12 जून 1886 को एक जर्मन जहाज ने हिंद महासागर में एक बोतल फेंकी। बोतल के भीतर एक संदेश था। 130 साल बाद यह बोतल हजारों किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया में मिली है।
बोतल ऑस्ट्रेलियाई शहर पर्थ से 140 किलोमीटर दूर एक ऑस्ट्रेलियाई परिवार को मिली। वह रेत में फंसी हुई थी। बोतल खोजने वाली टोन्या इलमैन के मुताबिक, "हम तट के पास टहल रहे थे, तभी रेत में आधी फंसी चीज पर नजर पड़ीं।"
टोन्या ने बताया कि बोतल के भीतर लपेटा हुआ कागज का एक रोल था, "उसे कसकर एक धागे से बांधा गया था। हम उसे घर लेकर गए और उसे सुखाया। तब हमें पता चला कि उसमें जर्मन में कुछ लिखा है, बहुत ही धुंधली हैंडराइटिंग में जर्मन में कुछ लिखा था।"
टोन्या के परिवार ने विश्लेषण के लिए बोतल वेस्टर्न ऑस्ट्रेलियन म्यूजियम को दी। म्यूजियम ने जर्मनी और नीदरलैंड्स के प्रशासन से संपर्क किया। कागज पर लिखे गए मैसेज की समीक्षा से ऐतिहासिक प्रयोग का पता चला।
संदेश में लिखा गया था, "जहाज से यह बोतल 12 जून 1886 को लैटिट्यूड 32° 49' साउथ और लॉन्गिट्यूड 105° 25' ग्रीनविच ईस्ट से फेंकी गई।" बोतल इंग्लैंड के कार्डिफ से मेडागास्कर जा रहे पाउला नाम के जहाज से फेंकी गई थी। मेडागास्कर से ऑस्ट्रेलिया का पश्चिमी तट करीब 8,000 किलोमीटर दूर है।
संदेश में यह भी कहा गया था कि जिसे भी ये बोतल मिले, वह हैम्बर्ग शहर की जर्मन नेवल ऑब्जरवेट्री को यह कागज सौंप दे। जर्मन जांच एजेंसियों ने मैसेज को असली करार दिया है।
समुद्र से जुड़े प्रयोगों के लिए जर्मनी ने 69 साल तक हजारों संदेश भरी बोतलें महासागरों में फेंकी। वैज्ञानिक इन बोतलों के जरिये समुद्री लहरों का बहाव समझना चाहते थे। इस प्रयोग के जरिए लहरों के व्यवहार की दिलचस्प जानाकारियां जुटाई गईं। अब तक हैम्बर्ग की ऑब्जरवेट्री में दुनिया भर से 662 बोतलबंद संदेश आ चुके हैं।