दुनियाभर में इंटरनेट सेवाओं को बंद करने की घटनाएं बढ़ रही हैं लेकिन भारत में हालात सबसे खराब हैं। इस कारण लोगों की नौकरियां जा रही हैं और युवाओं को भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। 'द कश्मीर वाला' के संपादक और पत्रकार जब किसी समाचार को लेकर संदेह में होते या किसी तथ्य के बारे में और पुष्ट जानकारी चाहिए होती तो वे तुरंत गूगल पर जाते थे, क्योंकि अखबार को प्रेस में भेजने की जल्दी होती थी।
लेकिन ऐसा 2019 के बाद संभव नहीं रहा। भारत सरकार ने जब कश्मीर घाटी में 18 महीने तक इंटरनेट और फोन सेवा बंद रखी, उस दौरान कश्मीर वाला के पत्रकारों के लिए काम मुश्किल हो गया। लिहाजा उन्हें नए तरीके खोजने पड़े।
साप्ताहिक पत्रिका 'द कश्मीर वाला' के एक संपादक यशराज शर्मा कहते हैं कि अगर हमें किसी सूचना पर संदेह होता या कोई और जानकारी चाहिए होती तो हम लिखे समाचार में खाली जगह छोड़ देते थे। हर हफ्ते एक सहकर्मी विमान से दिल्ली जाता और वहां जाकर उन खाली जगहों को भरता।
घाटी के पत्रकारों के लिए यह दर्जनों नई परेशानियों में से सिर्फ एक थी। 25 साल के यशराज शर्मा बताते हैं कि उस दौरान उनका मोबाइल फोन काम नहीं करता था तो एक बार एक समाचार की खातिर उन्हें एयरपोर्ट जाना पड़ा। वहां जाकर उन्होंने दिल्ली में अपने दोस्त को फोन किया और फोन पर 800 शब्दों का पूरा समाचार लिखवाया।
शर्मा कहते हैं कि वह घटना हमेशा मुझे याद रहेगी, क्योंकि इंटरनेट शटडाउन के दौरान वह मेरा सबसे लंबा फोन कॉल था। शर्मा याद करते हैं कि वे दिल्ली के अपने दोस्तों को कहते थे कि उनके ई-मेल देखें और उन्हें पढ़कर सुनाएं।
भारत ने 5 अगस्त 2019 को अपने हिस्से वाले कश्मीर (तब जम्मू और कश्मीर) का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था। इसक मकसद मुस्लिम-बहुल इलाके को भारत के साथ पूरी तरह जोड़ना था। इस फैसले का विरोध होने की आशंका के चलते अधिकारियों ने संपूर्ण संचार व्यवस्था बंद कर दी थी। लिहाजा ना फोन चल रहे थे ना इंटरनेट। यह बंदी 5 फरवरी 2021 तक जारी रही, जब क्षेत्र में 4जी मोबाइल डाटा सेवाएं दोबारा शुरू हुईं। 1 साल बाद धीमी गति वाली इंटरनेट सेवा शुरू की गई लेकिन कुछ पाबंदियों के साथ।
पाषाण युग में वापसी
इंटरनेट और फोन सेवाओं का बंद होना बुजुर्ग कश्मीरियों के लिए पुराने समय में लौट जाने जैसा था। उन्हें अपनी युवावस्था याद आई जबकि वे चिट्ठियां लिखा करते थे और फोन करने के लिए घर से काफी दूर जाया करते थे।
लेकिन युवाओं के लिए यह अलग अनुभव था। 25 साल के उमर मकबूल कहते हैं कि यह 'पाषाण युग' में चले जाने जैसा था। अगस्त 2019 में यानी पाबंदियां लागू होने से ठीक पहले मकबूल ने कैमरे और अन्य उपकरण खरीदे थे। वे अपना वीडियोग्राफी बिजनेस शुरू कर रहे थे। इसके लिए उन्होंने बैंक से भारी कर्ज लिया था लेकिन सब बंद हो गया और उन्हें कोई काम नहीं मिला। अपना कर्ज चुकाने के लिए उन्हें परिवार और दोस्तों से उधार लेना पड़ा। 5 जनों के परिवार को पालने वाले मकबूल बताते हैं कि बिजनेस से मैंने बहुत उम्मीदें लगाई थीं लेकिन मेरी किस्मत में कुछ और ही लिखा था।
पूरी दुनिया में सरकारों द्वारा इंटरनेट बंद करने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं लेकिन भारत सरकार का रिकॉर्ड सबसे खराब है। डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था 'एक्सेस नाऊ' के मुताबिक पिछले साल भारत ने कम से कम 106 बार इंटरनेट सेवाएं बंद की जिससे अर्थव्यवस्था को लगभग 60 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ। 106 में से 85 बार यह पाबंदी सिर्फ जम्मू और कश्मीर इलाके में लागू हुई। कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं को बंद करने की वजह मूलत: सुरक्षा बताई गई जबकि अन्य जगहों पर विरोध प्रदर्शनों, धार्मिक त्योहारों, चुनाव और परीक्षा आदि थे।
