क्या जीन की वजह से बच्चे सफल और असफल होते हैं?

DW

रविवार, 3 अक्टूबर 2021 (08:09 IST)
हमें अपने माता-पिता से जीन विरासत में मिलते हैं। यह एक लॉटरी की तरह होता है। लोगों का कहना है कि जीन की वजह से ही बच्चों का भविष्य तय होता है। आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है?
 
आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) को लेकर लोग अक्सर असहज महसूस करते हैं या चिंतित रहते हैं। हमारे साथ बातचीत करते हुए कैथरीन पेगे हार्डन कहती हैं, "लोग सोचते हैं कि आनुवंशिकी का मतलब है कि हम जो कुछ भी करते हैं उसके नतीजे पहले से ही निर्धारित रहते हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम अपने सामाजिक वातावरण क्या बदलाव करते हैं। हालांकि, यह बात सच नहीं है।"
 
हार्डन, ऑस्टिन स्थित टेक्सस यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान और व्यवहार आनुवंशिकी विषय की प्रोफेसर हैं। उनका मानना है कि आनुवंशिकी का इस्तेमाल हम लोगों के अधिक ‘सटीक मॉडल' बनाने के लिए कर सकते हैं। साथ ही, उन्हें अपने समाज में रहने लायक बना सकते हैं, ताकि दुनिया पहले की तुलना में ज्यादा सामाजिक बने और सभी को आगे बढ़ने में मदद मिले।
 
वह कहती हैं कि ऐसा करके, हम विज्ञान और तकनीक की मदद से ऐसे भाग्यशाली लोग जिनके पास सबसे अच्छे जीन हैं और जो सबसे अमीर और बेहतर सामाजिक वातावरण में पले-बढ़े हैं, के साथ-साथ सभी लोगों को फायदा पहुंचा सकते हैं।
 
‘आनुवंशिकी किस्मत नहीं है'
हार्डन कहती हैं कि लोगों को आनुवंशिकी से डरने का एक और कारण है। वह यह है कि आनुवंशिकी की वजह से लोग यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि बदलाव के लिए जिम्मेदार कौन है।
 
वह कहती हैं, "जब लोग सुनते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धि ‘आनुवंशिक' या ‘जीन से प्रभावित' है, तो इस नतीजे पर पहुंचना आसान होता है कि इसे बदलने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है। अगर कुछ नहीं किया जा सकता है, तो मैं कुछ नहीं कर सकता, मैं जिम्मेदार नहीं हूं।"
 
तर्क यह भी दिया जाता है कि इसके लिए समाज जिम्मेदार नहीं है। तो, आखिर कौन जिम्मेदार है? माता-पिता या कोई और?
 
हार्डन कहती हैं, "इसका एक पुराना उदाहरण है, चश्मा। यह 1970 के दशक के अर्थशास्त्री आर्थर गोल्डबर्गर का है। कितना अजीब होगा अगर हम कहें कि आपकी आंखों की रौशनी कम होने की वजह आनुवंशिकी है। इसलिए, हम एक समाज के रूप में यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं कि आपके पास चश्मा है या नहीं।"
 
जानकारी का अभाव
आनुवंशिकी को लेकर हमारे पास जो जानकारी है उस पर कौन बहस कर सकता है, ताकि हम सब उसके बारे में बेहतर तरीके से जान सकें? इस विषय में अभी काफी कम जानकारी है।
 
हार्डन की किताब ‘द जेनेटिक लॉटरी' में यह बात साफ तौर पर दिखती है जिसमें वह ‘गलत जानकारी' के खिलाफ अपना तर्क रखती हैं। इन ‘गलत जानकारियों' को जानबूझकर पीढ़ियों से प्रचारित किया जा रहा है, ताकि समाज में बदलाव न हो सके। 
 
इसका एक उदाहरण है, "1960 के दशक में, मनोवैज्ञानिक आर्ट जेन्सेन ने कहा कि हमें नागरिक अधिकारों के आंदोलन के सुधारों से परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। उस समय अमेरिका में गरीबों और अश्वेतों को शैक्षिक रूप से आगे बढ़ाने का कोई तरीका नहीं था। जेन्सेन आनुवंशिकी के सदियों पुराने विचार से पूरी तरह प्रेरित थे। उन्होंने कहा कि सामाजिक नीतियों से परेशान न हों, क्योंकि यह पूरी तरह बेकार है।"
 
