मुस्लिम महिला होने का मतलब

बुधवार, 5 जुलाई 2017 (14:29 IST)
दुनिया के अलग अलग देशों में पर्दे में या पर्दे के बाहर एक मुस्लिम महिला की ज़िंदगी का क्या मतलब है। इस पर नॉर्वे की लेखिका और पत्रकार बिर्गिटे सी हुईफेल्ड्ट ने किताब लिखी है अनसेंसर्ड।
 
मिस्र में असल आजादी की जरूरत
किताब शुरू होती है नवल ए सादावी के साथ जो डॉक्टर, लेखिका और महिला अधिकारों की जानी मानी पैरोकार हैं। मध्य पूर्व की महिलाएं अपनी लड़ाई में बड़ा मुकाम हासिल करने में अब तक क्यों नाकाम रही हैं, इस पर वो कहती हैं, "जो पितृसत्तात्मक, साम्राज्यवादी और सैन्य तंत्र हमारी जिंदगी को तय करता है उसमें महिलाओं को आजादी नहीं मिल सकती। हम पर ताकत और झूठे लोकतंत्र से शासन होता है, न्याय और असल आजादी से नहीं।"
 
निर्वासन झेलती सीरियाई मनोविश्लेषक
सीरियाई मनोविश्लेषक राफाह नाशेद को भयभीत असद विरोधी प्रदर्शनकारियों की मदद के लिए बैठक बुलाने के बाद सितंबर 2011 में दमिश्क से गिरफ्तार किया गया। दो महीने बाद उन्हें आजाद तो कर दिया गया लेकिन अब वह पेरिस में निर्वासित जिंदगी जी रही हैं। हुईफेल्ड्ट की किताब में वह कहती हैं, "अरब समाज में बदलाव को इंकार किया जाता है क्योंकि जो भीड़ का हिस्सा नहीं है उसे नास्तिक या असामान्य मान लिया जाता है।"
लोगों की इच्छा है लोकतंत्र
ईरानी वकील शिरीन एबादी ने अपना जीवन महिलाओं, बच्चों और शरणार्थियों के अधिकारों की लड़ाई में लगा दिया है। अपने देश में वो सरकार और पुलिस के लिए खतरा मानी जाती हैं। 2003 में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिला। वह कहती हैं, "लोकतंत्र पूर्व और पश्चिम को नहीं जानता, लोकतंत्र लोगों की इच्छा है। इसलिए मैं लोकतंत्र के अलग अलग मॉडल को नहीं मानती।"
 
इस्राएल और फलस्तीन के बीच शांति
"निश्चित रूप से कब्जा जो है वो पुरुषों का है खासतौर से सैन्य कब्जा। इस्राएल और फलस्तीन के बीच जो विवाद है वह पुरूषों का बनाया है और हम महिलाओं को इसे खत्म करना है," यह कहना है फलस्तीनी सांसद, कार्यकर्ता और विद्वान हन्नान अशरावी का। यहूदी शरणार्थियों के बारे में कुछ विवादित बयान देने के बावजूद अशरावी ने इस्राएल और फलस्तीन के बीच शांति के लिए अहम योगदान दिया है।
 
यमन में महिलाओं से डरते पुरुष
महिला अधिकारों की पैरोकार अमाल बाशा यमन की हैं। उनके देश को 2016 में संयुक्त राष्ट्र के लैंगिक समानता सूचकांक में सबसे नीचे रखा गया था। वह कहती हैं कि महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर शरिया कानून के जरिए रोक लगायी जाती है, लेकिन क्यों? उनका कहना है, "पुरूष डरते हैं क्योंकि महिलाएं शांति की आवाज हैं। उनकी जंग में कोई दिलचस्पी नहीं।"
लीबिया में शांति की उम्मीद
लीबिया की हाजर शरीफ संयुक्त राष्ट्र की सलाहकार समिति और कोफी अन्नान फाउंडेशन की सदस्य हैं। वह कहती हैं कि लीबिया में गृह युद्ध को खत्म करने के लिए महिला पुरूष, दोनों को अपना रवैया बदलना होगा। उनका कहना है, "अगर आप घरों पर नज़र डालेंगे तो मांएं अपने बेटों को जंग में भेजती दिखेंगीं। अगर वे खुद हथियार लेकर नहीं चल रहीं तो भी निश्चित रूप से वे लीबिया में जो हिंसा का चक्र है उसमें योगदान दे रही हैं।"
 
जॉर्डन में इज्जत के नाम पर हत्या
जॉर्डन की राना हुसैनी एक महिला अधिकारवादी ,मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और एक खोजी पत्रकार भी हैं, जिनकी रिपोर्टों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर रोशनी डाली है। इज्जत के नाम पर हत्या के बारे में उनका कहना है, "जॉर्डन का समाज हर चीज के लिए महिलाओं को जिम्मेदार बताता है, बलात्कार के लिए, उत्पीड़न के लिए, लड़कियों को जन्म देने के लिए और यहां तक कि पुरूषों के व्यभिचार और धोखेबाजी के लिए भी।"

वेबदुनिया पर पढ़ें