इस गठबंधन का नाम इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेररिज्म कोएलिशन रखा गया है, जिसमें आधिकारिक रूप से 41 सदस्य हैं और इसे चरमपंथी हिंसा के खिलाफ एक व्यापक एकजुट इस्लामिक गठबंधन बताया जा रहा है। सऊदी क्राउन प्रिंस ने ही 2015 में इस गठबंधन का एलान किया था। प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान न सिर्फ सऊदी अरब की सत्ता पर लगातार अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं बल्कि पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र में भी उनके कदमों से उलटफेर हो रहा है।
नए गठबंधन में ज्यादातर सुन्नी इस्लामिक देश या फिर सुन्नी शासन वाले देश ही शामिल हैं। इसका मतलब है कि इसमें न तो सऊदी अरब का कड़ा प्रतिद्वंद्वी ईरान शामिल है और न ही सीरिया और इराक, जिनके नेताओं से ईरान से करीबी संबंध हैं। सऊदी अरब और ईरान के संबंधों में बरसों से कड़वाहट रही है लेकिन हाल में सीरिया और यमन के संकटों के अलावा लेबनान के सियासी घटनाक्रम ने इसे और बढ़ा दिया है। सऊदी अरब ईरान पर मध्य पूर्व में हथियारबंद गुटों का समर्थन करने का आरोप लगाता है जिसमें लेबनान के शिया गुट हिज्बुल्लाह का नाम भी आता है।
इस गठबंधन में मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, युगांडा, सोमालिया, मॉरिटानिया, लेबनान, लीबिया, यमन और तुर्की जैसे देश शामिल हैं। पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ को इस गठबंधन का कमांडर इन चीफ बनाया गया है। उन्होंने कहा कि यह गठबंधन किसी धर्म या देश के खिलाफ नहीं है। उनके मुताबिक गठबंधन का मकसद सदस्य देशों के बीच संसाधनों और सूचनाओं के तालमेल से आतंकवाद से लड़ना है।
आधिकारिक तौर पर कतर इस गठबंधन में शामिल है, लेकिन सऊदी अरब समेत कई खाड़ी देशों ने उसका बहिष्कार कर रखा है, इसलिए कतर का कोई अधिकारी रियाद की बैठक में मौजूद नहीं था।