समाज में समानता
हार्डन को अपनी शोध के दौरान ऐतिहासिक बातों की तुलना में बेहतर जानकारी मिली। वह प्रिंसटन एंथ्रोपॉलजिस्ट (मानवविज्ञानी) अगस्टिन फ्यूएंट्स जैसे अपने समय के लोगों की भी बात करती हैं।
 
हमसे बात करते हुए फ्यूएंट्स हंसते हए कहते हैं, "एक सहकर्मी जो हार्डन की किताब की समीक्षा कर रही हैं, ने मुझे बताया कि उन्होंने मेरी तुलना स्टालिन से की थी। यह अच्छी बात है कि वैसा नहीं है।"
 
हालांकि, फ्यूएंट्स का कहना है कि हार्डन ने इस सवाल पर अपनी स्थिति को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है कि समाज को कब, कहां और कैसे ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए जिनकी जिंदगी आनुवंशिकी की वजह से कठिन हो सकती है।
 
यह जिम्मेदारी भरा सवाल है। क्या हम सिर्फ आनुवंशिकी के रहस्यों को दोष दें और चुपचाप हाथ धरे बैठे रहें या हमें समाज में समानता लाने के अन्य रास्ते तलाशने चाहिए?
 
फ्लूएंट्स का कहना है कि कई सारे ऐसे लोग हैं जो समाज में समानता लाने के लिए ‘सिर्फ बातें' करते हैं और वे उन लोगों में से नहीं हैं। वह कहते हैं, "समाज बेहतर तरीके से चलता रहे, इसके लिए सामाजिक समानता जरूरी है। हमारा नैतिक दायित्व है कि हम अपने समाज को बेहतर बनाएं और उसे आगे बढ़ाने के लिए काम करें। हालांकि, समाज समतावादी नहीं होना चाहिए क्योंकि सभी लोग एक-दूसरे से अलग होते हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि हम आनुवंशिक रूप से भिन्न कैसे होते हैं।
 
आनुवंशिक भिन्नता
जब हम आनुवंशिक भिन्नता की बारीकियों के बारे में बात करते हैं तो चीजें थोड़ी अधिक जटिल हो जाती हैं। आनुवंशिक भिन्नता की वजह से ही कई आदतें विकसित होती हैं या कई बीमारियों के होने का खतरा रहता है। जैसे, कुछ लोगों की आदत देर तक सोने की होती है, कुछ गणित में कमजोर होते हैं वगैरह।
 
हार्डन कहती हैं कि इन विविधताओं को मापने का एक तरीका है जिसे पॉलीजेनिक इंडेक्स कहा जाता है। वह चाहती हैं कि शोधकर्ता आनुवंशिक भिन्नता की पहचान करें और इनका इस्तेमाल सामाजिक परिवर्तन और सरकारी नीति को बेहतर बनाने के लिए किया जाए।
 
हालांकि, फ्लूएंट्स का तर्क है कि अगर हम आनुवंशिक विविधताओं को प्राथमिकता देते हैं जिनके बारे में यह जानते हैं कि इनकी वजह से लोगों के जीवन के अलग-अलग नतीजे प्रभावित नहीं होते हैं, तो इसका मतलब है कि हम जानबूझकर उन सभी चीजों को दरकिनार कर रहे हैं जो हम वास्तव में कर सकते हैं या बदल सकते हैं।
 
फ्लूएंट्स कहते हैं, "किसी व्यक्ति के बड़े होने के दौरान उसे मिलने वाले पोषण, या स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता या व्यक्ति के साथ किसी तरह का भेदभाव हुआ है या नहीं, जैसी चीजें हम जानते हैं। इन सारी चीजों की जानकारी इकट्ठा कर, हम यह पता लगा सकते हैं कि किसी व्यक्ति की जिंदगी और उसकी सफलता पर इनका क्या असर होता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां हम कुछ कर सकते हैं।"
 
