विपक्ष के नेताओं ने दावा किया है कि उनके आईफोन पर 'सरकार द्वारा प्रायोजित' साइबर हमले की कोशिश की गई है। इससे पेगासस मामले की यादें ताजा हो गई हैं, जब सरकार पर नेताओं और पत्रकारों के फोन हैक करने की कोशिश के आरोप लगे थे।
अभी तक कांग्रेस के शशि थरूर, पवन खेड़ा, सुप्रिया श्रीनेत, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, शिवसेना (उद्धव) की प्रियंका चतुर्वेदी, सीपीएम के सीताराम येचुरी, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने इस हमले की शिकायत की है।
इनके अलावा थिंक टैंक 'ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन' के अध्यक्ष समीर सरन ने भी ऐसे हमले की शिकायत की है। सभी ने बताया है कि उन्हें एप्पल की तरफ से नोटिफिकेशन आया कि 'स्टेट स्पॉन्सर्ड' यानी सरकार द्वारा प्रायोजित हमलावर उनके आईफोन को निशाना बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
कब देता है आईफोन सूचना?
नोटिफिकेशन में यह भी लिखा है कि संभावित रूप से यह हमलावर उन्हें उनके काम या उनके परिचय की वजह से निशाना बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें चेताया गया है कि अगर यह हमलावर सफल हो गए तो वो दूर से ही आपके फोन में मौजूद संवेदनशील जानकारी तक पहुंच सकते हैं और कैमरा और माइक तक भी पहुंच सकते हैं।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एप्पल ने कहा है कि ये नोटिफिकेशन 'झूठे अलार्म' भी हो सकते हैं या ऐसा भी हो सकता है कि कुछ खतरे पकड़ में न आए हों। केंद्र सरकार ने कहा है कि वो इस मामले की जांच करेगी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक बयान में कहा कि सरकार ने एप्पल को भी इस जांच में शामिल होने के लिए कहा है।
एप्पल की वेबसाइट के मुताबिक इस तरह के नोटिफिकेशन को विशेष रूप से उन उपभोक्ताओं को जानकारी देने और उनकी मदद करने के लिए डिजाइन किया गया है जिन्हें 'स्टेट स्पॉन्सर्ड' हमलावरों ने निशाना बनाया हो। अगर कंपनी के उपकरण ऐसी गतिविधि पकड़ते हैं, जो इस तरह के हमलों के अनुरूप है तो उपभोक्ता को इसकी जानकारी दी जाती है। उपभोक्ता को बताया जाता है कि वह अपने फोन की सुरक्षा के लिए क्या-क्या कदम उठा सकते हैं?
इन कदमों में लॉकडाउन मोड एक्टिवेट कर देना भी शामिल है जिसके तहत फोन की कई सेवाओं को सीमित कर दिया जाता है ताकि संभावित हैकिंग के असर को कम से कम किया जा सके। एप्पल ने यह सेवा नवंबर, 2021 में शुरू की थी।
कंपनी का कहना है कि इसकी जरूरत इसलिए है, क्योंकि 'स्टेट स्पॉन्सर्ड' हमलावर आम साइबर अपराधियों से अलग होते हैं। यह 'असाधारण संसाधनों' का इस्तेमाल कर कुछ खास लोगों और उनके उपकरणों को निशाना बनाते हैं जिसकी वजह से इनका पता लगाना और इनके हमलों को रोकना बड़ा मुश्किल होता है।
एप्पल ने यह सेवा इजराइल के एनएसओ समूह के खिलाफ एक मुकदमा दायर करने के बाद शुरू की थी। एप्पल ने आरोप लगाया था कि एनएसओ ने अमेरिकी नागरिकों के आईफोनों को हैक कर उन्हें निशाना बनाया था।
क्या था 'पेगासस प्रोजेक्ट'?
एनएसओ ने पेगासस नाम का स्पाईवेयर बनाया था। जुलाई 2021 में दुनियाभर के 17 मीडिया संस्थानों ने 'पेगासस प्रोजेक्ट' नाम से एकसाथ रिपोर्ट्स छापी थीं जिनमें दावा किया गया था कि पेगासस के जरिए विभिन्न सरकारों ने अपने यहां पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने की कोशिश की। इनमें दुनियाभर से करीब 50,000 फोन नंबर शामिल थे। इनमें भारत समेत कई देशों के 180 से ज्यादा पत्रकारों के फोन नंबर भी शामिल थे। रिपोर्ट में भारत में 300 से ज्यादा पत्रकारों, नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने का दावा किया गया था।
भारत सरकार ने कभी यह नहीं माना कि उसने पेगासस का इस्तेमाल दूसरों की जासूसी के लिए किया लेकिन स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि उसने पेगासस का इस्तेमाल किया ही नहीं? मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था। अदालत ने एक विशेष समिति से पूरे मामले की जांच करवाई और अंत में कहा कि जांच किए गए 29 उपकरणों में से 5 में 'मैलवेयर' तो पाया गया लेकिन इस बात का निर्णायक प्रमाण नहीं मिला कि यह पेगासस ही था।