाल चीन नहीं जा पाएगा और संभव है कि यह स्थिति दोनों देश के बीच एक नए विवाद का रूप ले ले। लेकिन भारत सरकार ने अभी तक चीन के इस कदम पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।