आखिर जिम्मेदार कौन है?
आनुवंशिक जिम्मेदारी अभी भी एक कठिन और अनसुलझा विषय है। ‘द ह्यूमन जीन एडिटिंग डिबेट' के लेखक जॉन इवांस कहते हैं, "अगर माता-पिता को यह नहीं मालूम है कि उन्हें सिकल सेल रोग है और वे बच्चे पैदा करते हैं, तो वे अपने बच्चों की आनुवंशिक सीमाओं के लिए वास्तव में जिम्मेदार नहीं हैं।"
 
हालांकि, उनका कहना है कि जीन में बदलाव करके माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर बना सकते हैं। वे X, Y और Z को बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, Z कोई सामान्य प्रभाव है, जैसे कि चश्मे की जरूरत।
 
वह आगे कहते हैं, "वातावरण बदलने से लोगों में डर कम हो सकता है, क्योंकि हम सोचते हैं कि अगर बदलाव के सकारात्मक परिणाम नहीं आते हैं, तो पुराने वातावरण में वापस लौटा जा सकता है। हालांकि, आनुवंशिक रूप से ‘धीमी गति से सीखने वाले' बच्चों के लिए विशेष स्कूल होने से उन्हें ‘सामाजिक कलंक' के तौर पर देखा जा सकता है।
 
इवांस कहते हैं, "जीन पर पूरा ध्यान देने के साथ, लोगों को यह सिखाना है कि व्यक्तिगत आनुवंशिकी जीवन को प्रभावित करती है। माता-पिता पर यह सुनिश्चित करने का दबाव होना चाहिए कि वे अपने बच्चे को आनुवंशिक रूप से संशोधित करें, ताकि बच्चे X स्कूल में जाएं, Y यानी ‘धीमी गति से सीखने वाले' में नहीं।"
 
‘इस तरह से अनुवांशिक संशोधन सामान्य लोगों के लिए संभव होंगे या नहीं' के सवाल पर इवांस का कहना है कि समाज इस तरह से पहले से ही बंटा हुआ है कि कई चीजें कुछ लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध हैं, तो कुछ के लिए वहां तक पहुंचना काफी मुश्किल है।
 
वह कहते हैं, "अमीर लोग नहीं चाहते कि अनुवांशिक संशोधन तक सामान्य लोगों की पहुंच हो, ताकि उन्हें पहले से जो सामाजिक लाभ मिलता आ रहा है वह मिलता रहे।" अमेरिका में यह पहले से ही होता आ रहा है। जैसे, हार्वर्ड से स्नातक करने वाले उसी यूनिवर्सिटी से स्नातक करने वालों से शादी करते आ रहे हैं।
 
इसलिए, अभी ऐसे भविष्य की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है जहां जीन में बदलाव होना सामान्य बात हो गई हो। इसका मतलब ये नहीं है कि आनुवंशिकी में हो रहे शोध को रोक देना चाहिए। फिलहाल, सभी विचारों को एक जगह पर लाने और व्यवहारिक तरीके से सहमति बनाते हुए खोज की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है।
 
हार्डन का कहना है कि वर्तमान शोध के केंद्र में "बच्चों के जीवन में क्या कारण होते हैं" में एक "बड़ी समस्या" है। समस्या यह है कि शोध इस विचार पर आधारित है कि बच्चों का जीवन उनके परिवारिक वातावरण से प्रभावित होता है। इसमें आनुवंशिकी का कोई योगदान नहीं है।
 
हार्डन कहती हैं, "यह वास्तव में दुनिया के सटीक मॉडल बनाने की हमारी क्षमता को कमजोर करता है। मैं यह नहीं कह रही हूं कि वातावरण मायने नहीं रखता। वे बच्चों के लिए मायने रखते हैं, लेकिन यह पता लगाना कि कौन सा वातावरण ज्यादा मायने रखता है, किस वातावरण में बदलाव का सबसे ज्यादा फायदा मिल सकता है, बहुत ही कठिन वैज्ञानिक समस्या है।" वह कहती हैं, "और मुख्य कारणों में से एक यह है कि हम सभी आनुवंशिक रूप से भिन्न होते हैं।"
 
रिपोर्ट जुल्फिकार अबानी

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