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन में काम करने वाले कृष्णेश बापट कहते हैं कि भारत में इंटरनेट बंद करना बेहद अत्यधिक आसान है और केंद्रीय व राज्यस्तरीय अधिकारी बिना किसी अदालती इजाजत के ऐसा कर सकते हैं। बापट बताते हैं कि विरोध प्रदर्शनों या परीक्षाओं में नकल रोकने के नाम पर इंटरनेट सेवा बंद करने को मजबूत फैसले के रूप में सराहा जाता है जबकि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जो बताता हो कि इंटरनेट सेवा जारी रहने पर नतीजे कुछ अलग होते। इस बारे में रॉयटर्स ने भारत के गृह मंत्रालय से टिप्पणी मांगी थी लेकिन कोई जवाब नहीं दिया गया।
दुनियाभर में इंटरनेट पाबंदी
इंटरनेट पर पाबंदी दुनियाभर में लगातार बढ़ रही है। इसकी अवधि भी बढ़ती जा रही है और साथ ही इससे होने वाले नुकसान भी। एक्सेस नाऊ के मुताबिक इंटरनेट बंद होने से अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है और कमजोर तबकों के लोगों को ज्यादा आर्थिक और सामाजिक नुकसान होते हैं। एक्सेस नाऊ के मुताबिक पिछले साल 34 देशों ने 182 बार इंटरनेट पर पाबंदी लगाई। 2020 के मुकाबले यह अधिक था जबकि 29 देशों ने 159 बार इंटरनेट सेवा बंद की थी।
एक्सेस नाऊ के मुताबिक भारत उन चंद देशों में से है जिन्होंने इंटरनेट बंद करने के लिए बाकायदा नियम तय किए हैं। सरकार ने 2017 में ये नियम बनाए थे। 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंटरनेट लोगों का मूलभूत अधिकार है और कश्मीर में अनिश्चकालीन समय तक इंटरनेट को बंद रखना गैरकानूनी है। कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट बंद करने के लिए लागू किए जाने वाले सभी आदेश सार्वजनिक किए जाने चाहिए।
लेकिन कोर्ट के आदेश का कोई खास असर नहीं हुआ है और अधिकारियों ने कश्मीर समेत पूरे देश में पाबंदी लगाना जारी रखा है। बापट कहते हैं कि अक्सर इसके लिए कोई वजह भी नहीं बताई जाती। वे कहते हैं कि इंटरनेट सेवा बंद करने के आदेश को अदालत में चुनौती देना मुश्किल है, क्योंकि जब तक याचिकाकर्ता कोर्ट जाते हैं तब तक आदेश की अवधि खत्म हो जाती है।
इसके बावजूद बापट के मुताबिक कानूनी चुनौतियां जरूरी होती हैं, क्योंकि कानून बार-बार तोड़े जा रहे हैं। इस साल की शुरुआत में कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार का कई जिलों में इंटरनेट सेवा बंद करने का आदेश खारिज कर दिया। राज्य सरकार ने परीक्षा में नकल रोकने को आधार बनाकर यह आदेश जारी किया था लेकिन अदालत ने कहा कि यह आदेश 'अतार्किक था और कोई सार्वजनिक इमरजेंसी नहीं थी।'
पिछले 1 दशक में कश्मीर ने करीब 400 बार इंटरनेट सेवा बंदी झेली है। इस कारण दसियों हजार लोगों की नौकरियां गई हैं, क्योंकि छोटे उद्योग-धंधे या तो बंद हो जाते हैं या फिर आर्थिक नुकसान झेलते हैं। 22 साल की इंशा जैसी युवती पर इस बंदी का असर सबसे ज्यादा होता है। इंशा 4 साल पहले पढ़ने के लिए कश्मीर छोड़ दिल्ली चली गईं।
वे कहती हैं कि मैं ऐसी जगह नहीं रह सकती, जहां इंटरनेट को दिनों के लिए ही नहीं महीनों के लिए बंद किया जा सकता हो। कश्मीर में मुझे कोई भविष्य नहीं दिख रहा था। Edited by: Ravindra Gupta