दरअसल रूस की 70 वर्षीय सांसद तमारा प्लेटनयोवा ने एक रेडियो चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि हो सकता है रूसी महिलाओं की एक पूरी पीढ़ी विदेशियों के बच्चे पाल रही हो। प्लेटनयोवा के इस बयान को नस्लवादी माना जा रहा है। खास कर तब जब फीफा का नारा है, "से नो टू रेसिज्म" यानी नस्लवाद को ना कहें। यही नारा वर्ल्ड कप के मैच देखने आए लोगों के पहचान पत्रों पर भी लिखा जाता है।
प्लेटनयोवा संसद की पारिवारिक मामलों की समिति की अध्यक्ष हैं। दरअसल 1980 में जब रूस ने ओलंपिक खेलों की मेजबानी की, उसके बाद अकसर ऐसा कहा गया कि खेल देखने आए विदेशियों ने स्थानीय महिलाओं से संबंध बनाए और बाद में कभी बच्चों की जिम्मेदारी नहीं ली। हालांकि इन अटकलों को कभी साबित नहीं किया जा सका लेकिन ये लोक कथाओं का हिस्सा बन चुकी हैं और प्लेटनयोवा के बयानों में भी इसी की झलक दिखती है।
स्थानीय रेडियो स्टेशन से बात करते हुए उन्होंने कहा, "युवा महिलाएं किसी से मिलेंगी और फिर बच्चों को जन्म देंगी। मैं उम्मीद करती हूं कि ऐसा ना हो।" विदेशियों से दूरी बनाने पर जोर देते हुए उन्होंने आगे कहा, "हमें अपने खुद के बच्चों को जन्म देना चाहिए।" उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे संबंधों के कारण अकसर महिलाएं विदेशियों से शादी करने पर मजबूर हो जाती हैं और ऐसे में उन्हें अपने वतन से दूर होना पड़ता है।
रूसी सरकार ने खुद को प्लेटनयोवा के बयान से दूर करते हुए इस इंटरव्यू के कुछ घंटों बाद ही बयान जारी किया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा, "रूसी महिलाएं अपने मामले खुद संभाल सकती हैं। वे दुनिया की बेहतरीन महिलाएं हैं।"